मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 17 मार्च 2014

देश के विकास में यूपी का योगदान

                                                   देश को सबसे अधिक पीएम देने के साथ ही सबसे बड़ी आबादी, धार्मिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील, अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह और दिल्ली की राह खोलने के लिए सबसे अधिक लोकसभा सीटों का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी आज यूपी का वह दबदबा राष्ट्रीय राजनीति में कहीं से भी नहीं दिखायी देता है जिसके लिए वह कभी जाना जाता था. १९८९ से राज्य में गैर कॉंग्रेसी सरकारें बनने और केंद्र और राज्य में अलग अलग दलों के द्वारा सरकारें चलाये जाने के कारण भी जहाँ प्रदेश का विकास से ध्यान हटकर जाति और धर्म की तरफ अधिक गया है उससे भी कहीं न कहीं यूपी ने बहुत कुछ खोया है. पिछले दो विधान सभा चुनावों से स्पष्ट रूप से एक दल की स्थिर सरकार बनने के बाद भी जिस तरह से विकास के हर पैमाने पर राज्य पिछड़ता ही रहा है उसके लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए क्योंकि आखिर कोई कारण हो अवश्य ही होगा जो राज्य को आगे बढ़ने से रोकने में पूरी तेज़ी से काम करने में लगा होगा और जिसके बारे में अभी भी राज्य की जनता सही बात नहीं जान पा रही है.
                                                  लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में जिस तरह से यूपी के आधे से अधिक मतदाता अपने घरों से बाहर ही नहीं निकलते हैं और केवल आधी से कम आबादी ही अपने दम पर किसी भी तरह के प्रत्याशियों को जिता लेने में सफल हो जाया करती है यह उसी का सबसे बड़ा असर है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनावों में केवल ४७.७८ % मतदाताओं ने ही अपने लिए सरकार चुनने के लिए घर से बाहर निकलना उचित समझा और उस स्थिति में किसी भी तरह से प्रदेश की पूरी आबादी का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है और समाज के वे वर्ग अपने अनुसार प्रत्याशियों को जिताने में सफल हो जाते हैं जिनके लिए मत प्रतिशत अधिक होने पर बहुत समस्या हो सकती है ? ऐसा नहीं है कि अब भी पहले की तरह मत देने से किसी को रोका जाता है या उनके नाम सम्मिलित नहीं होते हैं पर जिस तरह से पोरे परिदृश्य में वर्ग विशेष की ही जागरूकता दिखायी देती है उससे देश को सही प्रतिनिधि भी नहीं मिल पाते हैं. इस तरह से देखा जाये तो बहुत सारे क्षेत्रों में केवल २० % मत पाकर भी नेता लोकसभा तक पहुँच जाने में सफल होते रहते हैं जो कि जीवंत लोकतंत्र के लिए किसी भी तरह से स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती है.
                                                  चुनाव आयोग हर बार की तरह अपने स्तर से लोगों के वोट बढ़वाने और उन्हें मतदान के लिए जागरूक करने में पूरी तरह से लगा हुआ है फिर भी जिस तरह से लोग यह कहकर चुनाव में भाग नहीं लेते कि इससे उन्हें क्या लाभ होने वाला है तो यह केवल उनके दृष्टिकोण को ही दिखाता है क्योंकि यह वो वर्ग होता है जो लम्बी चौड़ी निरर्थक बहस करने में सारे साल लगा रहता है पर जब भी मत देकर देश के लिए सही लोगों को चुनने का समय आता है तो यह अपने घरों से बाहर नहीं निकलना चाहता है ? ऐसी स्थिति में अब जब युवा मतदाताओं की संख्या दिन पर दिन बढ़ ही रही है और वे अपने अधिकारों के लिए जागरूक भी दिखायी दे रहे हैं तो ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले चुनावों में यूपी के साथ पूरे देश में भी मतदान का प्रतिशत और अधिक बढ़ने वाला है. यदि चुनाव आयोग के प्रयास और जागरूकता के माध्यम से लोगों को मतदान केन्द्रों तक लाया जा सका तो यह देश के लिए बहुत अच्छा संकेत ही होगा और लोकतंत्र की जीवंतता बनाये रखने के लिए अब इसकी बहुत आवश्यकता भी है.  
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