मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 3 मार्च 2014

देश और रक्षा सौदे

                                       दुनिया भर में रक्षा और उनसे सम्बंधित उपकरण बनाने वाली सभी कम्पनियों द्वारा जिस स्तर पर भ्रष्टाचार किये जाने की शिकायतें सदैव ही मिलती रहती हैं उस परिस्थिति में एक बार फिर से २००७ से २०११ तक की समयावधि में लड़ाकू और प्रशिक्षण विमानों के इंजन बनाने वाली कम्पनी रॉल्स रायल द्वारा सौदा हासिल करने के लिए अधिकारियों को घूस दिए जाने का  मामला सामने आया है. इस तथ्य की रक्षा मंत्रालय द्वारा अपने स्तर पर जांच कराये जाने पर जिस तरह से अनियमितताएं सामने आयी हैं उसे देखते हुए रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने पूरे मामले को अविलम्ब जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया है. देश में बड़े पैमाने पर की जाने वाली रक्षा खरीद की क्या स्थिति है यह इससे ही समझी जा सकती है कि अपने लगभग ८ वर्षों के रक्षा मंत्री के कार्यकाल में एंटोनी ने १०० मामलों को जांच के लिए सीबीआई को सौंपा है और लगभग सभी शिकायतों को गम्भीरता से ही लिया है. आज भी देश में रक्षा उपकरणों के मामले में जिस नीति की आवश्यकता होनी चाहिए उसके अभाव में रोज़ ही हर खरीद में घोटाले सामने आते रहते हैं.
                                        रक्षा सौदों का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार अपने आप में बहुत बड़ा है और उनके क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी जिस तरह से उस क्षेत्र विशेष में होने वाले किसी भी सौदे में अपना हिस्सा पाते रहते हैं उसके घूस के रूप में खुलने पर हंगामा खड़ा हो जाता है जबकि कोई भी ऐसा सौदा भारत या किसी भी अन्य क्षेत्र के लिए नहीं होता है जिसमें आज ये कम्पनियां अपने क्षेत्रीय प्रतिनिधियों के इस मद में खर्च करने का ईनाम नहीं देती हैं. कारगिल युद्ध के समय भी जिस ताबूत घोटाले का ज़िक्र किया जाता है वह भी उन ताबूतों में दिया गया कमीशन ही था और भारत में इसको अवैध माने जाने के कारण ही हर रक्षा सौदा संदेह के घेरे में आता जाता है और देश के लिए आवश्यक उपकरण आदि खरीदने में अनावश्यक विलम्ब होता है. एंटोनी का कार्यकाल देश के सभी रक्षा मंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने इस दिशा में बहुत सारे काम किये और अगस्ता वेस्टलैंड जैसे सौदे में एक जबावदेही की धारा भी जोड़ी गयी जिसके आधार पर ही वो सौदा रद्द कर दिया गया है. अब समय है कि देश अपनी नीतियों को तय करे और एंटोनी के बेहतर सुधारों को लगातार प्रयासों से और भी सुधारा जाये.
                                        रक्षा मंत्रालय इस समस्या से निपटने के लिए एक काम केवल नियम में संशोधन के ज़रिये ही कर सकता है कि हर सौदे में इस तरह से कम्पनी के द्वारा अपने उपकरणों के प्रदर्शन आदि पर होने वाले खर्चों की एक सीमा निर्धारित कर दी जाये और किसी भी सौदे में जवाबदेही के साथ इस सीमा से अधिक खर्च करने वाली किसी भी कम्पनी से सौदा रद्द कर उसे काली सूची में डालने का काम भी किया जाये. अब समय आ गया है कि देश के वाहन उद्योग को और अधिक रफ़्तार देने के लिए उसे रक्षा वाहन के क्षेत्र में भारतीय निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति खुले तौर पर दे दी जाये जिससे ये देशी कम्पनियां अपने दम या संयुक्त उपक्रमों पर विभिन्न वाहनों का निर्माण कर देश की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ सकें और दूसरे देशों को भी निर्यात कर सकें इससे जहाँ देश के वाहन उद्योग को एक नया बाज़ार मिलेगा साथ ही रक्षा उपकरणों में अनुसंधान करने के लिए वे और भी अधिक धन खर्च करने को तैयार हो जायेंगें. आने वाले समय में अब देश को अपने रक्षा उपकरणों में आत्म निर्भरता बढ़ानी ही होगी वर्ना किसी भी विपरीत परिस्थिति में हमारी सभी रक्षा तैयारियां अधूरी रह सकती हैं.          
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