मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

पटना धमाके और सुरक्षा

                                    पटना में मोदी की बहु चर्चित रैली के पहले और बाद में हुए बम धमाकों ने एक बात तो साबित कर ही दी है कि देश की राजनीति ने अब भी अपनी गलतियों से कुछ भी सीखना शुरू नहीं किया है फिर भी लचर संसाधनों के बाद भी मामले में प्रारंभिक सुराग हासिल कर पुलिस ने कुछ हद तक सफलता पा ली है. इस तरह की घटनाओं से एक बात तो स्पष्ट ही है कि देश में धमाके तब तक ही नहीं होते हैं जब तक आतंकी उन्हें करना नहीं चाहते हैं और जब भी वे जहाँ चाहते हैं अपने काम को अंजाम देने में नहीं चूकते हैं. देश के नेताओं की सुरक्षा चुनाव अभियान के दौरान ही सबसे अधिक दांव पर लगी होती है तो उससे बचने के लिए राज्यों और नेताओं को इस बारे में पूरी सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए जिससे किसी भी तरह की सुरक्षा सम्बन्धी चूक कहीं से भी न होने पाए पर केवल राजनैतिक विद्वेष और खोखली प्रतिद्वंदिता के चले हमारे नेता इस तरफ ध्यान ही नहीं देना चाहते हैं जो कि देश और समाज के लिए बहुत ही घातक हो सकता है.
                                                 देश में राज्यों और केन्द्रीय सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल का कितना अभाव है यह एक बार फिर से सामने आ गया है क्योंकि जिस एनआईए के गठन में वर्तमान विपक्ष द्वारा राजनीति की गयी थी आज कहीं भी कोई आतंकी घटना होने पर उन्हें सबसे पहले उसकी ही याद आती है और आतंक रोधी केंद्र के गठन पर जिस तरह से अब राजनीति की जा रही है उसके दुष्प्रभाव आने वाले दिनों में सामने ही आने वाले हैं. जब राष्ट्रीय सुरक्षा में राज्यों का दखल भी बहुत अधिक है तो वे हर बात के लिए केंद्र की तरफ क्यों ताकना शुरू कर देते हैं और जब केन्द्रीय एजेंसियों के गठन की बात आती है तो उन्हें राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण लगने लगता है ? यह आतंकियों के लिए एक तरह से आदर्श स्थिति है क्योंकि इसमें देश के लिए न केंद्र और न ही राज्य सरकार कुछ करने के लिए जिम्मेदारियों लेने के लिए तैयार दिखती हैं जिससे पूरा सुरक्षा परिदृश्य ही गड़बड़ा सा जाता है और आतंकियों को अपने मंसूबे पूरे करने के कुछ अवसर भी हाथ लग जाया करते हैं.
                                                यदि देश में कोई केन्द्रीय कानून और एजेंसी होती तो यूपी के शाहजहाँपुर के भट्ठा व्यवसायी के फ़ोन पर लगातार दो दिनों तक पहले आजमगढ़ और फिर अफगानिस्तान से आई कॉल्स को गंभीरता से लिए जाता जिसके बाद संभवतः कुछ किया जा सकता था पर यूपी पुलिस ने इसे मात्र कोरी अफवाह समझ कर उस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया क्योंकि बकरीद के समय आये इन कॉल्स में दोनों दिन एक ही बात कहीं गयी कि तैयारियां पूरी हैं और धमाके जल्दी ही होंगें ? देश में केंद्र समेत सभी राज्य केवल अपनी अपनी राजनीति करने में ही लगे हुए हैं क्या अब भी उन्हें यह नहीं लगता है कि कोई साझा कदम उठाने की ज़रुरत आ चुकी है और अब उसके बिना आतंकियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता है. धमाकों में आईएम का नाम फिर से सामने आ रहा है जिससे यही कि भारत में अब यही इस्लामी चरमपंथियों का मुखौटा बन चुका है. राहुल के पाकिस्तानी एजेंसी द्वारा मुस्लिम युवकों को भड़काने की बात पर राजनीति करने वालों को इस तरह से इन युवकों के आतंक में शामिल होने पर कुछ भी बोलने से पता नहीं क्यों परहेज़ हो जाता है ?   
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