मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

पाठ्य पुस्तक और नियामक

                                                  कुछ दिन पहले जिस तरह से यूपी के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरह से छापने का मामला सामने आया था अब उसके बाद यही घटना गुजरात की प्राथमिक कक्षा की पुस्तकों में दिखायी दी हैं और महात्मा गांधी तक से जुड़े उन महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को गलत लिखा गया है जो कि उनका गृह राज्य है ? यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल किसी सरकार की लापरवाही नहीं बल्कि उनके काम करने के तरीके को लेकर ही है क्योंकि यूपी में जिस तरह से हर स्तर पर बहुत सारी अनियमितताएं सामने आती रहती हैं तो यहाँ के लिए तो यह एक सामान्य सी बात ही है पर गुजरात में आखिर वे कौन से लोग हैं जो बच्चों को देश के इतिहास के बारे में इतनी लापरवाही से बताने का काम करने में लगे हुए हैं ? इतिहास से किसी भी तरह की जानबूझकर या अजाने में लापरवाही से की गयी छेड़ छाड़ का बच्चों पर क्या असर पड़ने वाला है यह सभी जानते हैं पर इस बारे में दोषियों को दण्डित किये जाने के स्थान पर इसे सुधारने की खोखली बातें ही की जाती हैं.
                                                    क्या देश में आज भी हमारा स्तर ऐसा नहीं बन पाया है कि एक सधे हुए पाठ्यक्रम को पूरे देश में लागू किया जाये और इसके लिए किसी केंद्रीय शिक्षा परिषद् के मानकों का अनुपालन ही किया जाए क्योंकि आज के समय में जिस तरह से प्राथमिक स्तर के बच्चे भी राष्ट्रीय स्तर की शैक्षणिक प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेते हैं तो उनको मिली इस तरह की गलत जानकारी से आखिर उनका कैसे भला हो सकता है ? देश को आज़ादी के इतिहास या अन्य मसलों पर एक नयी दृष्टि से सोचने की ज़रुरत है क्योंकि अभी तक जिस तरह से शिक्षा में राजनीति का समावेश न के बराबर ही हुआ करता था पर इधर कुछ वर्षों से अब यह हर सरकार के प्राथमिक काम में शामिल हो गया है और हर दल अपने हिसाब से शिक्षा को उलटना पलटना चाहता है तो उससे देश का कैसे भला हो सकता है ? इस तरह की घटनाओं के बाद क्या अब यह आवश्यक नहीं होता जा रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में न्यूनतम मानदंडों को स्थापित किया जाये और किसी भी तरह की गड़बड़ी के मिलने पर दोषियों को सजा भी दी जाये.
                                                    देश की व्यापकता और विविधता को देखते हुए राज्यों के लिए मानक भी निर्धारित किये जाने चाहिए क्योंकि केवल केंद्रीय स्तर के आदेशों या अनुशंसाओं से राज्यों को अपने अधिकारों का हनन भी दिखायी दे सकता है और अनावश्यक रूप से राज्यों और केंद्र में टकराव की स्थिति भी बन सकती है उससे निपटने के लिए एक प्रारूप निर्धारित किया जाना चाहिए जिसमें राष्ट्रीय और संबंधित प्रदेश के इतिहास, भूगोल और अन्य हिस्सों का एक नीति के तहत ही समावेश किया जाये और उसमें किसी भी तरह के परिवर्तन से पहले उसका सही तरह से अनुमोदन करने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए क्योंकि कई बार कई राजनैतिक दल अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित होने के कारण इसमें बहुत बड़े परिवर्तन करने की तरफ जाने लगते हैं ? इस राजनैतिक कवायद का बच्चों पर बुरा असर पड़ता है और किसी अन्य दल के सत्ता सँभालने पर फिर उसमें परिवर्तन करने की कोशिश राजनैतिक संघर्ष या प्रतिष्ठा का विषय भी बन सकती है जबकि इससे बचने की पूरी तरह से आवश्यकता है क्योंकि इतिहास को अपने हिसाब से कतई नहीं पढ़ाया जा सकता है और प्रकाशकों पर भी पूरी तरह से नियंत्रण के लिए भी एक नियम बनाकर इस तरह की गलतियों को पूरी तरह से रोका जाना चाहिए.
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