जैसा कि पूरा देश जनता है कि कोई भी आतंकी घटना होने के बाद हमारा पूरा सुरक्षा तंत्र सिर्फ इस बात पर ही अपना ध्यान केंद्रित करने में लग जाता है कि किसी भी प्रकार से प्रारंभिक जांच में कुछ हासिल कर लिया जाए और कुछ गिरफ्तारियों के बाद जनता की नज़रों में मामले को ठण्डा करने का पूरा प्रयास किया जाए क्योंकि जनता की याददाश्त बहुत कमज़ोर है और किसी भी बड़ी या छोटी आतंकी घटना के कुछ दिनों के बाद ही वह भूलने लगती है कि उस घटना से आम लोगों को कितना नुक्सान हुआ था. पटना में छोटे स्तर पर बनाये गए कम तीव्रता के इन देशी टाइप के बमों के इस्तेमाल करने से जहाँ जनहानि बहुत कम ही रही वहीं यह भी स्पष्ट हो गया कि हमारे राज्यों द्वारा किये जाने वाले सुरक्षा ताम झाम केवल आम लोगों के लिए ही होते हैं और आतंकी उनको आसानी से कहीं भी कभी भी भेद सकते हैं. पूरे मामले में जिस तरह से बिहार पुलिस की लापरवाहियां सामने आ रही हैं उससे तो यही लगता है कि यदि कोई आतंकी संगठन चाहता तो इस रैली में बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकता था ?
नितीश ने जिस तरह से घटना के बाद बयान दिया था उसमें कुछ भी नया या आलोचना लायक नहीं था क्योंकि देश में चुनाव के पूर्व इस तरह की रैलियों और जन सभाओं के लिए आम तौर पर सुरक्षा उपाय किसी सीएम के कहने पर नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिली सुरक्षा श्रेणी के आधार पर तय किये जाते हैं. इस मामले में पूरी तरह से बिहार पुलिस ही ज़िम्मेदार है और यदि किसी भी स्तर पर किसी नेता के कहने पर यह ढिलाई बरती गयी है तो वह देश की जनता के साथ अन्याय ही है. देश में राजनैतिक कारणों से भी कई बार लोगों को सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है पर जिस तरह से देश की सर्वोत्तम सुरक्षा एसपीजी प्राप्त लोगों के लिए व्यवस्था की जाती है सम्भवतः पटना और बिहार पुलिस ने उसका भी बड़े पैमाने पर उल्लंघन ही किया है. मंच के इतने पास तक देशी बमों का पहुंचना एक बार फिर से बिहार के उसी अराजक स्वरुप को ही दिखता है जिसके लिए कभी वह कुख्यात ही रहा करता था ?
अब घटना के बाद जिस तरह से नेताओं और अधिकारियों के बयान सामने आ रहे हैं उनसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है और कहीं न कहीं से सुरक्षा मोर्चे पर कुछ ऐसा भी चल रहा है जो देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय और बिहार पुलिस ऐसे मौके पर फुटबाल सा खेलते नज़र आ रहे हैं एक कहता है कि विशेष सूचना भेजी गयी थी तो दूसरा कहता है कि रैली के लिए कुछ ख़ास नहीं कहा गया था ? कुछ भी हो गया के बाद पटना में इस तरह की घटना ने यह तो साबित कर ही दिया है कि बिहार और झारखण्ड से जुड़ी हुई ख़ुफ़िया जानकारियों के बाद भी राज्य पुलिस कहीं न कहीं से हर स्तर पर लापरवाहियाँ तो कर ही रही है क्योंकि यह केवल केंद्र की ही ज़िम्मेदारी नहीं है और देश में एक आतंक रोधी केंद्र बनाने के नितीश भी विरोधी हैं तो वे अपने राज्य में ख़ुफ़िया तंत्र को क्यों मज़बूत नहीं कर पा रहे हैं ? अब देश को आतंक के मोर्चे पर स्थानीय राजनीति से हटकर सोचने की ज़रुरत है वरना आतंकी अपने मन माफिक जगहों पर इसी तरह की घटनों को अंजाम देने से बाज नहीं आयेंगें और आने वाले त्योहारों के कारण अब सुरक्षा चुनौतियाँ और भी कठिन होने वाली हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
नितीश ने जिस तरह से घटना के बाद बयान दिया था उसमें कुछ भी नया या आलोचना लायक नहीं था क्योंकि देश में चुनाव के पूर्व इस तरह की रैलियों और जन सभाओं के लिए आम तौर पर सुरक्षा उपाय किसी सीएम के कहने पर नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिली सुरक्षा श्रेणी के आधार पर तय किये जाते हैं. इस मामले में पूरी तरह से बिहार पुलिस ही ज़िम्मेदार है और यदि किसी भी स्तर पर किसी नेता के कहने पर यह ढिलाई बरती गयी है तो वह देश की जनता के साथ अन्याय ही है. देश में राजनैतिक कारणों से भी कई बार लोगों को सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है पर जिस तरह से देश की सर्वोत्तम सुरक्षा एसपीजी प्राप्त लोगों के लिए व्यवस्था की जाती है सम्भवतः पटना और बिहार पुलिस ने उसका भी बड़े पैमाने पर उल्लंघन ही किया है. मंच के इतने पास तक देशी बमों का पहुंचना एक बार फिर से बिहार के उसी अराजक स्वरुप को ही दिखता है जिसके लिए कभी वह कुख्यात ही रहा करता था ?
अब घटना के बाद जिस तरह से नेताओं और अधिकारियों के बयान सामने आ रहे हैं उनसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है और कहीं न कहीं से सुरक्षा मोर्चे पर कुछ ऐसा भी चल रहा है जो देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय और बिहार पुलिस ऐसे मौके पर फुटबाल सा खेलते नज़र आ रहे हैं एक कहता है कि विशेष सूचना भेजी गयी थी तो दूसरा कहता है कि रैली के लिए कुछ ख़ास नहीं कहा गया था ? कुछ भी हो गया के बाद पटना में इस तरह की घटना ने यह तो साबित कर ही दिया है कि बिहार और झारखण्ड से जुड़ी हुई ख़ुफ़िया जानकारियों के बाद भी राज्य पुलिस कहीं न कहीं से हर स्तर पर लापरवाहियाँ तो कर ही रही है क्योंकि यह केवल केंद्र की ही ज़िम्मेदारी नहीं है और देश में एक आतंक रोधी केंद्र बनाने के नितीश भी विरोधी हैं तो वे अपने राज्य में ख़ुफ़िया तंत्र को क्यों मज़बूत नहीं कर पा रहे हैं ? अब देश को आतंक के मोर्चे पर स्थानीय राजनीति से हटकर सोचने की ज़रुरत है वरना आतंकी अपने मन माफिक जगहों पर इसी तरह की घटनों को अंजाम देने से बाज नहीं आयेंगें और आने वाले त्योहारों के कारण अब सुरक्षा चुनौतियाँ और भी कठिन होने वाली हैं.
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