मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

आचार संहिता में विकास

                                    देश के आम चुनावों या प्रदेशों में चलने वाले किसी भी चुनाव में जिस तरह से सरकार को आचार संहिता के नाम पर फैसले लेने से पंगु करने की व्यवस्था संविधान में की गयी है आज उसका विभिन्न दल अलग तरीके से लाभ उठाना चाहते हैं. जहाँ भी जिस दल की सरकार होती है विरोधी दल उसके खिलाफ कुछ न कुछ ढूँढा ही करते हैं जिसे कई बार वे निर्णय भी चुनावी राजनीति का शिकार हो जाया करते हैं जिनसे आम लोगों को लम्बे समय में लाभ ही मिल सकता है. पूरी व्यवस्था में जो कुछ भी कहा गया और जिस तरह से आचार संहिता की बात की गयी उसका उद्देश्य केवल यही था कि सरकार में बैठे हुए दल अंतिम समय में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कोई जनहित की लुभावनी योजना की घोषणा न कर दें और उसका अनुचित लाभ भी न उठा लें पर आज के समय में यह विरोधियों के पास एक हथियार अधिक और सरकार के लिए एक बंधन जैसा ही लगता है क्योंकि इसका सभी पक्षों द्वारा राजनैतिक लाभ उठाया जाता है.
                                   फिलहाल इस बार चुनाव आयोग ने जिस तरह से नए बैंकों के बारे में चल रही रिज़र्व बैंक की प्रक्रिया को चलते रहने की अनुमति दे दी है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में नीतिगत मुद्दों पर पहले से लिए गए फैसलों को लागू करने के लिए अब चुनाव आयोग उस तरह की सख्ती दिखाकर देश का नुकसान करने के मूड में नहीं है. चुनाव आयोग भी हर तरह से चुनावों को निष्पक्ष बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहता है पर उसके इन प्रयासों पर कई बार राजनैतिक दल जानबूझकर ऐसे पानी फेरते हैं कि महत्वपूर्ण काम भी रुक जाया करते हैं. बैंक लाइसेंस के इस मुद्दे से जहाँ आगे यह रास्ता खुल सकता है कि आयोग पहले से चल रही इस तरह की किसी भी प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप न करते हुए व्यवस्था को काम करने का अवसर देता रहे. अब देश की नज़रें विमान क्षेत्र की दो कम्पनियों पर आयोग के निर्णय पर भी टिकी हुई हैं क्योंकि इनको परिचालन से सम्बंधित कई चरणबद्ध प्रक्रियाओं को पूरा करना है और यही वे इसमें चूकते हैं तो उन्हें आर्थिक हानि होनी निश्चित है.
                                  इस तरह की परिस्थितियों में आयोग को क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों की राय लेकर ही कोई कदम उठाना चाहिए क्योंकि चुनाव तो चलते ही रहते हैं पर किसी भी परिस्थिति में देश के विकास का पहिया पहले से तय किये गए नीतिगत मामलों में नहीं रुकना चाहिए क्योंकि इससे पूरी दुनिया में भी यही सन्देश जाता है कि भारत में सभी लोग एक दूसरे के खिलाफ ही काम किया करते हैं. आचार संहिता का काम नेताओं की चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने की अनुचित हरकतों पर रखने के लिए किया गया था पर आज के समय में इसका उपयोग एक हथियार की तरह किया जाने लगा है ? अब देश के नेताओं और संवैधानिक संस्थाओं को इस सबसे आगे बढ़कर सोचने का समय आ गया है जिससे चुनाव के समय भी पहले से तय किये आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक फैसलों पर अनावश्यक रूप से रोक न लगायी जा सके. चुनाव आयोग का यह निर्णय भविष्य के लिए एक सनद के रूप में स्थापित होकर नेताओं को इस तरह की राजनीति से रोकने में भी मदद करने वाला है साथ ही इससे देश में नीतिगत पंगुता को भी तोड़ने में सफलता मिलने वाली है.        
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