मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

संप्रग का अंतरिम बजट

                                                               वैसे तो जिस तरह के माहौल में देश में चुनाव हुआ करते हैं अभी तक कई बार उनका सही परिणाम जानने की कोशिशें विभिन्न तरीकों से की ही जाती है पर इस बार जिस तरह से संप्रग के विरुद्ध अच्छा ख़ासा माहौल दिखायी दे रहा है तो उस स्थिति में भी इसके अंतरिम बजट में पी चिदंबरम ने जिस तरह से अगले वित्तीय वर्ष १३-१४ के लिए लेखानुदान लाते समय एक खाका खींचा है जो देश में एक नई बात ही है क्योंकि ऐसे अवसरों पर वित्तमंत्री केवल खानापूरी करने की कोशिशें ही किया करते हैं और पिछले वर्ष प्रस्तुत किये गए बजट से अधिक नहीं हटते हैं और चुनावी वर्ष होने के के कारण घोषणाएं करने का कोई मतलब भी नहीं होता है ? आजकल जिस तरह का वैश्विक आर्थिक परिदृश्य चल रहा है उसमें यदि वित्तमंत्री अगले वित्त मंत्री के लिए इस तरह से कुछ आसानी से किये जाने वाले कामों की तरफ इंगित कर रहे हैं तो उसका भी दूरगामी परिणाम निकलना तय है क्योंकि पूरे विश्व में यह संदेश चला ही गया है कि आने वाली सरकार क्या कर सकती है जिसकी आज आवश्यकता भी है.
                                                               चिदंबरम ने एक तरह से भारत के आर्थिक इतिहास में वह नयी शुरुआत भी कर ही दी है जिसके दम पर कम से कम आधारभूत क्षेत्र और नीतियों के स्तर पर भारत में सरकार बदलने का कोई बड़ा अंतर नहीं आने वाला है और उसके लिए वैश्विक रेटिंग एजेंसियों और वित्तीय संस्थानों के बीच देश की साख सुधारने के लिए अब राजनेताओं द्वारा इस तरह के आचरण का प्रदर्शन अत्यधिक आवश्यक हो गया है. कहने को इस बार इस अनुमान का मज़ाक भी उड़ाया जायेगा पर देश के भविष्य के लिए आने वाले समय में नीतियां निर्धारित करने के लिए इस तरह के समग्र संदेशों के संसद से निकलने की बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि अभी तक जिस तरह से बहुत सारे महत्वपूर्ण मुद्दों पर देश के नेताओं में गम्भीर मतभेद ही रहा करते हैं यदि इस बहाने से जाती हुई सरकारों के आंकलन को नयी सरकारें भी महत्व देते हुए देश की नीतियों का निर्धारण करना शुरू करें तो उससे देश का मन सम्मान ही बढ़ने वाला है और जिस तरह की नीतिगत स्थिरता भी कई बार दिखायी देने लगती है देश को उससे भी मुक्ति मिल सकती है.
                                                            देश की दो बड़ी राजनैतिक पार्टियों को अब इस तरह के देश से जुड़े गम्भीर मुद्दों पर एक समान राय पर काम करना ही होगा क्योंकि आज जिस तरह से गठबंधन का काल चल रहा है तो कोई भी दल अपने दम पर सरकार बना पाने में सफल नहीं हो पाता है तो उसे दूसरे क्षेत्रीय दलों का सहयोग भी लेना ही पड़ता है. जब इन दलों की तरफ से देश के विकास के लिए एक नीति पर सहमति बन जायेगी तो अन्य दलों के लिए उसके समर्थन के अतिरिक्त कोई अन्य चारा भी नहीं बचेगा पर जब भी ये दल कहीं से एक दूसरे पर ही नीतियों के मामले में भरोसा नहीं करेंगे तो क्षेत्रीय दल उसका अनुचित लाभ उठाने से नहीं चूकेंगे और देश के लिए मज़बूत नीतियों पर काम नहीं हो पायेगा. हर देश में नेताओं के पास इस तरह के विकल्प होते हैं पर नीतिगत मसलों पर भारत में जिस तरह से दल और नेता एक दूसरे से बैर रखा करते हैं उसका कोई मतलब भी नहीं होता है क्योंकि जब तक पूरी व्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिशें नहीं शुरू की जाती हैं तब तक देश को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है ? सत्ता के शीर्ष पर कोई भी क्यों न बैठे पर देश के अच्छे भविष्य के लिए नीतियों का निर्धारण बहुत ही आवश्यक है और इस बार केवल इन अनुमानों के बाद ही उद्योगजगत में सतोष का माहौल है तो आने वाले समय में इसके परिणामों के बारे में सोचा ही जा सकता है.            
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