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मंगलवार, 17 सितंबर 2013

पीएम का दौरा और सुरक्षा

                       मुज़फ्फरनगर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में स्थापित राहत शिविरों के दौरे के बाद पीएम मनमोहन सिंह ने यूपी सरकार से स्पष्ट रूप से यह आशा की कि वह आने वाले समय में किसी भी तरह की हिंसा पर रोक लगाने के लिए कड़े क़दम उठाएगी और साथ ही जो लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं उन्हें वापस अपने घरों तक पहुँचाने का काम भी करेगी. वैसे तो सूबे के सीएम के दौरे के पहले से ही स्थितियां सुधरने की राह पर जा रही हैं फिर भी मनमोहन के दौरे से जहाँ दंगा पीड़ितों को इस बात का विश्वास हुआ है कि अब सुरक्षा के मामले में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी. यहाँ पर एक बात यह भी ध्यान में रखनी चाहिए कि जो भी इस हिंसा-प्रतिहिंसा में प्रभावित हुए हैं उनको धर्म और जाति के चश्मे से ऊपर उठकर इंसानियत के रूप में ही देखा जाना चाहिए क्योंकि अभी तक जिस तरह के बयान आ रहे थे उससे यही लगता था कि जाटों को यहाँ पर समस्या का मुख्य कारण माना जा रहा है जिसे मुलायम ने भी अपने बयान में इशारे में ही स्वीकार भी किया था ?
                       इस हिंसा के लिए यदि सरकार केवल जाटों पर ही उंगली उठाने का काम करती है तो उससे जाटों में अनावश्यक रूप से नफ़रत भरी रहेगी जो इन विस्थापितों को अपने घरों में लौटने नहीं देगी जिससे इस पूरे क्षेत्र की सामजिक और आर्थिक परिस्थितियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यहाँ अधिकांश जाट बड़े कृषक हैं और मुसलमान उनके खेतों पर काम करने वाले मजदूरों के रूप में हैं. यदि सुरक्षा परिदृश्य नहीं सुधरता है तो इससे सबसे बड़ी समस्या दोनों के लिए ही आने वाली है क्योंकि जहाँ एक तरफ़ खेतों में काम करने के लिए किसानों को मजदूर चाहिए वहीं दूसरी तरह मजदूरों को भी काम चाहिए पर कोई भी अपनी जान को जोख़िम में डालकर इस तरह से किसी भी परिस्थिति में काम क्यों करना चाहेगा ? इस पूरी हिंसा के राजनैतिक नफे नुक्सान का तो नेता लोग हिसाब लगा ही रहे हैं पर आर्थिक प्रभावों के बारे में स्थानीय लोग संभवतः सोचना नहीं चाह रहे हैं क्योंकि प्रशासन की नाकामी ने दोनों ही पक्षों को बहुत गंभीर घाव दिए हैं.
                         किसी भी हिंसा प्रभावित क्षेत्र में पीएम के दौरे के बाद भी परिस्थितियों को सुधारने का ज़िम्मा तो राज्य सरकार पर ही है और मनमोहन ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि राज्य सरकार को इस दिशा में प्रयास करने चाहिए जिससे लोगों में सुरक्षा की भावना बढ़े और वे अपने घरों को वापस लौट सकें. केवल इन विस्थापितों की वापसी से ही काम पूरा नहीं होने वाला है क्योंकि जब तक स्थानीय लोगों में विश्वास की भावना नहीं पनपेगी तब तक सरकारी स्तर पर किये गए कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाएंगे आम लोगों को जिनके साथ रोज़ ही रहना है और जिनके सुख दुख में शामिल होना है यदि वे ही एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते रहेंगें तो परिदृश्य को सुधारने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पायेगा. ग्रामीणों में सुरक्षा का भाव जगाने के लिए अब पुलिस प्रशासन को स्थानीय स्तर पर सुरक्षा समितियों को बनाकर उनकी नियमित बैठकों पर गंभीरता से सोचना होगा क्योंकि प्रशासन एक बार लोगों को उनके घरों तक सुरक्षा में पहुंचा सकता है पर उनकी वास्तविक सुरक्षा तो स्थानीय लोगों के माध्यम से ही संभव हो पायेगी. पीएम के दौरे के बाद आशा की जानी चाहिए कि सुरक्षा और विश्वास बहाली का क्रम तेज़ी से आगे बढेगा.     
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