मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 31 मई 2014

बदायूं की सुर्खियां

                                                                               एक बार फिर से जिस तरह से बदायूं में हैवानियत की शिकार हुई मासूम बच्चियों को लेकर पूरे देश में राजनीति उबाल खाने लगी है उससे यही लगता है कि पहले से ही संकटों में चल रही अखिलेश सरकार के लिए आने वाले समय में काम करना और भी कठिन होने वाला है. पूरे मामले में जिस तरह से चर्चा में आये गाँव में दो जातियों के बीच संघर्ष की बात पहले भी सामने आई थी उसके बाद भी पुलिस और सरकार की तरफ से सामान्य सतर्कता भी नहीं बरती गयी तो उसके लिए किसी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है ? इस तरह की घटनाओं को केवल कानून के सहारे तभी निपटाया जा सकता है जब कानून को पूरी निष्पक्षता के साथ काम करने की छूट मिली हुई हो वरना जिस तरह से कानून का मज़ाक बनाने में यूपी के सपा समर्थक कभी भी पीछे नहीं रहते हैं उससे पार पाना अब अखिलेश सरकार के लिए आसान नहीं रहने वाला है. हर परिस्थिति में जब तक पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता जनता को महसूस नहीं होगी तब तक कोई भी प्रयास सार्थक नहीं को सकते हैं.
                                                           जब भी प्रशासनिक अक्षमता सामने आती है तो राज्य के मुखिया के तौर पर सीएम को ही जवाब देने होते हैं और आज जिस तरह से मीडिया पूरी तरह से हर जगह अपनी पहुँच बनाये हुए है उसमें कुछ भी छिपा पाना आसान नहीं होता है. अखिलेश द्वारा एक महिला पत्रकार को कल जिस तरह से जवाब दिया गया वह उनकी खीझ को ही अधिक दिखाता है किसी भी मसले पर पुलिस और प्रशासन के इस तरह के बर्ताव के लिए जवाब तो अखिलेश को देना ही होगा और यदि वे इससे बचना चाहते हैं तो सीधे तौर पर गृह मंत्रालय के प्रवक्ता को इस बात के लिए निर्देशित कर सकते हैं और पूरी तरह से प्रशासनिक कामों में किसी भी तरह की राजनीति भी बंद कर सकते हैं. उनका वोट समूह जिस तरह से आज अराजक लोगों की भीड़ बन चुका है तो उस परिस्थिति में अब उनको आगे बढ़कर कुछ कदम उठाने ही होंगें वरना आने वाले समय में उनके लिए चुनावी माहौल बहुत ही ख़राब होने वाला है.
                                                             एक पूर्ण बहुमत की सरकार भी किस तरह से दबाव में काम करती है इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपी की अखिलेश सरकार ही है क्योंकि पूर्ण बहुमत पाने के बाद जिस तरह से वे नए रूप में प्रशासनिक दक्षता के साथ काम कर सकते थे उसमें भी वे पूरी तरह विफल ही रहे और अपने कर्मों से आज सत्ता सँभालने के बाद अपने आधे कार्यकाल तक पहुँचने के बाद भी वे जिस तरह से अलग थलग हो चुके हैं वह उनके दबाव में आने के कारण ही है. आज जब पूरे प्रदेश में माहौल सपा के खिलाफ दिखाई दे रहा है तो भी वे पता नहीं किन मजबूरियों में अपने कुछ लोगों का दबाव मानकर बैठे हुए हैं. अब यदि उन्हें अपनी व्यवहारिता सिद्ध करनी है तो आगे बढ़कर कमान संभालनी ही होगी जिससे पूरे प्रदेश का माहौल सुधर सके. जिस तरह से उनके द्वारा सरकार का सञ्चालन किया जा रहा है उससे उनको कोई लाभ नहीं मिलने वाला है और आने वाले समय में उनको लोकसभा चुनावों से भी करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. राजनीति में हार जीत का महत्त्व नहीं होता पर अराजकता के साथ राज करने वालों के लिए रास्ते आसान भी नहीं हुआ करते हैं.      
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