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रविवार, 9 फ़रवरी 2014

हिन्दू तीर्थ स्थल और व्यवस्था

                                               हरिद्वार में एक बार फिर से यह विवाद सामने आ रहा है कि कुछ लोग वहाँ अस्थि विसर्जन करने आने वाले श्रद्धालुओं को अवैध रूप से उन घाटों तक लेकर जा रहे हैं जहाँ पर इस तरह के कार्यक्रमों को हरिद्वार के पुरोहितों और स्थानीय प्रशासन ने पूरी तरह से गैर कानूनी घोषित कर रखा है. हिंदुओं में आस्था का असीमित सैलाब होने के कारण आज भी पूरे देश में कहीं पर भी समग्र रूप से यह दिखायी नहीं देता है कि धार्मिक कार्यों को संपन्न कराने में लगे हुए लोग स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर उस तीर्थ की गरिमा को बनाये रखने का प्रयास करते हों और साथ ही आने जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी अच्छी सुविधाओं के बारे में सोचते हों ? आज देश के किसी भी हिस्से में किसी हिन्दू धार्मिक स्थल के दर्शन करने जाने के लिए जिस तरह की सामान्य समस्य़ाएं दिखायी देती हैं आखिर उनसे निपटने की ज़िम्मेदारी किसकी बनती है क्योंकि राज्य सरकारों को विभिन्न दलों द्वारा चलाये जाने के बाद भी पूरे देश में हर जगह अव्यवस्था का आलम बिलकुल एक जैसा ही होता है और सभी इसकी ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर ठेलते नज़र आते हैं ?
                                               अभी तक केवल वैष्णो देवी और कुछ अन्य बड़े मंदिरों में प्रबन्ध का काम सरकारी स्तर पर देखा जा रहा है और वहाँ पर आने वाले चढ़ावे के अच्छे प्रबंधन से जहाँ आने वाले यात्रियों को बहुत सुविधाएँ मिली हैं वहीं तीर्थों की गरिमा भी काफी हद तक बढ़ गयी है. यात्रियों द्वारा चढ़ाये जाने वाले धन का जिस तरह से सदुपयोग किया जा सकता है उसका वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड एक अच्छा उदाहरण है और अपने स्थापना के बाद से ही उसने विकास के नए कीर्तिमान स्थापित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और आज अपने दम पर सुविधाएँ जुटाने वाली सम्भवतः वह देश की एकलौती धार्मिक संस्था है जो धार्मिक क्रियाकलापों के साथ सामजिक दायित्वों को बहुत अच्छी तरह से निभाने में पूरी तरह से सफल कही जा सकती है. पिछले वर्ष गया के पितृ पक्ष मेले में जाने पर मेरी बिहार और गया के बारे में एक धारणा टूट गयी कि वहाँ पर व्यवस्था नहीं की जा सकती है क्योंकि गया नगर निगम और राज्य की सरकारी मशीनरी ने जिस स्तर पर लाखों लोगों को सम्भालने का काम कर रखा था वैसा धार्मिक स्थलों पर कम ही दिखायी देता है.
                                         अपने को हिन्दू धर्म के ठेकेदार बताने वाले दल की गुजरात सरकार ने भले ही विकास के कितने भी आयाम क्यों न स्थापित कर लिए हों पर आज भी वहाँ पर भी धार्मिक महत्व के नगरों की हालत यूपी के नगरों से भिन्न नहीं है चाहे वह श्री सोमनाथ क्षेत्र हो या फिर द्वारिका धाम हर जगह पर गंदगी का ठीक उसी तरह से साम्राज्य दिखायी देता है जैसा मथुरा, अयोध्या या काशी में ? क्या धर्म की बातें करने और धार्मिक व्यवस्था को सुधारने की तरफ सोचना हमारे नेताओं की प्राथमिकता में नहीं है क्योंकि इन धार्मिक स्थलों से जहाँ दुनिया भर के करोड़ों हिंदुओं की आस्थाएं जुडी हुई हैं वहीं पर इतने बड़े स्तर पर की जाने वाली लापरवाही को आखिर क्या कहा जा सकता है ? यह देश की सहिष्णु जनता ही है जो इतने कष्टों के बाद भी अपनी धार्मिक आस्था को बचाये हुए है और इन कठिनाइयों का सामना करते हुए भी इन स्थाओं पर पूरी श्रद्धा के साथ आती रहती है. धर्म नगरियाँ अपने आप में बहुत महत्व के क्षेत्र हैं और उनके प्रवेश द्वार पर राज्य के मुखिया या नगर प्रमुख की तस्वीरों को लगाने से व्यवस्था नहीं सुधरा करती है इसलिए अब इन स्थानों पर सही सोच के साथ पुरोहितों से विचार विमर्श कर कोई सही रस्ते का निर्धारण किया जाना चाहिए जिससे श्रद्धालुओं को सुविधाएँ मिल सकें और सरकार भी अपना काम कर सके.
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