मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 27 अप्रैल 2014

कोर्ट में सोशल मीडिया

                                       सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर एक बार फिर से बहस छिड़ सकती है कि आखिर किस तरह से इस पर नियंत्रण किया जाये या फिर इससे जुड़े हुए कानूनों को किस तरह से प्रभावी बनाया जाये कि यह समाज के लिए किसी भी तरह का खतरा न बन सके ? चुनावी मौसम में जिस तरह से विभिन्न दलों के समर्थकों द्वारा जातीय, धार्मिक उन्माद फ़ैलाने के उद्देश्य से आपत्तिजनक और भड़काऊ सामग्री को इन सोशल साइट्स पर डाला जा रहा है उससे कुछ भी हो सकता है और उसी बार पर विचार करने के लिए दिल्ली की तीस हज़ारी मेट्रोपोलिटन अदालत ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर ५ जून तक अपने पक्ष को रखने का निदेश दिया है. विरोध की मानसिकता और कुछ भी कह देने की आदत के कारण जहाँ पूरे विश्व में भारत का उपहास भी उड़ता है वहीं कई बार ऐसे बयानों से समाज में भी तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है अभी कुछ समय पहले पूर्वोत्तर के लोगों को जिस तरह से दक्षिण भारत में निशाने पर लिया गया था उससे तो यही सन्देश समझ में आता है.
                                      फिलहाल चुनावी मौसम होने के कारण आजकल नेताओं के बयानों पर भी कोई लगाम नहीं रह गयी है जिसके दुष्परिणाम भी उनके समर्थकों द्वारा सामने आते दिख रहे हैं. चुनावी तकरार में इस बार जिस तरह से बड़े नेता भी कुछ भी बोलने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं उस परिस्थिति में अब उनके समर्थकों पर कैसे लगाम लगायी जाये यही बड़ा विषय सामने आता दिख रहा है क्योंकि जिन लोगों की सीमायें लांघने की मंशा होती है वे छद्म नाम से अपनी पहचान बनाकर सोशल मीडिया का दुरूपयोग किया करते हैं जिससे भी उन पर लगाम नहीं लगायी जा सकती है. आज भी नेताओं और राजनैतिक दलों के समर्थक किस तरह के अजीबोगरीब नामों से टिप्पणियां करते रहते हैं यही देखने का विषय है और हर तरह के कंटेंट पर अभी तक बिना शिकायत के रोक लगा पाना संभव भी नहीं है क्योंकि कोई भी साइट हर तरह के कंटेंट पर २४ घंटे नज़र नहीं रखना चाहती है जिससे भी इन लोगों को काम करने में आसानी होती रहती है.
                                      भारत में सोशल मीडिया के दुरूपयोग को देखते हुए कुछ ऐसा भी किया जाना आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति फ़र्ज़ी नाम से सोशल मीडिया पर अपनी आईडी न बना सके इसके लिए सरकार को कुछ कड़े कानून बनाने होंगें और उन पर अमल की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से इन सोशल मीडिया कम्पनियों पर डालनी होगी. किसी भी व्यक्ति को यहाँ पर अपनी पहचान के सम्बन्ध में कुछ सिद्ध करना हो जिससे यह भी पता चल सके कि अमुक व्यक्ति अपनी सही पहचान के साथ सोशल मीडिया पर है. इसके तरीके पर विवाद हो सकता है क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार किसी भी तरह की पाबन्दी पर चिल्लाना शुरू कर देंगें पर भारतीय समाज में छोटी बात पर भी जिस तरह से अचानक ही माहौल बदल जाता है तो उसके लिए कुछ सख्त कदम तो उठाने ही होंगें. कोर्ट अपने स्तर से केवल निर्देशित ही कर सकता है उस पर असली अमल तो आम लोगों और सोशल मीडिया कम्पनियों को ही करना होगा पर आज के समय में यह बहुत ही मुश्किल लग रहा है क्योंकि कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी को ठीक ढंग से निभाने को तत्पर नहीं दिखता है.
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