मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 3 नवंबर 2013

आर्थिक स्थिति और दीपावली

                                                             लगता है कि देश के लिए थोड़े समय से चल रहा आर्थिक मंदी का दौर अब कुछ हद तक सामान्य सा होने वाला है और जिस तरह से देश के सेंसेक्स बाज़ार की स्थिति लगातार सुधर रही है उससे आने वाले समय में कुछ अच्छे संकेत भी मिल सकते हैं. आज के समय में जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों, मौसम और कुछ सरकारी प्रयासों से जिस तरह से बाज़ार में सुधार दिखायी देने लगा है यदि वह इसी तरह से बना रहता है तो आने वाले कुछ वर्षों में आर्थिक मोर्चे पर देश के लिए और भी अच्छे संकेत भी दिखायी देने लगेंगें. आज जिस तरह से सरकार के पास नीतिगत मुद्दों पर करने के लिए कुछ ख़ास नहीं बचा है क्योंकि अब जिन भी परिवर्तनों की आवश्यकता है अब उनको पूरा करने के लिए कहीं न कहीं से सरकार को जितने बहुमत की आवश्यकता है वह उसके पास नहीं है और आने वाले चुनावी समय के कारण देश की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए अब कोई बड़ा निर्णय लिया जाना सम्भव भी नहीं बचा है.
                              पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से बाज़ार ने गोता लगाया और रूपये की स्थिति भी अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर कमज़ोर हुई उसके बाद से आम लोगों को भी यही लगाने लगा था कि कहीं न कहीं से मनमोहन सिंह वैश्विक स्तर के अच्छे अर्थशास्त्री होने के बाद भी देश को आर्थिक रूप से सही दिशा नहीं दे पाये पर आज जब बाज़ार में सुधार दिखा रहा है तो उस कठिन परिस्थिति में भी उनके वे बयान समझ में आते हैं जब उन पर चौतरफा हमले हो रहे थे और उनका यह मानना होता था कि आर्थिक स्थिति १९९१ जैसी स्थिति से बहुत बेहतर है अब उनके उस विश्वास को वास्तविकता में बदलते हुए पूरा देश देखा रहा है. भारत जिस तरह से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश है तो यहाँ पर हर चीज़ अच्छे मानसून और बेहतर पैदावार पर ही निर्भर करती है आज जब देश को अपने औद्योगिक माहौल को विदेशी दबाव के स्थान पर देश हित के लिए उठाये जाने वाली व्यवस्था की आवश्यकता है तो उसमें भी किसी आधी अधूरी व्यवस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
                                देश का दुर्भाग्य है कि सम्भवतः पूरी दुनिया में हम ही एक मात्र ऐसे देश होंगें जहाँ पर नीतिगत मुद्दों पर भी नीतियों का निर्धारण ठीक से नहीं नहीं किया जाता है और जो दल सत्ता में होता है वह कुछ भी करना चाहता है तो विपक्ष भी सही बुरे का फैसला किये बिना ही हर बात का विरोध करने पर आमादा दिखायी देता है. ९१ में नरसिंहराव सरकार के वित्त मंत्री कि हैसियत से जो सुधार मनमोहन सिंह ने शुरू किये थे तो उन्हें देवगौड़ा - गुजराल की तीसरे मोर्चे की सरकार और अटल की सरकार भी नहीं बदलना चाहती थी जिससे यही साबित होता है कि उस समय के कदम बिलकुल सही दिशा में उठाये गए थे पर आज भी केवल राजनीति करने के लिए ही कभी संप्रग के सहयोगी तो कभी राजग के दल सरकार पर हमले करने से नहीं चूकते हैं जबकि सरकार में आने पर वे भी उन्हीं नीतियों को पूरी लगन से लागू करने में लगे रहते हैं. देश के नेताओं को अब यह सोचना ही होगा कि कम से कम उन मसलों पर किसी भी तरह की राजनीति न की जाये जिनसे आने वाले समय में देश को बहुत नुकसान पहुँचता है पर ऐसा सोचना शायद जनता के बस में ही है और नेता एक दूसरे की टांग खींचने में एक बार फिर से लगे हुए हैं.     
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