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शनिवार, 14 जून 2014

सरकारी बंगले और नैतिकता

                                           केंद्रीय संसदीय कार्य और शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने जिस तरह से पूर्ववर्ती संप्रग सरकार में मंत्री रहे नेताओं से उनके सरकारी आवास खाली करने के लिए कहा है उससे यही लगता है कि आज भी लोकतंत्र में नेताओं को सरकारी सुविधाएँ भोगने में असीम सुख मिलता है. शहरी विकास मंत्रालय के माध्यम से ही दिल्ली में केंद्र सरकार के मंत्रियों को उनके पद और वरिष्ठता के अनुसार आवासों का आवंटन किया जाता है एक समय परिस्थिति में सरकार बदलने पर और नयी लोकसभा के गठन पर निवर्तमान मंत्रियों और सांसदों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपबे आवास को एक महीने की समय सीमा में छोड़ देंगें पर आज यह एक परंपरा सी बनती दिखाई दे रही है कि सांसद और मंत्री आसानी से अपने ये आवास खाली करने को राज़ी ही नहीं होते हैं जिससे कई बार मंत्रालय और सरकार के सामने असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
                                          जब जनता ने किसी व्यक्ति या सरकार को अपने जनादेश से सत्ता से हटा दिया है तो यह उनका कर्तव्य बनता है कि वे हर तरह की सरकारी सुविधाएँ स्वतः ही छोड़ दें और अपने क्षेत्र के नए प्रतिनिधियों के लिए मंत्रालय को आवश्यक उपाय और प्रबंध करने के अवसर प्रदान करें पर यह अभी तक कोई स्थापित परंपरा नहीं बन पायी है जबकि इस बार निवर्तमान पीएम मनमोहन सिंह ने परिणाम आने के साथ ही अपने नए बंगले में जाने की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी थी क्योंकि उनको यह पता था कि अब वे इस पद पर नहीं रहने वाले हैं. उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के लिए भी उनके आचरण का अनुकरण करना अच्छा होता क्योंकि जब तक सरकार में बैठे हुए मंत्री ही अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन नहीं कर पायेंगें तब तक आम सांसदों से ऐसे प्रदर्शन की आशा कैसे की जा सकती है.
                                          सत्ता बदलने के साथ ही पूर्व मंत्रियों और सांसदों को उनके आवास खाली कराने की ज़िम्मेदारी केवल शहरी विकास मंत्रालय की ही नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये किसी न किसी दल के सदस्य भी तो होते ही हैं तो इस परिस्थिति में सभी दलों को अपने इन सांसदों को खुद ही इन आवासों को खाली करने के लिए बोलना चाहिए. यह भी सही है मंत्रालय द्वारा इन पूर्व मंत्रियों और सांसदों को जो एक महीने की समय सीमा भी दी जाती है उसकी भी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि चुनाव के दौरान ही सभी को इस बात के लिए तैयार कर देना चाहिए कि हारने की स्थिति में उन्हें एक हफ्ते में ही यह सुविधाएँ छोड़नी होंगीं. इस समस्या से निपटने के लिए चुनाव के दौरान ही ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि नयी संसद की बैठक से पहले ही सभी को आवास मिल सकें और पूर्व मंत्री और संसद नए आने वाले लोगों के लिए खुद ही मार्ग प्रशस्त कर सकें.      
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