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रविवार, 1 जून 2014

लोकसभा टीवी सीईओ और विवाद

                                                           मीरा कुमार द्वारा लोकसभा टीवी के सीईओ राजीव मिश्रा का कार्यकाल पूरा होने को जिस तरह से उनकी बर्खास्तगी के साथ जोड़ा जा रहा है वह अपने आप में एक नए तरह का आरोप है क्योंकि अभी तक सरकारी संचार माध्यमों में पूरी तरह से सरकार ही अपने नियमों के अनुसार काम किया करती है. लोकसभा और उसके टीवी के बारे में स्थिति यह है कि जब तक नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता है तब तक पुराने अध्यक्ष के पास ही लोकसभा की सारी शक्तियां समाहित रहा करती हैं. राजीव मिश्रा को जिस तरह से नवम्बर २०११ में दो वर्षों के लिए नियुक्त किया गया था उसके बाद भी उनके कार्य को देखते हुए उनको पूर्ण नियुक्ति न देते हुए उनका कार्यकाल मई २०१४ तक बढ़ा दिया गया था तो नैतिक आधार पर उन्हें अपना इस्तीफ़ा पहले ही सौंप देना चाहिए था. ऐसा संभवतः इसलिए किया गया था कि नयी लोकसभा का गठन मई में होना था और नए चुने जाने वाले स्पीकर पर यह मामला छोड़ दिया गया होगा पर मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से सत्ता सँभालने में लम्बा समय लगा उससे मामला उलझ गया लगता है.
                                                           राजीव मिश्रा का यह आरोप बेहद बेतुका ही लगता है कि मीरा कुमार ने उनके हारने कई खबर प्रसारित करने पर उन्हें दंड स्वरुप हटाया है जबकि वास्तविकता बताने के स्थान पर वे जनता और भाजपा की सहानुभूति बटोरना चाहते हैं. आज जिस तरह से मीराकुमार द्वारा उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया गया है तो वे उन पर आरोप लगा रहे हैं और यदि मीरा कुमार जाते समय उनको सेवा विस्तार दे जातीं तो क्या भाजपा और अन्य दल मीरा कुमार से यह प्रश्न नहीं पूछते कि उन्होंने नयी सरकार के आने कई प्रक्रिया के दौरान ही यह कार्य क्यों किया ? वैसे देश भर के कानून से अलग जब तक नए लोकसभाध्यक्ष अपना कार्यभार नहीं संभाल लेते हैं तब तक पुराने के पास पूरे अधिकारी सुरक्षित रहा करते हैं फिर भी पत्रकार होने के बाद भी राजीव मिश्रा ने जिस तरह से मामले को राजनैतिक रंग दिया है उससे वे भाजपा के नेताओं कई नज़रों में भले ही शहीद बन जाएँ पर मोदी की कार्यशैली को देखते हुए अब उनके लोकसभा टीवी में दिन पूरे हो गए लगते हैं.
                                                         मीरा कुमार के हारने पर उन्हें हटाए जाने का आरोप कितना छिछला है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्ही राजीव को मीरा कुमार द्वारा सेवा विस्तार भी दिया गया था और जब समाचार के रूप में सभी टीवी चॅनेल्स मीरा कुमार की हार कई खबर दिखा रहे हो तो एक लोकसभा टीवी के उस खबर को दिखाने या न दिखाने से क्या अंतर पड़ने वाला था ? राजीव ने निश्चित तौर पर अपने कार्यकाल में बेहतर कार्य किया और लोकसभा टीवी को नयी ऊंचाइयां भी दी पर उनकी इस हरकत ने उन्हें जहाँ राजनैतिक दलदल में खुला छोड़ दिया है वहीं उनके पास अब करने के लिए बहुत कुछ शेष भी नहीं बचा है. जिन नियुक्तियों के केवल पद विशेष की कृपा के चलते ही पाया जा सकता हो वहां पर इस तरह के आरोपों का कोई मतलब नहीं बनता था. मोदी सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है और नए लोकसभाध्यक्ष के लिए चुनाव शीघ्र होने वाला है तो ऐसे में राजीव मिश्रा को नए सीईओ के चुने जाने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी जिससे उनकी निष्पक्षता भी बनी रहती और संभवतः उन्हें अगले दो वर्षों या पूर्ण कलिक रूप में यह नियुक्ति भी मिल जाती.    
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