भारत सरकार ने जिस तरह से विदेशों से होने वाले व्यापारिक संबंधों के चलते होने वाले राजस्व हानि को रोकने के लिए साइप्रस में आयकर विभाग का दफ्तर खोलने को अपनी सहमति दे दी है उससे यही लगता है कि अब सरकार ने भी विदेशों से काले धन के प्रवाह को रोकने के लिए सिद्धांत रूप में अपनी सहमति दे दी है. इस मामले में सबसे बड़ी अड़चन उन देशों के कानूनों के कारण भी आती रहती है जिनसे भारत व्यापार करता है और अभी तक कर मुद्दे पर उन देशों से पूरी तरह से नीतियों का निर्धारण नहीं किया जा सका है. देश के अभी तक चल रहे लचर और पुराने कानूनों के कारण आज भी कर संग्रह उस स्तर पर नहीं हो पाता है जितना वास्तविक रूप में होना चाहिए और नियमों के आज की परिस्थितियों के अनुसार न होने के कारण भी कर संग्रह में लगे हुए विभागों में भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है. विदेशों में आयकर दफ्तर खोलने के इस महत्वपूर्ण कदम से आने वाले समय में बहुत ही सकारात्मक परिणाम दिखायी दे सकते हैं क्योंकि अभी तक सरकार उन व्यापारियों के साथ उनकी शर्तों और अनुबंधों पर विश्वास कर कर संग्रह किया करती है.
भारत सरकार ने जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में देश में आयकर ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं और आयकर के संग्रह में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है उससे यह स्पष्ट है कि यदि नियमों को आम लोगों के अनुसार सरल किया जाये तो आने वाले समय में नागरिक आगे बढ़कर अपनी स्वेच्छा से करों के भुगतान के लिए तैयार हैं. आज के समय में विभिन्न विभागों के कानून इतने पेचीदे हैं कि उनको सरल करने के लिए अब एक राष्ट्रीय नीति की बहुत आवश्यकता है क्योंकि इनमें से बहुत सारे कर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बंटे हुए हैं और कोई भी केंद्र सरकार इसे एकदम से परिवर्तित भी नहीं कर सकती है. इतनी राजनीति और देश के निर्माण से लगाकर स्वाभिमान तक जगाने की बातें करने वाले नेताओं को यह सब केवल चुनाव के समय ही याद आता है और सरकार बनने के बाद वे इन सुधारों को पूरी तरह से भूल जाया करते हैं जबकि चुनावों के बाद उनकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि इन सुधारों को सही दिशा में चलाते रहने के लिए सदैव प्रयासरत रहें.
ऐसा नहीं है कि यह कोई बहुत बड़ा काम हैं क्योंकि जिस तरह से देश में आयकर विभाग ने अपनी निगरानी को काफी मज़बूत किया है उसके परिणाम बेहतर कर संग्रह के रूप में सामने आने लगे हैं यदि उसी तरह से अन्य विभागों में भी प्रयास किये जाएँ तो मामला काफी हद तक सुलझ सकता है. देश में राजनीति भी कई बार बहुत सारे अच्छे कदम उठाने नहीं देती है और अवसर निकल जाया करते हैं. राजस्व का मामला तो पूरी तरह से नीतिगत मुद्दा है और इससे निपटने के लिए केवल संसदीय समिति ही काफी है पर कई बार देश के विकास के लिए ज़िम्मेदार पार्टियां भी देश के दुश्मनों की तरह व्यवहार करती हैं और इस तरह की कोई नीति बना पाने में कोई सहयोग करने से पीछे हटती रहती हैं. अब देश के नेताओं को यह समझना होगा यदि वे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने में लगे हुए हैं कि पार्टी गत राजनीति को इस तरह के देश पर व्यापक असर डालने के मुद्दों पर बीच में नहीं लाना चाहिए क्योंकि पार्टियों का प्रदर्शन जनता की निगाह में बदलता रहता है पर उससे देश की वास्तविक आवश्यकताओं पर कोई अंतर नहीं पड़ता है ? देश के विकास की कसमें खाने वाले दल देश के लिए किस स्तर पर कितना सोचते हैं यह किसी को भी नहीं पता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत सरकार ने जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में देश में आयकर ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं और आयकर के संग्रह में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है उससे यह स्पष्ट है कि यदि नियमों को आम लोगों के अनुसार सरल किया जाये तो आने वाले समय में नागरिक आगे बढ़कर अपनी स्वेच्छा से करों के भुगतान के लिए तैयार हैं. आज के समय में विभिन्न विभागों के कानून इतने पेचीदे हैं कि उनको सरल करने के लिए अब एक राष्ट्रीय नीति की बहुत आवश्यकता है क्योंकि इनमें से बहुत सारे कर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बंटे हुए हैं और कोई भी केंद्र सरकार इसे एकदम से परिवर्तित भी नहीं कर सकती है. इतनी राजनीति और देश के निर्माण से लगाकर स्वाभिमान तक जगाने की बातें करने वाले नेताओं को यह सब केवल चुनाव के समय ही याद आता है और सरकार बनने के बाद वे इन सुधारों को पूरी तरह से भूल जाया करते हैं जबकि चुनावों के बाद उनकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि इन सुधारों को सही दिशा में चलाते रहने के लिए सदैव प्रयासरत रहें.
ऐसा नहीं है कि यह कोई बहुत बड़ा काम हैं क्योंकि जिस तरह से देश में आयकर विभाग ने अपनी निगरानी को काफी मज़बूत किया है उसके परिणाम बेहतर कर संग्रह के रूप में सामने आने लगे हैं यदि उसी तरह से अन्य विभागों में भी प्रयास किये जाएँ तो मामला काफी हद तक सुलझ सकता है. देश में राजनीति भी कई बार बहुत सारे अच्छे कदम उठाने नहीं देती है और अवसर निकल जाया करते हैं. राजस्व का मामला तो पूरी तरह से नीतिगत मुद्दा है और इससे निपटने के लिए केवल संसदीय समिति ही काफी है पर कई बार देश के विकास के लिए ज़िम्मेदार पार्टियां भी देश के दुश्मनों की तरह व्यवहार करती हैं और इस तरह की कोई नीति बना पाने में कोई सहयोग करने से पीछे हटती रहती हैं. अब देश के नेताओं को यह समझना होगा यदि वे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने में लगे हुए हैं कि पार्टी गत राजनीति को इस तरह के देश पर व्यापक असर डालने के मुद्दों पर बीच में नहीं लाना चाहिए क्योंकि पार्टियों का प्रदर्शन जनता की निगाह में बदलता रहता है पर उससे देश की वास्तविक आवश्यकताओं पर कोई अंतर नहीं पड़ता है ? देश के विकास की कसमें खाने वाले दल देश के लिए किस स्तर पर कितना सोचते हैं यह किसी को भी नहीं पता है.
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