मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 11 मई 2014

मेरठ - फिर से असहज

                                             मेरठ जैसे संवेदनशील शहर में जब एक प्याऊ बनाने के मामले पर भी सांप्रदायिक संघर्ष होने की नौबत आ जाये तो इससे पता चल ही जाता है कि पूरे प्रदेश में नफरत का यह ज़हर कितने अंदर तक अपनी पैठ बना चुका है. समाज के विभिन्न सम्प्रदायों में जिस तरह से वैमनस्यता बढ़ती ही जा रही है उसके चलते आने वाले समय में सरकार और प्रशासन के लिए और भी अधिक मुश्किलें सामने आने वाली हैं. देश की वर्तमान परिस्थितियों और संवेदनशील शहरों और कस्बों के लिए आज तक सरकारों के पास करने के लिए कुछ भी नहीं और न ही उनके पास कोई सही प्लान होता है जिसके दम पर वे पूरी व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने के बारे में सोच भी सकें. इस तरह से छोटी छोटी बातों पर भी उसमें सांप्रदायिक रंग दिखाई देना किसी भी तरह से इन शहरों और देश के लिए अच्छा नहीं रहने वाला है पर सरकार और समाज दोनों ही इस जगह पर पूरी तरह से फेल और असहाय नज़र आते हैं. शर्म कि बात तो यह है कि जिन्हें आगे आकर इन्हें रोकना चाहिए वे बहुत देर से सामने आते हैं और शहर का माहौल बिगड़ जाय करता है.
                                             मेरठ में सीओ स्तर के अधिकारी के साथ जिस तरह से हथियारबंद लोगों ने हाथापाई की और पांच थानों के थानाध्यक्ष इस पूरे घटना क्रम को मूकदर्शक बनकर देखते ही रहे उससे प्रदेश में पुलिस के गिरते हुए मनोबल के बारे में आसानी से जाना जा सकता है. अभी सीओ जिया-उल-हक़  की इसी तरह से हुई हत्या को बहुत दिन नहीं बीते हैं फिर भी प्रदेश सरकार ने अभी ने पुलिस और प्रशासन को स्पष्ट निर्देश देने की कोशिश संभवतः नहीं की है क्योंकि आज भी अराजक तत्वों के हौसले बढे हुए ही दिखाई देते हैं. सीओ ने अपनी बहादुरी से जिस तरह से उनसे मुक़ाबला किया वह यूपी में संभवतः किसी साहस की श्रेणी में आता ही नहीं होगा तभी पांच बहादुर थानाध्यक्ष अपने अधिकारी की मदद करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाये ? इस तरह के ढीले ढाले और नाकारा अधिकारियों को इतने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तैनाती कैसे मिल जाती है और आखिर वे इतने डरपोक कैसे हो सकते हैं जबकि वे पुलिस की नौकरी में हैं इस बात का उत्तर किसी के पास नहीं है ? यदि इन थानाध्यक्षों के रिकॉर्ड पर गौर किया जाये तो ये जनता की नहीं सुनने वाले भ्रष्ट लोगों का एक समूह भर ही होंगें जो केवल आर्थिक लाभ और हनक के लिए ही पुलिस की नौकरी में है.
                                              प्रदेश के सभी संवेदनशील स्थानों पर अब इस तरह के अनावश्यक विवादों से निपटने के लिए कार्य योजना बनाये जाने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जहाँ पर दोनों समुदाय के लोग रहते हैं और कभी अतीत में कुछ गड़बड़ हो चुकी है तो वहां पर सामाजिक पुलिसिंग को बढ़ावा देने और समाज के युवाओं की सद्भाव या शांति समितियां बनाये जाने की बहुत बड़ी आवश्यकता है. इन क्षेत्रों में किसी भी तरह की धार्मिक या सामाजिक गतिविधियों पर भी प्रशासनिक सख्ती की बहुत आवश्यकता है और किसी भी तरह के नए निर्माण या पुनर्निर्माण की अनुमति को आवश्यक बनाये जाने की भी ज़रुरत है क्योंकि इस क्षेत्र के लोगों ने इतनी छोटी सी बात पर सनसनी फैलाकर यह दिखा ही दिया कि वे सामान्य नियमों को नहीं मानते हैं इसलिए उनसे कुछ अधिकार छीन लिए जाने की भी बहुत आवश्यकता है. इन क्षेत्रों में बिना स्थानीय समिति की अनुमति के कोई भी निर्माण कार्य करने के लिए अब सीधे सद्भाव समिति का दखल आवश्यक होना चाहिए जिससे हर छोटे से मसले को इस तरह से सांप्रदायिक रूप देने की कुछ लोगों की घटिया मानसिकता पर रोक लगायी जा सके और जहाँ पर भी ऐसी घटनाएँ हों वहां के लोगों को कुछ दिनों के लिए कड़ी सुरक्षा में बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित किया जाना चाहिए जिससे पूरे समाज पर सभ्यता से रहने का दबाव बनाया जा सके.  
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