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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध

                                      यूपी में अपनी नौकरियों पर हापुड़ से नोएडा जाने वाली महिलाओं की बस में एक ऐसी घटना हुई जिसके बाद यह लगने लगा है कि देश की संसद कितने भी कड़े क़ानून क्यों न बना ले पर आज भी समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराधियों के हौसले बुलंद ही रहा करते हैं और वे जब जहाँ चाहें पुलिस को धता बताकर अपने कारनामों को अंजाम देते रहते हैं. दिल्ली में संसद और विधानसभा में हुए अप्रत्याशित हंगामे की ख़बरों के बीच यह खबर जिस तरह से दबकर रह गयी वास्तविकता में उसे भी पूरी सुर्ख़ियों के साथ चलाये जाने की ज़रुरत थी पर कभी महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के नाम पर चिल्लाने वाले टीवी भोंपुओं को यह कोई मामला ही नहीं दिखता है ? इस पूरी घटना में जिस तरह सात लोगों ने पहले महिलाओं से छेड़खानी की और फिर ड्राईवर और कंडक्टर की पिटाई भी की तो इससे क्षुब्ध होकर जब ड्राईवर को कुछ नहीं सूझा तो उसने पूरी बस ही मसूरी थाने के अंदर घुसा दी फिर भी पांच लोग भागने में सफल रहे और केवल दो को ही पकड़ा जा सका.
                                    निसंदेह इस मामले में ड्राईवर की सूझबूझ काफी काम आयी पर जिस तरह से केवल दो लोगों को ही पकड़ा गया है और बाकी फरार हो गए हैं तथा उनको पकड़ने के लिए पुलिस अपनी तरह के खोखले प्रयास ही करने में लगी हुई है उससे समाज में कोई अच्छा संदेश नहीं जाता है ऐसे समाज विरोधी तत्वों को पकड़ इन पर शीघ्रता से केस चलाकर इन्हें सलाखों के पीछे डाला जाना चाहिए क्योंकि जब तक पुलिस इस तरह के कड़े तेवर इन अपराधियों के खिलाफ नहीं दिखाना सीखेगी तब तक स्थानीय नेताओं के दबाव में पीड़ितों की बात सुने जाने के स्थान पर अपराधियों को ही संरक्षण देती रहेगी जिससे समाज में और भी समस्य़ाएं पैदा हो सकती हैं. कवाल के दंगे की शुरुवात केवल पुलिस की विवादास्पद शैली के कारण ही हुई और उसने कितने मासूमों को बेघर किया और कितनों को असामयिक मृत्यु की तरफ धकेल दिया यह सभी जानते हैं और आज भी उसका खौफ मुज़फ्फरनगर और उसके आस पास के क्षेत्रों में देखा जा सकता है.
                                   महिलाओं के खिलाफ कोई भी इस तरह के अपराध में संलित दिखायी दे तो तुरंत ही उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे इन चंद समाज विरोधी तत्वों को अन्य लोगों को उकसाने का अवसर न मिल पाये कि देखो मैंने ऐसा किया तो मेरा क्या बिगड़ा क्योंकि जब एक भी अपराधी किसी भी कारण से इस तरह के अपराध को करने के बाद सुरक्षित बच निकलता है तो उसके बाद उसके अन्य साथियों के हौसले बढ़ जाते हैं या फिर वे अपने साथ अन्य लोगों को भी इस अपराध में आसानी से शामिल करवा पाने में सफल हो जाते हैं ? समाज के लिए सोचना बहुत आवश्यक है पर यह सही दिशा में तभी जा सकता है जब किसी भी तरह के अपराधी को किसी भी स्तर पर राजनैतिक, आर्थिक या सामजिक सहयोग न मिले पर आज हर तरह के अपराध की व्याख्या जिस तरह से पार्टी के आधार पर ही की जाने लगी है तो उस स्थिति में कुछ भी सही कर पाना अकेले पुलिस के बस की बात भी नहीं है पर इस तरह के मामले में जब अपराधियों के नाम पता चल गए हैं तो पुलिस को उन्हें तत्काल हर प्रयास कर हिरासत में लेना ही चाहिए जिससे कानून का कुछ भय तो इन अपराधियों के मन में पैदा किया जा सके और कामकाजी महिलाओं के लिए समाज को और भी सुरक्षित भी बनाय जा सके.   
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