तीस सालों की लम्बी विकासात्मक प्रकिया के बाद जिस तरह से सरकार ने स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस को शुरुवाती परिचालन लाइसेंस दिया उससे भारत की रक्षा तैयारियों को एक नया आयाम मिलना सम्भव हो सका है. अभी तक जिस तरह से अपनी समस्याओं के कारण देश में रक्षा क्षेत्र ने कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं की है अब उस जड़ता को तोड़ने का समय आ गया है और आज भी भारत अपनी विभिन्न तरह की ज़रूरतों के कारण वैश्विक मंच पर एक बड़ा रक्षा खरीददार बना हुआ है उसे देखते हुए अब इस दिशा में ठोस कदम उठाने और इसमें निजी क्षेत्र को शामिल किये जाने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक इसमें उसे शामिल नहीं किया जायेगा सरकारी स्तर पर प्राप्त होने वाली उपलब्धियों के लिए देश को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. आज जिस तरह से विश्व में भारत का रुतबा बढ़ता ही जा रहा है तो उस स्थिति में कभी ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि अपने हितों को सँभालने के लिए भारत कोई ऐसा कदम उठाये जिससे उसकी रक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं पर बुरा असर पड़ने लगे ?
इंदिरा गांधी की सरकार ने १९८३ में इस तरह की स्वदेशी परिकल्पना पर विचार करने के बाद इसे मंज़ूरी दी थी क्योंकि १९७१ के बंगला मुक्ति संग्राम में जिस तरह से अमेरिका ने भारत को आँखें दिखायी थीं जबकि सीधे भारत का उससे कोई विरोध ही नहीं था तो इंदिरा गांधी ने देश को इस तरह से आत्मनिर्भर करने के लिए प्रयोग करने की कोशिश की थी पर दुर्भाग्य से उनकी हत्या के बाद से इस दिशा में उतनी तेज़ी से काम नहीं हो पाया जिसकी आवश्यकता थी. फिर भी आज यदि तेजस परिचालन के योग्य पाया गया है तो इसके लिए इस परियोजना से जुड़े हुए सभी संस्थान बधाई के पात्र है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में जब कुछ करने की ठान ली जाती है तो सीमित संसाधनों में हमारे संस्थानों को काम करने में महारत हासिल है. अब देश को इस दिशा में एक दीर्घकालिक नीति बनाकर उस पर काम करने की आवश्यकता है क्योंकि देश की रक्षा ज़रूरतें रोज़ ही बढ़ती जा रही है और हमारे यहाँ हर तरह के हथियारों को बनाये जाने से हम इस क्षेत्र में नए और प्रभावी खिलाडी के रूप में सामने आ सकते हैं.
अब देश को इस क्षेत्र के सम्भावित सभी विकल्पों पर विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि जिस तरह से अभी तक निजी क्षेत्र को इसमें अनुसंधानों की अनुमति पूरी तरह से नहीं है उसके बाद अब उन बेड़ियों को तोड़कर निजी क्षेत्र के संसाधनों के साथ मिलकर केवल रक्षा वाहनों के निर्माण से आगे बढ़कर सोचने का समय आ गया है क्योंकि देश की रक्षा ज़रूरतें जितनी चाहे भी आत्मनिर्भर हो जाएँ वे कम ही रहती हैं. इस मसले पर अब एक सर्वसम्मत दीर्घकालिक नीति बनाकर उसका अनुमोदन कर दिया जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय नीति माना जाना चाहिए जिस पर किसी भी दल या सरकार को बदलाव करने की कोई भी छूट न हो क्योंकि देश के नेताओं में पता नहीं कब शांति की भावना जाग जाये और वे इस पूरी परियोजना को बंद कर फिर से दूसरे देशों की तरफ़ ताकना शुरू कर दें ? वैचारिक और नीतिगत मुद्दों पर अब देश को एक जैसा सोचकर समवेत स्वर में बोलने की आवश्यकता है क्योंकि इससे पूरी दुनिया में सही संदेश जाता है. देवयानी मसले पर पूरे देश ने एक साथ खड़े होकर अमेरिका को भी यह दिखा दिया है कि आवश्यकता होने पर हम सब एक है अब उसी भावना को देश की हर महत्वपूर्ण नीति में प्रदर्शित करके हम देश को आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इंदिरा गांधी की सरकार ने १९८३ में इस तरह की स्वदेशी परिकल्पना पर विचार करने के बाद इसे मंज़ूरी दी थी क्योंकि १९७१ के बंगला मुक्ति संग्राम में जिस तरह से अमेरिका ने भारत को आँखें दिखायी थीं जबकि सीधे भारत का उससे कोई विरोध ही नहीं था तो इंदिरा गांधी ने देश को इस तरह से आत्मनिर्भर करने के लिए प्रयोग करने की कोशिश की थी पर दुर्भाग्य से उनकी हत्या के बाद से इस दिशा में उतनी तेज़ी से काम नहीं हो पाया जिसकी आवश्यकता थी. फिर भी आज यदि तेजस परिचालन के योग्य पाया गया है तो इसके लिए इस परियोजना से जुड़े हुए सभी संस्थान बधाई के पात्र है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में जब कुछ करने की ठान ली जाती है तो सीमित संसाधनों में हमारे संस्थानों को काम करने में महारत हासिल है. अब देश को इस दिशा में एक दीर्घकालिक नीति बनाकर उस पर काम करने की आवश्यकता है क्योंकि देश की रक्षा ज़रूरतें रोज़ ही बढ़ती जा रही है और हमारे यहाँ हर तरह के हथियारों को बनाये जाने से हम इस क्षेत्र में नए और प्रभावी खिलाडी के रूप में सामने आ सकते हैं.
अब देश को इस क्षेत्र के सम्भावित सभी विकल्पों पर विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि जिस तरह से अभी तक निजी क्षेत्र को इसमें अनुसंधानों की अनुमति पूरी तरह से नहीं है उसके बाद अब उन बेड़ियों को तोड़कर निजी क्षेत्र के संसाधनों के साथ मिलकर केवल रक्षा वाहनों के निर्माण से आगे बढ़कर सोचने का समय आ गया है क्योंकि देश की रक्षा ज़रूरतें जितनी चाहे भी आत्मनिर्भर हो जाएँ वे कम ही रहती हैं. इस मसले पर अब एक सर्वसम्मत दीर्घकालिक नीति बनाकर उसका अनुमोदन कर दिया जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय नीति माना जाना चाहिए जिस पर किसी भी दल या सरकार को बदलाव करने की कोई भी छूट न हो क्योंकि देश के नेताओं में पता नहीं कब शांति की भावना जाग जाये और वे इस पूरी परियोजना को बंद कर फिर से दूसरे देशों की तरफ़ ताकना शुरू कर दें ? वैचारिक और नीतिगत मुद्दों पर अब देश को एक जैसा सोचकर समवेत स्वर में बोलने की आवश्यकता है क्योंकि इससे पूरी दुनिया में सही संदेश जाता है. देवयानी मसले पर पूरे देश ने एक साथ खड़े होकर अमेरिका को भी यह दिखा दिया है कि आवश्यकता होने पर हम सब एक है अब उसी भावना को देश की हर महत्वपूर्ण नीति में प्रदर्शित करके हम देश को आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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