देश में इस्लामी चरमपंथियों के प्रभाव या बहकावे में आकर उनका समर्थन करने या उनके लिए स्लीपिंग से एक्टिव मॉड्यूल बनने तक में शामिल रहे मुस्लिम युवकों को लेकर जिस तरह से यूपी की सपा सरकार ने एक तरफ़ा राजनीति करनी शुरू की थी इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते समय यह स्पष्ट रूप से कह कर कानून का पक्ष रखा है कि केवल यूपी सरकार ही इन मुक़दमों को वापस नहीं ले सकती है क्योंकि इनमें से कई अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केंद्रीय धाराओं के मुक़दमें भी दर्ज़ हैं. इससे यूपी सरकार को जहाँ एक तरफ संवैधानिक और कानूनी जानकारी के बारे में विचार किए शुरू की गयी प्रक्रिया की वास्तविकता समझ आ गयी है वहीं अपने को मुसलमानों का हितैषी साबित करे में एक बार फिर से शुरू की गयी सपा की राजनाति उस पर कानूनी रूप से बहुत भारी पड़ गयी है. सरकार बनने के लगभग २० महीने पूरे होने के बाद भी यदि सपा सरकार इस तरह से काम करती रही तो यह उसके लिए बड़ा सबक भी लेकर आ सकती है क्योंकि इन मुक़दमों को इस तरह वापस नहीं किया जा सकता है यह क्या प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी वकील को भी नहीं पता है ?
यह बिलकुल सही है कि इस तरह के आतंकी हमलों में जिस तरह से संदेह के आधार पर पुलिस लोगों को हिरासत में लेकर अपने को यह दर्शाने का प्रयास करती है कि उसके पास विवेचना करके आतंकियों को जल्दी से जल्दी पकड़ने की महारत है वहीं उससे वे विवेचना से जुड़ी वे मूलभूत समस्याएं कहीं पीछे छूट जाती है जिनका अभियोग को चलने के समय होना कानूनी तौर पर आवश्यक होता है. देश का कानून किसी को भी संदिग्ध परिस्थितियों में काम करने पर हिरासत में लेने का अधिकार देता है पर इस तरह के अधिकतर मामलों में जितनी तेज़ी से गिरफ्तारियां होती हैं उतनी तेज़ी से विवेचना कभी भी आगे नहीं बढ़ पाती है और इन मुक़दमों के भी सामान्य मुक़दमों की तरह चलाये जाने के कारण उससे अन्य तरह की समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं. अच्छा हो कि आतंकियों के बढ़ते दुस्साहस से निपटने के लिए विशेष आतंकी कोर्ट हर राज्य में बनायीं जाएँ और विवेचना से लेकर अभियोग तक के लिए एक समय सीमा में रहकर काम किया जाये जिससे आतंकियों को सजा मिल सके और यदि किसी संदिग्ध को ग़लती से हिरासत में लिया गया है तो उसे समय रहते सम्मान के साथ जीने का हक़ भी दिया जाये.
