मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 29 मई 2014

अखिलेश सरकार है कहां ?

                                                बहराइच से दिल्ली जा रही डग्गामार खटारा बस जिस तरह से ११० सवारियों को लेकर अपने गंतव्य की तरफ दौड़ लगाने में लगी हुई थी उसके ऐसे दुखद अंजाम की कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी. रोडवेज़ बसों के मंहगे किराये, चुरेब की ट्रेन दुर्घटना से निरस्त और मार्ग बदली हुई कम ट्रेनों तथा सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार ने जिस तरह से दिल्ली जाने वाले गरीब मजदूरों की यह हालत कर दी उसके बाद यूपी सरकार कहीं भी दिखाई नहीं दी. सरकारी मशीनरी के गायब होने के साथ राजनैतिक दल भी अभी भी चुनावी खुमारी में ही डूबे हुए लगते हैं. पूरे घटनाक्रम में यदि कोई संतोषजनक बात रही तो वह केवल यही थी कि यूपी की एम्बुलेंस सेवा ने अपनी तेज़ गति के चलते घायलों को चिकित्सा सहायता बहुत ही जल्दी उपलब्ध करा दी जिससे भी यात्रियों को बहुत बड़ी मदद मिल सकी. पूरे यूपी में जिस तरह से बड़ी आबादी है उसके अनुसार कभी भी यातायात के साधन जनता को उपलब्ध ही नहीं रहते हैं जिससे इस तरह की दुर्घटनाएं आम तौर पर होती ही रहती हैं.
                                                हिमालय की तराई क्षेत्र से गरीब जिस तरह से अपने लिए कुछ कमाने के सपने के साथ दिल्ली की तरफ जाना पसंद करते हैं उस परिस्थिति में उनके लिए बेहतर संसाधन उपलब्ध ही नहीं होते हैं. लगता तो यह है कि यातायात, सड़क परिवहन और पुलिस की मिलीभगत के कारण इन लाभ देने वाले मार्गों पर जानबूझकर कम बसें लगायी जाती हैं जिससे यात्रियों को मजबूरी व लालच में निजी बसों में सफर करना पड़े और उनके धंधा पूरी तरह से चलता ही रहे. आज इस तरफ पूरी तरह से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि पूरे प्रदेश में मुख्य राजमार्गों पर पड़ने वाले पुलिस चौकी, थाना और कोतवाली पूरी तरह से वसूली के अड्डे ही बने हुए हैं और उनसे निजात पाने की कोई कोशिश भी सरकारी स्तर पर नहीं की जाती है. यात्रियों को राज्य परिवहन या निजी क्षेत्र द्वारा यह सुविधा देने की ज़िम्मेदारी खुद ही उठानी चाहिए पर संभवतः सरकार की प्राथमिकता में यह सब होता ही नहीं है और जनता को इसी तरह से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है ?
                                                एक सवाल प्रदेश के युवा सीएम से सीधे पूछने का मन करता है कि जब सरकार बड़े काम नहीं कर सकती है तो कम से कम एक नीति के तहत राज्य के सभी ज़िलों को पहले चरण में दिल्ली और लखनऊ से सीधे जोड़ने का प्रयास तो कर ही सकती है और जब इसमें सफलता मिल जाये तो अगले चरण में तहसील मुख्यालयों को इसी तरह की योजना में शामिल भी किया जा सकता है. इस मामले में एक नयी परिवहन नीति बनाकर सभी मार्गों को आवश्यकतानुसार सभी के लिए खोलने पर भी विचार किया जाना चाहिए क्योंकि जब तक प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तब तक यात्रियों को पूरी तरह से सुविधाजनक वाहन नहीं मिल पायेंगें. राज्य के हर ज़िले में नागरिकों की एक समिति बनायीं जानी चाहिए जो आवश्यकतानुसार परिवहन विभाग को अपनी संस्तुति दे सके और उस पर साधनों को उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी भी डाली जाये. ऐसा नहीं है कि कोई सरकार इसे नहीं कर सकती है पर जिस तरह से रोज़ ही पुलिस और अन्य विभागों को इस तरह से डग्गामार वाहनों को चलवाने से रोज़ ही लाखों रुपयों की कमाई होती हो तो क्या उसका हिस्सा नेता नहीं ले रहे होंगें ? इन सवालों का जवाब तो सरकार को देना ही होगा और अखिलेश को यह भी दिखाना होगा कि यूपी में सरकार नाम की कोई व्यवस्था आज भी ज़िंदा है.
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