मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 4 नवंबर 2013

कोलम्बो राष्ट्रकुल सम्मलेन

                                      राष्टमंडल देशों के १५ से १७ नवम्बर तक श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में होने वाले सम्मलेन में भारतीय पीएम मनमोहन सिंह के जाने को लेकर जिस तरह से एक बार फिर से घरेलू दबाव बढ़ता जा रहा है आने वाले समय में वह देश की लम्बे समय से स्थिर रही विदेश नीति के लिए एक बड़ा झटका भी हो सकता है क्योंकि स्थानीय मुद्दों को इस तरह से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी होने देने से आने वाले समय में भारतीय विदेश नीति के पास करने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा. यह सही है कि अगले वर्ष देश में आम चुनाव होने वाले हैं और उस परिस्थिति में पूरे तमिलनाडु में तमिल भावनाओं से जुड़े श्रीलंका के मुद्दे को कोई भी सरकार राजनैतिक रूप से उतने हलके से नहीं ले सकती है जितने हलके पन से इसकी शुरुवात क्षेत्रीय राजनेताओं द्वारा शुरू कर दी जाती है. यह भी सही है कि सरकार अपने पड़ोस में होने वाले किसी भी उस घटना क्रम में चुप भी नहीं रह सकती है जिसका असर उसके वोटबैंक पर पड़ता हो ?
                                      अब सबसे बड़ी आवश्यकता यही है कि देश के सामने आए इस मुद्दे को ठीक उसी तरह से निपटा जैसा आज तक किया जाता रहा है क्योंकि श्रीलंका में जिस तरह से तमिल विद्रोहियों ने उसकी एकता और अखंडता के लिए चुनौतियाँ खड़ी कर दी थीं तो उस परिस्थिति में यदि सख्ती से विद्रोहियों से निपटा गया तो उसमें क्या ग़लत था ? भारत की तरफ से इस समस्या के समाधान के लिए पूरे प्रयास किये गए पर जब विद्रोहियों ने उस समय एक शांति समझौते पर पहुँचने के बाद उससे एकदम से पीछे हटने का मन बनाकर भारतीय शांति सेना को अनावश्यक युद्ध में उलझा दिया तो उससे भारत को सीख लेनी ही चाहिए क्योंकि केवल एक तरफ़ भावनाओं से समाज का कुछ भी भला नहीं हो सकता है और लिट्टे ने जिस तरह से भारत विरोधी रुख अपना लिया था उसके बाद भारत के पास विकल्प ही क्या बचे थे यदि श्रीलंका ने अपने यहाँ इस तरह के विद्रोह को कुचलने में सफलता पायी है तो अब उसको कटघरे में खड़ा करने का कोई मतलब नहीं बनता है ?
                                     पीएम को हर तरह के घरेलू दबाव को दरकिनार करते हुए इस सम्मलेन में अवश्य ही भाग लेना चाहिए क्योंकि कई बार इस तरह की छोटी सी चूक लम्बे समय में बहुत कष्ट देने लगने लगती है और जब मनमोहन सिंह के जाफ़ना के दौरे के लिए भी श्रीलंका राज़ी हो गया है तो उस परिस्थिति में यात्रा का स्थानीय कारणों से राजनैतिकीकरण नहीं किया जाना चाहिए. आज की परिस्थिति में यदि भारत श्रीलंका से खुद को अलग करने की कोई भी कोशिश करता है तो पाकिस्तान या भारत विरोधी कोई अन्य देश श्रीलंका के और भी करीब आ सकता है इसलिए आने वाले समय में भारत के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए देश के अंदर पनपने वाली इन चुनौतियों से किसी भी राजनेता या दल को लाभ उठाने की कोशिशें नहीं करनी चाहिए क्योंकि एक बार मौका हाथ से निकल जाने पर उसे सुधारने में लम्बा समय लग जाया करता है और भारत के पास में चीन, पाक, बांग्लादेश और कुछ हद तक नेपाल, मालदीव के साथ यदि श्रीलंका भी विरोध पर उतर आया तो देश के सामने चौतरफा संकट आ सकता है.    
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