चुनाव आयोग द्वारा पहली बार मतदाताओं को उपलब्ध किये गए इनमें से कोई नहीं (नोटा) के विकल्प के इस्तेमाल और मतगणना पर इसके पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन अभी नहीं किया जा सकेगा क्योंकि इस पक्ष में पड़ें वाले वोटों को आयोग अवैध मत ही मानेगा और इनकी गिनती कुल पड़े वैध मतों में नहीं की जायेगी. वैसे तो अभी तक की परिस्थितियों में इन मतों के बारे में कोई अंतिम निर्णय आयोग द्वारा नहीं किया गया था जिससे बहुत सारे उम्मीदवारों ने आयोग से यह पूछा था कि इन मतों को किस श्रेणी में रखा जायेगा ? आयोग ने इस बार उम्मीदवारों को राहत देते हुए इन मतों को अवैध घोषित करने का निर्णय किया है जिससे इन वोटों को कुल पड़े मतों में अवैध मानकर उनकी गिनती को ज़मानत बचाने वाले उम्मीदवारों की संख्या को बढ़ने में सहायता मिलेगी. अपने देश में नोटा एक बहुत बड़ा परिवर्तन है और इसके बारे में एकदम से कुछ भी कहा भी नहीं जा सकता है क्योंकि इस बार के चुनावों में यह केवल प्रायोगिक तौर पर ही सबके सामने आया है.
यदि इन मतों को इस बार अवैध घोषित किया गया है तो इसका अर्थ तो यही लगता है कि आयोग ने भी उम्मीदवारों के लिए रियायत करने का मन बना रखा है क्योंकि जब मतदाता ने जान बूझकर इस विकल्प का प्रयोग किया है तो इन मतों को अवैध कैसे घोषित किया जा सकता है जबकि कोर्ट का स्पष्ट निर्देश था कि यह विकल्प उपलब्ध कराया जाये तो क्या आयोग ने केवल विकल्प ही उपलब्ध कराया है जिससे उन मतदाताओं के व्यवस्था से रुष्ट होने की प्रक्रिया को ही अवैध घोषित नहीं किया जा रहा है ? क्या आयोग ने इस तरह का फैसला लेने से पहले इस बात पर विचार नहीं किया कि यह तो सीधे तौर पर मतदाताओं के निर्णय का ही अपमान है क्योंकि यदि उन्होंने इस विकल्प को अपनाया है तो उसके पीछे उनकी सोची समझी नीति ही रही होगी ? इस स्थिति में जब आयोग की तरफ से स्पष्ट निर्देश नहीं थे तो इन मतदाताओं का तो एक तरह से अपमान ही होगा क्योंकि उनके समझकर किये गए मतदान को अवैध घोषित किया जा रहा है.
इस नोटा विकल्प के बारे में आयोग को अब लोकसभा के आम चुनावों से पहले ही स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने चाहिए जिससे इस मद में पड़े हुए वोटों को इस तरह से अवैध घोषित कर नज़र अंदाज़ न किया जा सके और जिस मंशा के साथ लोगों को यह विकल्प दिया गया है उसकी पूर्ति भी हो सके और आयोग की विश्वसनीयता भी बनी रह सके. जिस तरह से सभी उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प एक हथियार की तरह मतदाताओं को दिया जाना था उसके स्थान पर इन मतों को अवैध के खाते में रखा जाना कहाँ तक उचित है. वैसे यह भी तय है कि ईवीएम में पड़े हुए वोट खराब तो होते ही नहीं है तो उस दशा में जो भी मत नोटा में जायेंगे वे सभी उसी मंशा के लोगों द्वारा या ग़लती से बटन दबाने वालों के कारण हो सकते हैं. अच्छा होता कि आयोग इन मतों को नोटा के तहत मानता और इन्हें अवैध न घोषित करता भले ही इससे कुछ और प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हो जातीं पर लोगों की मंशा तो पूरी हो जाती क्योंकि यदि कोई उम्मीदवार इतना काबिल ही होता तो मतदाता नोटा का विकल्प क्यों अपनाता ? इस बारे में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है और आने वाले समय में देश में यह भी परिवर्तन का वाहक बन सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यदि इन मतों को इस बार अवैध घोषित किया गया है तो इसका अर्थ तो यही लगता है कि आयोग ने भी उम्मीदवारों के लिए रियायत करने का मन बना रखा है क्योंकि जब मतदाता ने जान बूझकर इस विकल्प का प्रयोग किया है तो इन मतों को अवैध कैसे घोषित किया जा सकता है जबकि कोर्ट का स्पष्ट निर्देश था कि यह विकल्प उपलब्ध कराया जाये तो क्या आयोग ने केवल विकल्प ही उपलब्ध कराया है जिससे उन मतदाताओं के व्यवस्था से रुष्ट होने की प्रक्रिया को ही अवैध घोषित नहीं किया जा रहा है ? क्या आयोग ने इस तरह का फैसला लेने से पहले इस बात पर विचार नहीं किया कि यह तो सीधे तौर पर मतदाताओं के निर्णय का ही अपमान है क्योंकि यदि उन्होंने इस विकल्प को अपनाया है तो उसके पीछे उनकी सोची समझी नीति ही रही होगी ? इस स्थिति में जब आयोग की तरफ से स्पष्ट निर्देश नहीं थे तो इन मतदाताओं का तो एक तरह से अपमान ही होगा क्योंकि उनके समझकर किये गए मतदान को अवैध घोषित किया जा रहा है.
इस नोटा विकल्प के बारे में आयोग को अब लोकसभा के आम चुनावों से पहले ही स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने चाहिए जिससे इस मद में पड़े हुए वोटों को इस तरह से अवैध घोषित कर नज़र अंदाज़ न किया जा सके और जिस मंशा के साथ लोगों को यह विकल्प दिया गया है उसकी पूर्ति भी हो सके और आयोग की विश्वसनीयता भी बनी रह सके. जिस तरह से सभी उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प एक हथियार की तरह मतदाताओं को दिया जाना था उसके स्थान पर इन मतों को अवैध के खाते में रखा जाना कहाँ तक उचित है. वैसे यह भी तय है कि ईवीएम में पड़े हुए वोट खराब तो होते ही नहीं है तो उस दशा में जो भी मत नोटा में जायेंगे वे सभी उसी मंशा के लोगों द्वारा या ग़लती से बटन दबाने वालों के कारण हो सकते हैं. अच्छा होता कि आयोग इन मतों को नोटा के तहत मानता और इन्हें अवैध न घोषित करता भले ही इससे कुछ और प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हो जातीं पर लोगों की मंशा तो पूरी हो जाती क्योंकि यदि कोई उम्मीदवार इतना काबिल ही होता तो मतदाता नोटा का विकल्प क्यों अपनाता ? इस बारे में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है और आने वाले समय में देश में यह भी परिवर्तन का वाहक बन सकता है.
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