मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

आरक्षण के नए मानक ?

                                                                     कॉंग्रेस के प्रभावशाली महासचिव और सोनिया के करीबी माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदी ने जिस तरह से आरक्षण के सम्बन्ध में अपनी बात को रखते हुए अभी तक पार्टी के स्थापित मानदंड से अलग हटकर बोलते हुए जातिगत आरक्षण के स्थान पर इसे आर्थिक आधार पर लागू किये जाने की बात कही है उसका देश की लम्बे समय की राजनीति पर बड़ा असर पड़ने ही वाला है क्योंकि यह भी सम्भव है कि एक नयी रणनीति के तहत ही जनार्दन ने यह बात राहुल के सामने रखने की बात कही हो ? आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए जिस तरह से कॉंग्रेस उपाध्यक्ष देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से चुनावी घोषणा पत्र के बारे में चर्चा कर रहे हैं उसमें कॉंग्रेस की तरफ से कोई बड़ा प्रस्ताव भी दिया जा सकता है. कॉग्रेस के इस तरह से जनता के लोगों के साथ मिलकर देश की समस्याओं पर चर्चा करना और मुद्दे निर्धारित करना एक तरह से दिल्ली की आम आदमी पार्टी के क़दमों का समर्थन है जिसमें उसने हर क्षेत्र के लिए अलग घोषणा पत्र तैयार किये थे.
                                                                    आज के संदर्भ में अब देश को इस बात पर गम्भीर विचार करना ही होगा कि क्या वो समय आ गया है कि जातिगत आरक्षण को समाप्त कर देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण को लागू किया जाये क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के अथक प्रयासों के बाद भी आज जातिगत आरक्षण का लाभ केवल उन लोगों को ही अधिक मिल रहा है जो किसी भी तरह से पहले ही इसका लाभ ले चुके हैं और लगातार इससे लाभान्वित भी हो रहे हैं ? ऐसे में यदि जातिगत आरक्षण के स्थान पर आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कॉंग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में शामिल कर ली तो उसे समाज के उस युवा वर्ग का समर्थन भी मिल सकता है जो आज के दोषपूर्ण आरक्षण के कारण अपने क्षेत्र में प्रतिभावान होने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पाता है और समाज के जातीय आधार पर कमज़ोर लोगों को भी इसका कोई लाभ नहीं मिलता है ? देखने में यह द्विवेदी का एक छोटा सा बयान ही हो सकता है पर सम्भवतः सकारात्मक राजनीति की तरफ पार्टियों के बढ़ने में अब यह एक बड़ा मुद्दा बन जाये और देश के गरीबों को वास्तविक आरक्षण मिल सके.
                                                                 आज़ादी के समय जातिगत आरक्षण के लिए खुद डॉ अम्बेडकर भी राज़ी नहीं थे पर आज़ाद भारत में समाज के कमज़ोर वर्गों को सामने लाने के लिए जो प्रयास किये जाने थे उनको एक प्रयास के रूप में इसे केवल १० वर्षों के लिए ही लागू किया गया था पर बाद के समय में इसे जिस तरह से सामाजिक समस्या से निपटने के अस्त्र के स्थान पर राजनीति का ब्रह्मास्त्र समझा गया उसने देश के संविधान की उस मूल भावना की आज तक धज्जियाँ ही उड़ाई हैं जिनको बचाने के संकल्प का ढोंग हर दल और नेता करता रहता है ? क्या जातिगत आरक्षण के स्थान पर आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने से विभिन्न जातियों के वे लोग इसमें खुद ही शामिल नहीं हो जायेंगें जो किसी भी स्तर पर भी पिछड़े हुए हैं और इसके साथ ही लम्बे समय से लंबित मांग भी पूरी हो जायेगी जिसमें यह कहा जा रहा है कि अन्य जातियों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वगों के लिए भी आरक्षण होना चाहिए क्योंकि तभी सभी का विकास हो पायेगा. यह अपने आप में बहुत ही संवेदनशील मामला है और चुनाव के समय जिस तरह से राहुल और कॉग्रेस नए नए प्रयोग कर रहे हैं तो यह भी सम्भव है कि आगामी चुनाव में यह अपेन आप में एक बड़ा मुद्दा बन जाये और यह होना भी चाहिए क्योंकि देश के लिए अब यह एक आवश्यकता बन चुकी है.

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