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शनिवार, 15 मार्च 2014

हरियाणा - दुल्हन दिलाओ वोट पाओ

                                                   देश के तेज़ी से विकसित होते राज्य हरियाणा के बारे में एक और पहलू भी सबसे बुरा रहा है कि वहाँ पर प्रति १००० पुरुषों पर ८७७ महिलाएं होने का देश में सबसे कम लिंगानुपात भी है जो कि दशकों से सरकार और सामाजिक संगठनों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है.अभी तक जिस तरह से केवल समाज में भ्रूण परीक्षण का दुरूपयोग कर एक साज़िश के तहत कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला दशकों से चोरी छिपे चलता रहा है यह सामाजिक समस्या उसी का एक रूप है क्योंकि जब पूरी पीढ़ियां अपने घरों में लड़कियों को जन्म लेने ही नहीं देंगीं तो आने वाले समय में यह सब और भी बुरी स्थिति में पहुँचने वाला है. एक सामान्य मेडिकल जांच का समाज में किस तरह से कुछ लालच में चिकित्सकों और समाज के लोगों द्वारा दुरूपयोग कर इतना बड़ा सामजिक मुद्दा खड़ा कर दिया है कि इससे निपटने के लिए अब किसी के पास कोई समाधान नहीं बचा है. यह मुद्दा इस बार लोकसभा चुनावों में "दुल्हन दिलाओ वोट पाओ" तक पहुँच चुका है और पिछले चुनावों में भी यह एक छोटा ही सही पर मुद्दा तो था ही.
                                                    खाप और परंपरा के सहारे जीने वाले हरियाणवी समाज की समझ में यह तो आया कि घरों में लड़कियां ही नहीं होंगीं तो उनकी शादी आदि के खर्चे और समाज में बेटी होने का कथित दबाव उन्हें नहीं झेलना पड़ेगा पर वह समाज आज की चकाचौंध भरी ज़िंदगी का दूसरा पहलू देख ही नहीं पाया कि जब पूरे समाज में यह चलन हो जायेगा तो उनके विवाह योग्य केवल लड़कों से भरे हुए समाज में आखिर दुल्हन कहाँ से आयेंगीं ? समाज में हर बात एक दूसरे से जुडी हुई ही होती है जब हमारे घरों में केवल लड़कों को ही जीने का हक़ दिया जायेगा तो प्रकृति भी अपनी इस उपेक्षा का बदला इसी तरह से लेने में पीछे नहीं रहने वाली है क्योंकि सामाजिक संतुलन के लिए समाज में सब कुछ होना आवश्यक है ठीक उसी तरह से लड़कियों और लड़कों का सही अनुपात भी समाज के हित में ही होता है. आज क्या कारण है कि २० वर्ष तक हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह हो जाने वाले लड़के ३० की उम्र तक विवाह योग्य नहीं माने जा रहे हैं ?
                                                  ऐसी स्थिति में जब समाज के सामने नयी चुनौती आ रही है तो इससे निपटने के लिए समाज को ही खुद आगे आना ही होगा क्योंकि यह बात खापों और पंचायतों के माध्यम से आसानी से आगे बढ़ायी जा सकती है. चिकित्सकों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केवल पैसों के लालच में अब वे इस तरह की कन्या भ्रूण हत्या में किसी भी तरह से भागीदार न बनें और समाज के इस संकट को कम से कम अब और आगे बढ़ाने का काम तो न ही करें. चिकित्सकीय जांचों का केवल रोगी के हित में ही उपयोग किया जाये और उसका समाज के हित में किसी भी तरह से कोई दुरूपयोग न होने पाये अब यह भी सुनिश्चित करना चिकित्सा क्षेत्र की ज़िम्मेदारी है. साथ ही समाज को भी लड़कियों को एक समस्या मानने के स्थान पर उनको आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि यदि अब भी नहीं चेता गया तो आने वाले समय में यह के बड़ी सामाजिक समस्या बनकर सामने आ सकती है. सरकार केवल कानून बनाकर ही अपने काम को समाप्त मान लिया करती है जिससे समस्या का सही हल तो नहीं निकल पाता है और चोरी छिपे कन्या भ्रूण हत्या का काम भी चलता ही रहता है.            
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