सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रह्मण्यम और ८२ अन्य पूर्व नौकरशाओं की तरफ से दायर की गयी एक याचिका में सरकार को तीन महीनों के भीतर नौकरशाहों की तैनाती के लिए कार्यकाल तय करने के लिए केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से निर्देश जारी करने का आदेश दिया गया है. आज के समय में जिस तरह से नौकरशाही में राजनैतिक दखल बढ़ता ही जा रहा है उसे देखते हुए किसी भी अधिकारी के लिए पूरे मनोयोग से काम कर पाना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि केंद्र और राज्य में अपने पसंद के अधिकारियों की तैनाती के चलते आज पूरे देश में कर्तव्यनिष्ठ और तेज़ तर्रार अधिकारियों को कहीं भी काम करने का सही अवसर ही नहीं मिल पाता है जिससे पूरी व्यवस्था पर उसका असर दिखायी पड़ता भी है पर नेता अपने लाभ के लिए देश की इस तरह से होने वाली हानि को स्वीकार करने के लिए कभी भी आगे नहीं आते हैं जिससे पूरे देश की प्रशासनिक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
कोर्ट के इस आदेश पर यदि अमल किया जाये तो आने वाले समय में अधिकारियों के लिए अपने काडर के प्रदेश को अच्छी तरह से समझने का अवसर मिलेगा वहीँ उनका या अनुभव आने वाले समय में किसी विपरीत परिस्थिति में पूरी तरह से सरकार और अधिकारियों के काम आएगा पर आज जिस तरह से ज़िले के आला अधिकारियों की तैनाती भी राजनैतिक दबाव और चश्मे को लगाकर की जाती है उसमें बेहतर प्रशासन की उम्मीद करना ही बे-ईमानी है क्योंकि अधिकारियों को क्षेत्र के बारे में कुछ पता ही नहीं होता है और वे उन चुनौतियों को समझ ही नहीं पाते हैं जो रोज़ ही प्रशासनिक कार्यों में दबे पाँव सामने आ खड़ी होती है और उस समय सरकार उन्हें नाकारा घोषित कर किसी अन्य अधिकारी को तैनाती दे देती है पर इस तरह से आधे अधूरे मन से काम करने वाले अधिकारी आखिर किस तरह से सरकार की मंशा को पूरा कर सकते हैं यह अभी भी सोचने का ही विषय बना हुआ है ? देश के लिए बढ़ती हुई विभिन्न तरह की चिंताओं के बीच आज इस मुद्दे पर नेता सोचना ही नहीं चाहते हैं और अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर अपना काम निकालने में लगे रहते हैं.
निश्चित अवधि के लिए तैनाती मिल जाने से जहाँ अधिकारियों की जवाबदेही भी बनेगी कि किसी योजना विशेष या सरकारी कार्यक्रम में आखिर किन वजहों से उन आयामों को नहीं पाया जा सका है जिनकी आशा सरकार उनसे करती है क्योंकि आज किसी भी समय ट्रान्सफर होने से हर अधिकारी इस तरह की ज़िम्मेदारी से यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि वह तो कुछ दिन पहले ही क्षेत्र में आया है. सरकार के लिए यह बहुत ही कठिन निर्णय होने वाला है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में कोई भी सरकार अपने हाथों से यह अधिकार जाने नहीं देना चाहती हैं. एक और महत्वपूर्ण आदेश के कोर्ट ने यह भी कहा है कि अब नेताओं के मौखिक आदेशों को भी लिखकर ही उनका अनुपालन किया जाये जिससे इन अधिकारियों को बाद में आने वाली समस्याओं से निपटने में सहायता मिले और उन्हें किसी नेता के निर्णयों के कारण कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़ें क्योंकि आजकल नेता अपने को बचाने के लिए मौखिक आदेशों का सहारा लेने लगे हैं पर अब जब इन्हें भी रिकॉर्ड पर लिया जाएगा तो नेता की ज़िम्मेदारी बनेगी और वे कोई भी तुगलकी आदेश जारी करने से पहले सौ बार सोचने के लिए मजबूर हो जायेंगें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोर्ट के इस आदेश पर यदि अमल किया जाये तो आने वाले समय में अधिकारियों के लिए अपने काडर के प्रदेश को अच्छी तरह से समझने का अवसर मिलेगा वहीँ उनका या अनुभव आने वाले समय में किसी विपरीत परिस्थिति में पूरी तरह से सरकार और अधिकारियों के काम आएगा पर आज जिस तरह से ज़िले के आला अधिकारियों की तैनाती भी राजनैतिक दबाव और चश्मे को लगाकर की जाती है उसमें बेहतर प्रशासन की उम्मीद करना ही बे-ईमानी है क्योंकि अधिकारियों को क्षेत्र के बारे में कुछ पता ही नहीं होता है और वे उन चुनौतियों को समझ ही नहीं पाते हैं जो रोज़ ही प्रशासनिक कार्यों में दबे पाँव सामने आ खड़ी होती है और उस समय सरकार उन्हें नाकारा घोषित कर किसी अन्य अधिकारी को तैनाती दे देती है पर इस तरह से आधे अधूरे मन से काम करने वाले अधिकारी आखिर किस तरह से सरकार की मंशा को पूरा कर सकते हैं यह अभी भी सोचने का ही विषय बना हुआ है ? देश के लिए बढ़ती हुई विभिन्न तरह की चिंताओं के बीच आज इस मुद्दे पर नेता सोचना ही नहीं चाहते हैं और अधिकारियों को बलि का बकरा बनाकर अपना काम निकालने में लगे रहते हैं.
निश्चित अवधि के लिए तैनाती मिल जाने से जहाँ अधिकारियों की जवाबदेही भी बनेगी कि किसी योजना विशेष या सरकारी कार्यक्रम में आखिर किन वजहों से उन आयामों को नहीं पाया जा सका है जिनकी आशा सरकार उनसे करती है क्योंकि आज किसी भी समय ट्रान्सफर होने से हर अधिकारी इस तरह की ज़िम्मेदारी से यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि वह तो कुछ दिन पहले ही क्षेत्र में आया है. सरकार के लिए यह बहुत ही कठिन निर्णय होने वाला है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में कोई भी सरकार अपने हाथों से यह अधिकार जाने नहीं देना चाहती हैं. एक और महत्वपूर्ण आदेश के कोर्ट ने यह भी कहा है कि अब नेताओं के मौखिक आदेशों को भी लिखकर ही उनका अनुपालन किया जाये जिससे इन अधिकारियों को बाद में आने वाली समस्याओं से निपटने में सहायता मिले और उन्हें किसी नेता के निर्णयों के कारण कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़ें क्योंकि आजकल नेता अपने को बचाने के लिए मौखिक आदेशों का सहारा लेने लगे हैं पर अब जब इन्हें भी रिकॉर्ड पर लिया जाएगा तो नेता की ज़िम्मेदारी बनेगी और वे कोई भी तुगलकी आदेश जारी करने से पहले सौ बार सोचने के लिए मजबूर हो जायेंगें.
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