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सोमवार, 2 जून 2014

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

                                                          भारतीय राजनीति में नए राज्य तेलंगाना के उदय के साथ वहां के लोगों की अलग राज्य के रूप में अपने अस्तित्व को बनाये रखने की वो लड़ाई समाप्त हो जाएगी जो पचास के दशक में तेलंगाना के आंध्र प्रदेश में सम्मिलित किये जाने के साथ शुरू हुई थी. देश में जिस तरह से नए राज्यों का निर्माण किया जाता है आज तक उस प्रक्रिया का कोई ठोस स्वरुप सामने नहीं आ पाया है जिस कारण से भी अभी तक नए बने राज्यों ने उतना अच्छा काम करने में सफलता नहीं पायी है जितनी उन्होंने आशा की थी फिर भी राजनैतिक रूप से स्थिर राज्यों का प्रदर्शन अस्थिर राज्यों की तुलना में अभी तक बेहतर ही बना हुआ है जिससे यह भी पता चलता है की यदि राजनैतिक इच्छा शक्ति हो तो राज्य की भौगोलिक सीमाओं से उस पर कोई अंतर नहीं पड़ा करता है और वे प्रगति के नए मानदंड स्थापित करने में सफल हो सकते हैं.
                                               एक तरफ राज्य के बंटवारे के साथ ही तेलंगाना को वह सब मिल चुका है जो उसे विकास के नाम पर चाहिए था पर साथ ही अभी भी उसके सामने बड़ी चुनौतियाँ घटने का नाम नहीं लेने वाली हैं क्योंकि एक विकसित राज्य की आर्थिक वृद्धि दर को बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती के रूप में नयी चंद्रशेखर राव सरकार के सामने आने वाली है. राज्य की मांग करना एक मुद्दा हो सकता है पर सफलता पूर्वक सरकार को चलाये रखने के लिए जिस मज़बूती की ज़रुरत होती है अब राव में यही खोजी जाएगी और यदि वे कहीं से भी कुछ कमज़ोर पड़ते हुए दिखाई दिए तो आने वाले समय में जनता उनसे पूरा हिसाब भी मांगने वाली है. दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश के हिस्से में बहुत कुछ तो नहीं आने वाला है पर उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रहने वाली है कि उसे इस नयी चुनौती का सामना करने के लिए चन्द्र बाबू नायडू जैसा अनुभवी नेता सीएम के रूप में मिला है जिसके पास विकास की दृष्टि के साथ काम करने की इच्छा शक्ति भी है.
                                              तेलंगाना के ओडिशा से लगते सीमान्त चार जिलों में नक्सलियों का प्रभाव बना हुआ है और तटीय क्षेत्र होने के कारण उसे समुद्री लाभ मिलने के साथ ही समुद्र के कारण आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. देश की पूर्वी एशियाई देशों के साथ बढ़ती हुई आर्थिक गतिविधियों के बीच आंध्र प्रदेश अपने बंदरगाहों को आयात-निर्यात के एक बड़े केंद्र के रूप भी विकसित कर सकता है यदि उसको नए राज्य के रूप में मिलने वाली सहायता और रियायतों का सही तरह से उपयोग किया जा सके. आज नए बनने वाले किसी भी राज्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिजली, पानी और सड़क से जुड़ी हुई होती है और यदि आंध्र और तेलंगाना ने इस दिशा में सहयोग के साथ आगे बढ़ने का क्रम बनाने में सफलता पा ली तो आने वाले समय में ये दोनों राज्य एक दूसरे के साथ मिलकर विकास की नयी गाथा भी लिख सकते हैं. कानून व्यवस्था के साथ विकास के मोर्चे पर आशा की जानी चाहिए कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाने में सफल हो सकेंगें.

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