मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 22 मार्च 2014

शुभ्रांशु चौधरी और आदिवासी

                                        लन्दन स्थित संस्था इंडेक्स ऑन सेंसरशिप ने अपने इस वर्ष के पुरुस्कार के लिए छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के उत्थान और उनकी आवाज़ को बुलंद कर समस्याओं को उठाने के लिए पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी को डिजिटल जर्नलिज्म अवार्ड से सम्मानित किया है. इस खबर को देश के चुनावी माहौल में डूबे हुए मीडिया ने कहीं से भी प्रसारण के लायक नहीं माना जबकि यह खबर मीडिया और पत्रकारिता से ही जुडी हुई थी इससे पता चलता है देश में आज अच्छा काम करने वाले मीडिया की नज़रों में आने ही नहीं पाते हैं या फिर किसी अन्य कारण या सरकारी दबाव के चलते मीडिया ऐसी ख़बरों से अनजान बनकर ही अपने कर्तव्य को पूरा मान लेता है ? शुभ्रांशु के काम में कम से कम कुछ तो ऐसा विशेष अवश्य ही रहा होगा क्योंकि इस दौड़ में अमरीकी जासूस एडवर्ड स्नोडेन, चीन का सोशल नेटवर्क वीबो और टेल्स नामक ऑपरेटिंग सिस्टम भी नामित थे और इन बड़े नामों के बीच यह पुरूस्कार मिलना अपने आप में उनके काम के महत्व को खुद ही बता जाता है.
                                       भारतीय समाज में आज भी जिस तरह से अनगिनत समस्य़ाएं मौजूद हैं उनमें शुभ्रांशु के सीजी (सेंट्रल गोंडवाना) नेट स्वरा के काम करने का तरीका बिलकुल ही अलग है क्योंकि यहाँ पर समस्यायों को बताने के लिए कोई पत्रकार नहीं है बल्कि आम ज़िंदगी से जुड़े हुए किरदार ही अपनी आवाज़ और भाषा में रिकॉर्ड कर नेट के मॉडरेटर के माध्यम से उसे पोस्ट करवा देते हैं और कोई भी व्यक्ति एक विशेष नम्बर पर कॉल कर उस रिकार्डेड पोस्ट को सुन सकता है जिससे समाज के लोगों की वास्तविक समस्या सामने आती है और उससे निपटने के लिए यदि किसी दूसरे क्षेत्र में किसी ने कोई काम किया है तो उस पर भी सही तरह से लोगों को सलाह मिल पाती है. यह काम छत्तीसगढ़ के गोंडवाना क्षेत्र में २००४ से शुरू किया गया था और अब यह इस स्तर को पा चुका है कि इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलने लगी है. आज भी देश की राजधानी और राज्यों की राजधानियों में बैठकर बनायीं जाने वाली योजनाएं किस तरह से अनुपयुक्त हैं यह भी इससे ही पता चल जाता है.
                                      देश में वैसे तो कम्युनिटी रेडियो का प्रचलन कम संख्या में ही है पर इस सीजीनेट स्वरा में लोगों से जुडी हुई ख़बरों के शामिल किये जाने के कारण इसे कानूनी अड़चनों के चलते रेडियो की तरह प्रसारित नहीं किया जा सकता है क्योंकि आज देश का कानून केवल सामाजिक मुद्दों से जुडी हुई बातों को फीचर के रूप में ही प्रसारित करने की अनुमति देता है जबकि इस मामले में यह ताज़ा समाचार जैसा हो जाता है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास के लिए यदि इस तरह के आम प्रयासों से लोगों तक शिक्षा और जागरूकता को पहुँचाया जा सके तो आने वाले समय में यह सब बहुत आसान हो सकता है. यदि नीतियों के चलते सरकार समाचारों को प्रसारित करने की अनुमति नहीं दे सकती है तो कम से कम रिपोर्टों को प्रसारित करने के बारे में नीतियों में संशोधन करने के बारे में सोचना शुरू करना ही चाहिए क्योंकि सरकारी प्रयासों से जो कुछ भी सम्भव है वह हो ही रहा है और यदि इसमें इस तरह से वास्तवक पीड़ित समाज की भागीदारी भी सुनिश्चित करायी जा सके तो आने वाले समय में आदिवासियों और वंचितों की आवाज़ को और भी अधिक मुखर कर उनकी समस्याओं को ख़त्म कर समाज में एकरूपता लाने में सफलता मिल सकती है.
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