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मंगलवार, 4 मार्च 2014

सवारी बस- सुविधा, सामाजिक मिसाल या प्रहार ?

                                             क्या हम लोगों ने कभी किसी ऐसी सवारी बस में सफ़र किया है जिसमें बस के सञ्चालन के लिए केवल एक चालक की व्यवस्था ही है और परिचालक के नाम पर बस में एक किराया सूची लगी है जिस पर विभिन्न गंतव्यों के लिए किराये लिखे गए हैं. चालक केवल अपने मार्ग पर बस को चलने और निर्धारित स्थानों पर उसको रोकर सवारियों के उतरे चढ़ने का ही ध्यान रखता है जबकि किराया देना यात्रियों की ईमानदारी पर ही छोड़ा गया है. गतव्य तक पहुँचने पर हर यात्री अपने आप ही किराये के लिए लगी पेटी में पैसे डाल देता है और बस आगे बढ़ जाती है ? मध्य प्रदेश में छतरपुर-खजुराहो-राजनगर प्रखंड पर चलने वाली एक सवारी बस ने जिस तरह से अपने काम को अंजाम देने और साथ ही ईमानदारी की सीख देने की मिसाल बनायीं है वैसा आज के समय में बहुत कम ही देखने को मिलता है क्योंकि आज हर जगह पर किसी भी तरह के दूसरों की आँखों में धूल झोंककर कुछ पैसे बना लेने की सोच हावी होती जा रही है तो उस स्थिति में यह व्यवस्था वास्तव में सोचने पर मजबूर अवश्य ही करती है.
                                             क्या किसी बस को इस तरह के माहौल में इस व्यवस्था से भी चलाया जा सकता है यह भी सोचने का विषय है क्योंकि जिस तरह से भ्रष्टाचार ने आम लोगों के जीवन में एक बड़ा स्थान ले लिया है तो उस परिस्थिति में ऐसी व्यवस्था का अपने दम पर चलते रहना और किसी भी प्रकार का घाटा न होना यही दर्शाता है कि आम लोगों में आज भी ईमानदारी का बहुत बड़ा स्थान है क्योंकि इस सेवा में सभी ईमानदारी से अपने किराये का भुगतान करके अपने गंतव्य तक पहुँचते रहते हैं. क्या देश के सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में आज इस तरह की सेवाओं की और भी आवश्यकता नहीं है जिसके माध्यम से हम अन्य लोगों को भी यह दिखा सकें कि हर व्यवस्था में सद्भाव और ईमानदारी का समावेश किया जाये तो अपना जीवन तो बहुत ही सुखद और सरल हो ही सकता है साथ ही उससे अन्य लोगों को भी ऐसे रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिल सकती है. आज भी जिन क्षेत्रों में कड़े कानून बनाये गए हैं उनसे ही बचने के लिए लोग भी लगातार इस तरह की सोच से काम करने लगते हैं.
                                            आज के परिप्रेक्ष्य में क्या हम अपने स्तर पर इस तरह के प्रयोग अन्य क्षेत्रों में नहीं कर सकते हैं क्योंकि जिस गोल्डन कम्पनी ने इस तरह की व्यवस्था पर सोचा और इस बात पर भी भरोसा किया कि लोग अपने आप ही किराये का भुगतान कर देंगें तो यह अपने आप में बहुत ही साहसिक निर्णय भी था क्योंकि इसके सफल न होने पर कोई भी इस तरह का प्रयोग करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था पर इसके सफल सञ्चालन और बढ़ी हुई आमदनी ने यह सिद्ध कर दिया है कि आम लोगों के निजी जीवन में आज भी ईमानदारी का बहुत बड़ा स्थान है. यह बस पहले परिचालक के होने पर जहाँ ६०० रूपये ही बचा पाती थी आज इसकी आमदनी १००० रुपयों से भी अधिक हो गयी है तो क्या यह अपने आप में इस बात का प्रमाण नहीं है कि देश के आम लोग आज भी सही सुविधा के मिलने पर अपने काम को पूरी ईमानदारी से करने के लिए तैयार हैं बस उन पर विश्वास करने वालों में इतना साहस हो कि वे इस दिशा में आगे की तरफ बढ़ सकें. यह बस सेवा और ईमानदारी की एक नयी मिसाल है पर इसके बारे में आम लोगों को बताने के लिए सम्भवतः मीडिया के पास प्राथमिकता और समय की कमी है.      
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