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शुक्रवार, 13 जून 2014

यूपी का विकास आंकड़ों से वास्तविकता तक

                                                         यूपी में विकास की गति को तेज़ करने के लिय निवेशकों के सम्मलेन में जिस तरह सीएम अखिलेश यादव ने अपनी प्राथमिकताएं गिनाई हैं उनसे कुछ आशा तो अवश्य ही दिखाई देती है पर जिस तरह से राज्य में अराजकता का माहौल केवल समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के द्वारा ही उत्पन्न किया जा रहा है जब तक उस पर प्रभावी रोक नहीं लगायी जाती है तब तक किसी भी परिस्थिति में राज्य को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है. प्रदेश का विकास हो इस बात पर पूरा देश सहमत है पर जिस तरह से विकास से जुड़े मामलों में भी राजनीति को आगे रखा जाता है तो उस परिस्थिति में समग्र विकास आखिर कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? आज यूपी का विकास भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के एजेंडे में भी शामिल है क्योंकि जिस तरह से यूपी ने उन्हें इस बार के लोकसभा चुनावों में एकतरफा जीत दिलाई है तो उन्हें भी इस राज्य में २०१७ में फिर से अपनी सरकार बनने की संभावनाएं मज़बूती से दिखाई देने लगी हैं.
                                                         प्रदेश में कानून व्यवस्था की नहीं बल्कि सपा को अपने कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करने की सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि जिन स्थानों पर सपा मज़बूत है वहां पर उसके समसर्थक नेता या कार्यकर्त्ता पुलिस-प्रशासन पर अनावश्यक दबाव बनाकर राज्य सरकार के लिए समस्या बढ़ाने का काम ही किया करते हैं. जिस तरह से भाजपा ने यूपी लोकसभा चुनावों में पूर्ण बढ़त हासिल की है तो अखिलेश के पास विकल्प बहुत सीमित ही रह गए हैं अब प्रशासन को बड़े पैमाने पर परिवर्तित करने के स्थान पर उन्हें अपने मंत्रिमंडल को पुनर्गठित करने के बारे में सोचना ही होगा और बिना किसी दबाव को माने हुए एक प्रभावी युवा और कारगर मंत्रिमंडल बनाने की तरफ सोचना ही होगा. राज्य पहले भी इतना बड़ा था और इससे कम प्रशासनिक अधिकारी राज्य पर पूरा नियंत्रण रखने में सफल हो जाया करते थे आज अधिकारियों और नेताओं की पूरी फ़ौज़ मिलकर भी सुशासन क्यों नहीं दे पा रही है यह सवाल प्रासंगिक और सबसे महत्वपूर्ण भी है ?
                                                            यदि प्रदेश में सपा को अपना अस्तित्व बचाना है तो चाटुकार नेता और अधिकारियों के स्थान पर काम करने वाले लोगों को जाति-धर्म के भेद भाव से ऊपर उठकर क्षेत्र में तैनात करना ही होगा क्योंकि अब अखिलेश के पास अपना दम दिखाने के लिए सीमित समय ही बचा है भले ही चुनाव २०१७ में होने हैं पर उन्हें माहौल तो अभी से सुधारने की तरफ सोचना ही होगा. बेहतर होगा कि सीएम हर महीने में दो-दो दिन प्रदेश की बागडोर केवल लखनऊ के स्थान पर गोरखपुर, झाँसी, मेरठ जैसे महानगरों में बैठकर संभालें जिससे उनकी नियमित उपस्थिति जहाँ उनके लिए संजीवनी का काम कर सकती है वहीं न क्षेत्रों में उनके प्रवास से वहां की कानून व्यवस्था अपने आप ही बेहतर करने के लिए पुलिस प्रशासन को सोचने के लिए मजबूर भी कर सकती है. अखिलेश के लिए संघर्ष के साथ सरकार बनाना जितना मुश्किल काम था उसे चलाना उससे भी बड़ा दायित्व है और अब अखिलेश सरकार को केवल आंकड़ों से बाहर निकल कर कुछ ठोस करने के बारे में सोचना ही होगा वर्ना भाजपा अपने एजेंडे के साथ २०१७ की तैयारियों में तो जुट ही चुकी है.

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