मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 15 दिसंबर 2013

लोकपाल और लोकतंत्र

                                           तीन साल से समाज सेवी अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में लड़ी जा रही लोकपाल की लड़ाई अब अपने अंतिम चरण में पहुंची हुई है जहाँ से अब देश को एक काफी सशक्त विधेयक के माध्यम से एक लोकपाल मिलने ही वाला है. जिस तरह से दिल्ली में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में संघर्षरत रहे अरविन्द केजरीवाल की आप पार्टी ने बड़ी राजनैतिक पार्टियों के सामने जनता के विश्वास का संकट खड़ा कर दिया तो उसके बाद इस विधेयक के पारित होने की सभी सम्भावनाएं दिखायी देने लगी थीं. इस विधेयक में सबसे महत्वपूर्ण बात जो सामने आयी है कि अन्ना की टीम ने भी इसे स्वीकृति प्रदान कर दी है और साथ ही अन्ना ने स्वयं यह भी कहा है कि इसके पारित होते ही वे अपना अनशन तोड़ देंगें जिससे भी इस विधेयक पर लम्बे समय से चला आ रहा गतिरोध समाप्त हो गया है. कॉंग्रेस और भाजपा ने विधेयक के मौजूदा स्वरुप पर जिस तरह से संतुष्टि जतायी है उससे अब यह विधेयक जल्दी ही कानून की शक्ल लेने वाला है इसमें कोई संदेह नहीं है जो कि देश के लिए महत्वपूर्ण होगा और इस संप्रग-२ सरकार के लिए भी क्योंकि इसने कई महत्वपूर्ण काम बिना किसी शोर शराबे के किये हुए हैं जिनकी जानकारी आज भी जनता तक नहीं पहुंची है.
                                       इस मुद्दे पर अभी भी अरविन्द केजरीवाल को यही लगता है कि जैसे यह लोकपाल विधेयक बेकार ही है तो यह उनकी अपनी सोच हो सकती है क्योंकि किसी भी नए विधेयक के लिए कम से कम कुछ मुद्दों पर राजनेताओं में सहमति यदि बननी शुरू हुई है तो उसका हर स्तर पर स्वागत ही होना चाहिए क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में कोई भी बड़ा नीतिगत परिवर्तन करने के लिए नेताओं में सहमति का पूरी तरह से अभाव दिखाई देता है जिसके कारण भी सारा कुछ सही नहीं हो पाता है और महत्वपूर्ण मसलों पर केवल नेताओं के व्यक्तिगत हित न सधने के कारण ही आज देश पूरी तरह से नीतिगत मुद्दों पर ठहरा हुआ है और वर्तमान लोकसभा ने बहुत अच्छे और प्रभावी सदस्यों के होने के बाद भी जिस तरह से नीतिगत जड़ता का प्रदर्शन किया है उससे भी संवाद के माध्यम से बचा जा सकता था पर राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं किस तरह देश और समाज को पीछे छोड़ दिया करती है इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह लोकसभा ही होने वाली है जिसमें राष्ट्रीय मुद्दों पर बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय दलों ने अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ?
                                      अन्ना ने जिस तरह से अपने समर्थन से कॉंग्रेस को इस बिल पर मजबूती से आगे बढ़ने की शक्ति दे दी है यह उसी का परिणाम था कि राहुल गांधी ने किसी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर खुद ही प्रेस को सम्बोधित किया और उनके सवालों के जवाब भी दिए. अब जब सरकार के प्रस्तावित विधेयक को अन्ना का समर्थन मिल गया तो भाजपा के पास उसका समर्थन करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था क्योंकि यदि इस स्तर पर वह अब इसका कोई भी विरोध करती तो उस पर जनता और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों की अनदेखी करने और राजनीति करने का आरोप भी लगता. वैसे अगर पूरे परिदृश्य में देखा जाये तो सोनिया के नेतृत्व में कॉंग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए महत्वपूर्ण विधेयकों पर अटल सरकार का जिस स्तर पर समर्थन किया था भाजपा पिछली दोनों लोकसभाओं में उस तरह के रचनात्मक विपक्ष का प्रदर्शन नहीं कर पायी और जिन मुद्दों को देश से जुड़ा हुआ माना जाता था उन पर भी कोई निजी विधेयक या महत्वपूर्ण फ़ैसला करके उसने सरकार पर दबाव बनाने का कोई काम नहीं किया है. फिलहाल देश को एक परिवर्तन कारी लोकपाल मिलने वाला है और अन्ना ने भी स्पष्ट किया है कि यह एक शुरुवात हुई है और ज़रुरत पड़ने पर इसमें भी संशोधन किया जा सकता है.
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