मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

यासीन मलिक और कानून

                                                   लगता है कि कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को बिना बात के विवादों को खड़ा करके ख़बरों में बने रहने की आदत हो गयी है क्योंकि जिस तरह से उन्होंने कानून का उल्लंघन करके दिल्ली के निजामुद्दीन में अपनी पाकिस्तानी पत्नी और छोटी बेटी के साथ बिना पुलिस को सूचित किये हुए रहने की कोशिश की तो क्या वे अपने को देश के संविधान से ऊपर समझने लगे हैं ? उन्हें यदि भारत सरकार आराम से कश्मीर में रहने दे रही है तो इसका मतलब यह तो नहीं लगाया जा सकता है कि वे पूरे देश में देश के सामान्य कानूनों का भी उल्लंघन करने से बाज़ न आयें और जानबूझकर ऐसा प्रदर्शित करे जैसे कश्मीरियों के साथ पूरे देश में बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है ? जिन लोगों की नकारात्मक मानसिकता होती है वे किसी भी बात को सकारात्मक रूप में सामान्य तरीके से ले ही नहीं सकते हैं और वे सिर्फ भारत सरकार की कृपा से देश में रहकर देश को नकारने वाले एक नेता मात्र हैं तो देश के संविधान के अनुपालन की उनकी भी उतनी ही ज़िम्मेदारी नहीं बनती है जितनी कि पूरे देश के अन्य नागरिकों की बनती है ?
                                                  देश के सामान्य कानून के मुताबिक यदि कोई भी विदेशी नागरिक देश में वीसा मिले हुए शहर के अतिरिक्त कहीं और आता जाता है तो यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह पुलिस को अपने आने जाने के बारे में सूचित करे. यासीन की पत्नी और बेटी को दिल्ली होकर ही आना जाना था पर इसका यह अर्थ तो नहीं है कि वे अपने अनुसार कहीं भी किसी भी जगह रुकें और बिना वीसा नियमों का पालन किये दिल्ली में चाहे कुछ भी करते रहें ? यदि उनकी पत्नी की फ्लाइट सुबह जल्दी थी या उन्हें उसके कारण दिल्ली में रुकना आवश्यक था तो वे सामान्य नियमों का पालन तो कर ही सकते थे जिससे जहाँ उन्हें रुकना था उस होटल वाले को अनावश्यक रूप से ख़ुफ़िया एजेंसियों को जवाब नहीं देना पड़ता और उनके इस कदम से जहाँ दिल्ली पुलिस भी उनको अनुमति दे देती वहीं इस तरह का बखेड़ा ही खड़ा नहीं होता ? पर बिना बात के कानून से उलझने के आदी इन कश्मीरी नेताओं को यही लगता है कि वे कश्मीर घाटी की तरह पूरे भारत में इस तरह की कानून तोड़ने वाली हरकतें करने के लिए स्वतंत्र हैं तो उन्हें एक अच्छा सबक मिल ही चुका है.
                                                 उनके संगठन ने जिस तरह से बयान जारी कर यह कहा है कि यदि भारत सरकार कश्मीरियों को दिल्ली आने देना नहीं चाहती तो उसे इस पर पाबन्दी लगा देनी चाहिए एक अनावश्यक बयान है क्योंकि भारत सरकार आख़िर यासीन मलिक के मामले में इस तरह की छूट क्यों दे और वह भी तब जब उनके साथ उनकी पाकिस्तानी बीबी भी हों ? क्या यासीन ने अपनी बीबी को अचानक ही अपने कार्यक्रम में शामिल कर लिया था जो वे अब छोटी बच्ची और बीवी के पीछे छिपने की कोशिशें करते हुए दिख रहे हैं यदि वे सामान्य रूप से इस बात की जानकारी जम्मू कश्मीर पुलिस को ही दे देते कि उन्हें इस तरह से दिल्ली में रुकना है तो यह कोई विशेष बात न होती और मानवीय आधार पर उन्हें रुकने की छूट भी मिल जाती पर इस बहाने से उनकी राजनीति का क्या होता जो उन्होंने दिल्ली की सर्द रातों में अपनी बीबी और बच्ची के नाम पर गरमाने की कोशिश की है ? जिस तरह की बच्चों जैसी बातें यासीन कर रहे हैं तो उन्हें यह सोचकर देखना चाहिए कि क्या पाकिस्तान को छोड़कर किसी अन्य देश में वे इस तरह की हरकत करने पर जेल जाने से बच सकते हैं और ज़िंदगी में दोबारा उस देश में पैर रखने का अधिकार भी नहीं खो सकते हैं ?   
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