मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 12 मई 2014

महिला सुरक्षा दिवस और चिंताएं

                                       प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी १० मई को महिला सुरक्षा दिवस के रूप में मनाये जाने से जहाँ एक तरह ऐसे कार्यक्रम केवल रस्म अदायगी भर ही रह जाते हैं वहीं दूसरी तरफ समाज के नज़रिये में बदलाव न आने के कारण कड़े कानूनों के बाद भी धरातल पर महिलाओं की सुरक्षा में कोई बड़ा अंतर दिखाई नहीं देता है. इस वर्ष इस दिवस पर बोलते हुए पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने जिस तरह से महिलाओं की सुरक्षा के लिए "सिक्स पी" पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया है उससे वास्तव में परिस्थितियों में बदलाव लाया जा सकता है. इसमें पहले तीन पी 'पेरेंट्स', 'प्रिंसिपल' और 'पीपल' की पहली ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने आस पास महिलाओं की सुरक्षा पर अधिक ध्यान दें जिससे लड़कियों और महिलाओं को घर और उनके शिक्षा केन्द्रों में सुरक्षा का एहसास हो पाये और वे घर से लगाकर स्कूल तक इन तीनों के सहयोग से अपने को आने जाने में भी सुरक्षित महसूस कर सकें.
                                      इस सुझाव के दूसरे समूह में बेदी पॉलिटिशियन, प्रॉसिक्यूशन और प्रेस को रखती हैं क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के सामाजिक रूप से नियंत्रण में घर, स्कूल और समाज के बाद इन्हीं का स्थान आता है. किसी भी घटना में यदि राजनेता हस्तक्षेप न करें और कानून के सही अनुपालन के लिए प्रेस भी दबाव बनाये रखे तो आने वाले समय में इस तरह के अपराधों को पूरी तरह से नियंत्रण में लाकर भी समाज में सही सन्देश जा सकता है. आज पूरे परिदृश्य पर नज़र डालने से यही लगता है कि घरों में अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए समय नहीं है तो स्कूल भी केवल बेहतर प्रदर्शन के लिए ही काम करना चाहते हैं जिससे इन दोनों की उपेक्षा में जी रहे बच्चे आसानी से समाज में मौजूद उन तत्वों का शिकार बन जाया करते हैं जो मौके की तलाश में ही रहा करते हैं और महिलाओं की सुरक्षा जो घर परिवार, स्कूल और समाज से शुरू होनी चाहिए वह कहीं लुप्त सी हो जाती है.
                                      किसी भी अपराध में राजनेताओं के दबाव के कारण ही पुलिस अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाती है और जब रिपोर्ट लिखने में ही कमी रह जाती है तो अभियोजन पक्ष भी आरोप लगाने में कमज़ोर ही रहा करता है जिससे पूरे मामले में सजा देने की संभावनाएं काम ही होती जाती है. कई मामलों में यह देखा गया है कि प्रेस के बेहतर प्रदर्शन के कारण दोषियों को सलाखों के पीछे तक पहुँचाने में मदद मिली है क्योंकि कोर्ट ने प्रेस की रिपोर्टों पर भी ध्यान देते हुए अभियोजन पक्ष को फटकार तक लगायी है और दोषियों को सजा भी दी है. पुलिस में मानवीयता को बढ़ाकर समाज में उसकी छवि सुधारने के लिए किरण बेदी ने बहुत ही बेहतर काम किये हैं एक तरफ जहाँ उनके समय में पुलिस ने बेहतर तरीके से काम करना सीखा वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जेल में पहुंचे हुए अपराधियों को भी सुधारने का अपना क्रम जारी रखा जिससे किसी अपराधी को सदैव के लिए अपराधी बनने से रोकने में भी मदद ही मिली. महिलाओं की सुरक्षा आज भी देश में चिंताजनक स्तर पर ही है तो इसके लिए अब सख्ती से काम किये जाने की आवश्यकता भी है.         
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें