मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

श्रीलंकाई तमिल-विस्थापन और पुनर्वास

                         दो दशकों से भी अधिक समय तक चले श्रीलंकाई गृह युद्ध की समाप्ति के बाद अब यह सवाल वहाँ से युद्ध काल में विस्थापित हुए तमिलों के मन में उठ रहा है कि आखिर वे कब तक शरणार्थी शिविरों में ही रहते रहेंगें और उने वे पुराने दिन कभी वापस लौटेंगें भी या नहीं ? आज जिस तरह से विश्व समुदाय जिसमें हमेशा की तरह अमेरका ही आगे है मानवाधिकारों के नाम पर श्रीलंका पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगाने की सोच रहा है उससे स्थितियां और भी बिगड़ ही सकती हैं जबकि श्रीलंका की सेना ने अपनी एकता और अखंडता को बचाये रखने के लिए ही तमिल चीतों से आर पार की लड़ाई लड़ी थी. भारत के तमिलनाडु में आज भी श्रीलंका में अलग तमिल ईलम की मांग करने वाले राजनैतिक दल सक्रिय हैं जिससे वहाँ के किसी भी परिवर्तन का असर भारतीय राजनीति पर पड़े बिना भी नहीं रहता है इससे लम्बे समय के लिए बचने के लिए अब भारत के पास क्या विकल्प शेष बचे हुए हैं इन पर भी गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि अब भारत का चुप रहने वाला रुख समस्या का कारण भी बन सकता है.
                        पूरे परिदृश्य में भारत के पास श्रीलंका के साथ अपने सम्बन्धों को और भी आगे ले जाने की ज़रुरत है क्योंकि हमारे चुप रहने या किसी भी परिस्थिति में देर से हस्तक्षेप कर अपने सुझाव रखने से जहाँ पूरी समस्या में और कठिनाई आ सकती है वहीं हस्तक्षेप करने से श्रीलंका की सरकार को भी यह लग सकता है कि कहीं न कहीं से भारत उसके घरेलू मामलों में अपनी टांग अड़ा रहा है ? भारत के पास सबसे अच्छे विकल्प के तौर पर दो बातें हैं कि वह श्रीलंकाई अधिकारीयों को अपने यहाँ पर चल रहे शरणार्थी शिविरों का दौरा कराये और साथ ही इस बात का भी भरोसा दिलाये कि आने वाले समय में तमिलनाडु से किसी भी तरह की श्रीलंका विरोधी गतिविधि को संचालित नहीं होने देगा तो सम्भवतः बात आगे बढ़ सकती है. सीमाई तटीय क्षेत्र के मछुवारों को दोनों ही देश एक हद तक छूट दे सकते हैं साथ ही दोनों देश तटीय क्षेत्र के सभी लोगों को जो समुद्र से अपनी जीविका का सञ्चालन करते हैं उनको विशेष पहचान संख्या भी आवंटित की जाये जिससे जल सीमा पार करने पर उन्हें तत्काल ही छोड़ा भी जा सके.
                         भारत में जिस तरह से यूआईडी और एनपीआर का काम चल रहा है उसी तर्ज़ पर वह श्रीलंका से भी करने का सुझाव दे सकता है और आवश्यकता पड़ने पर दोनों ही देश पहचान सम्बन्धी मामलों को तुरंत ही सुलझा सकते हैं और निर्दोष मछुवारों की समस्याओं को कम भी कर सकते हैं. इस सुविधा के पीछे छिपकर कोई आतंकी संगठन इसका लाभ न उठाने पाये इसके लिए सीमा अतिक्रमण करने वालों को दो या तीन बार की छूट दी जा सकती है और उसके बाद पकडे जाने पर उनके मंतव्यों को समझने के प्रयास भी किये जाने चाहिए. भारत और श्रीलंका के बीच किसी भी तीसरे देश की उपस्थिति लम्बे समय में भारतीय पक्ष के लिए ही अधिक नुकसानदेह साबित होने वाली है इसलिए तमिल मसले पर सभी राजनैतिक दलों को एक राष्ट्रीय और विदेश नीति पर दृढ़ता के साथ टिकना ही होगा और स्थनीय तमिलों की भावनाओं को भड़काने वाली किसी भी बात से बचना ही होगा. देश के हितों को भारतीय तमिलों के हितों के साथ ही सुरक्षित रहने की नीति पर काम करने की आवश्यकता है और इसमें किसी भी तरह की ढिलाई लम्बे समय के लिए बड़ी समस्या को जन्म दे सकती है.
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