पर इस मामले में आज कानून जिस तरह से अपना काम करता है वह किसी से भी छिपा नहीं है जिससे कई बार समाज में रहने वाले इन आतंकियों के कारण बहुत से उनके साथ के वे लोग भी लपेट में आ जाते हैं जिनका इससे कोई मतलब नहीं होता है ? अब समय आ गया है कि इस मामले में कोर्ट ही सरकारों को स्पष्ट निर्देश देकर आतंकियों से सम्बन्धित मुक़दमों को प्राथमिकता के आधार पर और अलग से चलाने को कहे जिससे यदि किसी की संलिप्तता किसी घटना में है तो उसे कानून सज़ा दे सके और इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर किसी भी राजनैतिक दल को किसी भी तरह की घटिया राजनीति को करने से भी रोका जाये. यदि सपा सरकार इस मामले में इतना ही संवेदनशील है तो उसे इन मुक़दमों की त्वरित सुनवाई के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए थे जिससे निर्दोषों को कोर्ट सबूतों के अभाव में स्वयं ही सम्मान सहित छोड़ देता पर इसके स्थान पर उसे वह राजनीति पसंद आयी जिसमें उसने वोट लुभाने को प्राथमिकता दी. आज जिस तरह की राजनीति नेता करने लगते हैं उसमे कई बार कानून के प्रभावी अनुपालन से जो लोग निर्दोष छूट सकते हैं वे भी अनावश्यक रूप से जेलों में अपने दिन काटने को मजबूर हो जाते हैं और दुःख की बात यह है कि उनकी सुनवाई करने को कोई भी आगे नहीं आता है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह बिलकुल सही है कि इस तरह के आतंकी हमलों में जिस तरह से संदेह के आधार पर पुलिस लोगों को हिरासत में लेकर अपने को यह दर्शाने का प्रयास करती है कि उसके पास विवेचना करके आतंकियों को जल्दी से जल्दी पकड़ने की महारत है वहीं उससे वे विवेचना से जुड़ी वे मूलभूत समस्याएं कहीं पीछे छूट जाती है जिनका अभियोग को चलने के समय होना कानूनी तौर पर आवश्यक होता है. देश का कानून किसी को भी संदिग्ध परिस्थितियों में काम करने पर हिरासत में लेने का अधिकार देता है पर इस तरह के अधिकतर मामलों में जितनी तेज़ी से गिरफ्तारियां होती हैं उतनी तेज़ी से विवेचना कभी भी आगे नहीं बढ़ पाती है और इन मुक़दमों के भी सामान्य मुक़दमों की तरह चलाये जाने के कारण उससे अन्य तरह की समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं. अच्छा हो कि आतंकियों के बढ़ते दुस्साहस से निपटने के लिए विशेष आतंकी कोर्ट हर राज्य में बनायीं जाएँ और विवेचना से लेकर अभियोग तक के लिए एक समय सीमा में रहकर काम किया जाये जिससे आतंकियों को सजा मिल सके और यदि किसी संदिग्ध को ग़लती से हिरासत में लिया गया है तो उसे समय रहते सम्मान के साथ जीने का हक़ भी दिया जाये.
पर इस मामले में आज कानून जिस तरह से अपना काम करता है वह किसी से भी छिपा नहीं है जिससे कई बार समाज में रहने वाले इन आतंकियों के कारण बहुत से उनके साथ के वे लोग भी लपेट में आ जाते हैं जिनका इससे कोई मतलब नहीं होता है ? अब समय आ गया है कि इस मामले में कोर्ट ही सरकारों को स्पष्ट निर्देश देकर आतंकियों से सम्बन्धित मुक़दमों को प्राथमिकता के आधार पर और अलग से चलाने को कहे जिससे यदि किसी की संलिप्तता किसी घटना में है तो उसे कानून सज़ा दे सके और इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर किसी भी राजनैतिक दल को किसी भी तरह की घटिया राजनीति को करने से भी रोका जाये. यदि सपा सरकार इस मामले में इतना ही संवेदनशील है तो उसे इन मुक़दमों की त्वरित सुनवाई के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए थे जिससे निर्दोषों को कोर्ट सबूतों के अभाव में स्वयं ही सम्मान सहित छोड़ देता पर इसके स्थान पर उसे वह राजनीति पसंद आयी जिसमें उसने वोट लुभाने को प्राथमिकता दी. आज जिस तरह की राजनीति नेता करने लगते हैं उसमे कई बार कानून के प्रभावी अनुपालन से जो लोग निर्दोष छूट सकते हैं वे भी अनावश्यक रूप से जेलों में अपने दिन काटने को मजबूर हो जाते हैं और दुःख की बात यह है कि उनकी सुनवाई करने को कोई भी आगे नहीं आता है ?
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