मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 8 मार्च 2014

कश्मीर, क्रिकेट, पाक और चरमपंथ

                                       नियम कानून, भाईचारे और सद्भाव के साथ कश्मीरियत की बातें करने वाले पाकिस्तानी और कश्मीरी नेताओं को सम्भवतः यह कभी भी समझ में नहीं आने वाला है कि भारत में आम कश्मीरियों को जो इज्जत मिलती है वह उनकी कश्मीरियों को भारत के खिलाफ भड़काने के किसी भी प्रयास के बाद कमज़ोर ही पड़ती जाती है. ताज़ा घटना में जिस तरह से भारत पाक क्रिकेट मैच में मेरठ में कुछ कश्मीरियों द्वारा पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाये गए उसके बाद क्या पूरे भारत के उस जनमानस में भी उनके प्रति संदेह नहीं आएगा जिसको दूर करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों समेत भारतीय सेना भी लगी हुई है ? जिहाद के नाम पर लोगों की आँखों पर धर्म का चश्मा फिट करके इस्लामिक चरमपंथी यह समझ लेते हैं कि उनका काम आसान ही होने वाला है जबकि इससे उन निर्दोष लोगों के जीवन पर संकट जैसा आने लगता है जो कि सामान्य दिनों में कभी भी दिखायी नहीं देता है. अच्छे काम के दम पर आगे बढ़ पाना बहुत ही मुश्किल काम है पर लोगों में विद्वेष भरकर उनके लिए समस्याएं पैदा करना आज बहुत ही आसान हो चुका है.
                                     क्या पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना इतना ज़रूरी है जबकि वह सीधे तौर पर हर जगह भारत के खिलाफ लगातार ही षड्यंत्रों में लगा रहता है ? क्या कश्मरी पंडितों की हत्याएं करने और उन्हें बेघर करने के आरोपों पर भारत पाक के साथ हर तरह के सम्बन्ध ख़त्म नहीं कर सकता है आज जब तक इस दिशा में सही तरह से बहरत द्वारा नहीं सोचा जायेगा तब तक किसी भी दशा में इस तरह के माहौल को सुधारा नहीं जा सकता है. आज भी अपनी पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भारत की मुख्य भूमि पर निर्भर रहने और लगभग केंद्रीय सहायता के दम पर ही आगे बढ़ने में लगी हुई कश्मीर घाटी अपने स्तर पर क्या कुछ कर सकती है इसका जवाब किसी भी चरम पंथी या कश्मीरी अलगाववादी नेता के पास नहीं है ? भारतीय सेना पर जिस तरह से ये कश्मीरी आम तौर पर हमला करने से बाज़ नहीं आते हैं उसके बारे में भी कभी कोई सोचना नहीं चाहता है और जिस भी प्रकार से भारतीय हितों को नुक्सान पहुँचता है कश्मीरी लोगों का कम से कम एक समूह वैसी हरकतें करने में सदैव ही लगा रहता है.
                                     जब भारत रंगभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका और इसराइल से किसी भी तरह के खेल सम्बन्ध वर्षों तक नहीं रख सकता है तो फिर कश्मीरी पंडितों के मसले पर पाक से क्रिकेट या अन्य खेल क्यों ? डेविस कप के जाने कितने ही मुक़ाबलों में इसराइल के सामने आ जाने पर दशकों तक भारत ने बिना खेले ही उसे आगे जाने दिया क्योंकि वह फिलिस्तीनियों के समर्थन में सिर्फ एक नीति ही थी पर जब कश्मीरी पंडितों के बारे में बात होती है तो फिर पाक से क्रिकेट खेलने का क्या औचित्य बनता है ? पाक ऐसा देश है जो जब तक बांग्लादेश जैसी और बड़ी चोट वैश्विक कारणों से नहीं खायेगा तब तक उसे समझ में नहीं आने वाला है जिस दिन भी इस्लामी चरम पंथियों का सही तरह से चीन से सामना हो गया तो वह अंदर तक घुस कर मार करेगा और पाक कुछ भी नहीं कर पायेगा तथा सम्भव यह भी है कि विश्व के कुछ प्रभावी देश पाक के कुछ हिस्से करने पर राज़ी भी हो जाएँ क्योंकि वर्त्तमान स्वरुप में पाक आतंक की जितनी बड़ी फैक्ट्री के रूप में काम कर रहा है उसमें अब कुछ भी सम्भव है. भारत को अब पाक के साथ अपने हर तरह के सम्बन्ध में बराबर की नीति अपनाने की तरफ बढ़ना ही होगा क्योंकि पाक को दोस्ती के नाम पर पीठ में छुरा मारने की पुरानी आदत है. 
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