मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

भाजपा का रुख और अनावश्यक विरोध

                                                                     सरकार में आने के बाद से ही जिस तरह से भाजपा सरकार मज़बूत बहुमत होने के बाद भी कुछ मामलों में अजीब तरह से काम करने में लगी हुई है उससे निश्चित तौर पर ही उसकी और मज़बूत पीएम नरेंद्र मोदी की उस छवि को धक्का लग रहा है जो वह अभी तक दिखाया करती थी. पिछली सरकार का विरोध करते समय भाजपा ने कभी भी उचित-अनुचित का कोई ध्यान नहीं रखा और वह और उसके वरिष्ठ नेता यहाँ तक आगे बढ़ गए थे कि आज उन्हें मुंह छिपाने के लिए जगह नहीं मिल रही है. चीन से हुए युद्ध की रिपोर्ट पर अपनी नाराज़गी राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर दिखाने वाले और केंद्र में मोदी के नज़दीकी अरुण जेटली ने जिस तरह से इस मामले पर अपने ब्लॉग तक को अपनी साइट से हटा दिया है उससे उनकी अनावश्यक राजनीति का ही पता चलता है. यह सही है कि कोई भी शासक हर मामले में सही नहीं हो सकता है पर विपक्ष में रहते हुए क्या हमारे नेताओं और दलों को इस तरह का व्यवहार करने की छूट होनी चाहिए ?
                                                                  बेशक कांग्रेस के राज में हो रहे कामों के तरीके से जनता बहुत नाराज़ थी तभी उसने उसकी भूमिका को बहुत सीमित कर दिया है पर जिस तरह से आज की राजनीति में भाजपा बेनकाब हो रही है उससे क्या देश को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी ? आज संप्रग की जिन नीतियों को राजग सरकार पूरी तरह से लागू कर रही है तो क्या उससे यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब पिछली सरकार की यही नीतियां थीं तो उसने सदन में उनका समर्थन क्यों नहीं किया था और इन नीतियों के देर से लागू होने के लिए क्या भाजपा को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए ? मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का कोई तोड़ भाजपा के पास नहीं है और पीएम इस बात को समझते हैं तभी चुनाव परिणाम के बाद उन्होंने स्पष्ट तौर पर उनकी नीतियों का समर्थन भी किया था पर पार्टी की जिस राजनीति ने देश का इतना नुक्सान किया क्या उसके लिए संप्रग सरकार के साथ भाजपा को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए ? भाजपा विपक्ष में रहकर जिन नीतियों का पुरज़ोर विरोध किया करती थी आखिर वह आज किस तरह से उन पर आँखें मूंदकर चल रही है देश को इसका जवाब कौन देगा ?
                                                              लोकतंत्र में हर दल को राजनीति करने का पूरा हक़ है पर पता नहीं हमारे देश में वह सच्चा लोकतंत्र कब आएगा जब देश हित में सभी दल एक सुर में बोलकर नीतियों को दीर्घकालिक बनाये रखने पर सहमत होंगें ? आज देश की जनता ने भाजपा को सत्ता दी है तो उसे समझ में आ रहा है कि केवल विरोध की राजनीति और सार्थक विरोध में कितना बड़ा अन्तर होता है. आज जब वित्त मंत्री एक रुप में अरुण जेटली अपना पहला बजट पेश करेंगें तो यह देखना दिलचस्प होगा कि वे संप्रग की नीतियों को किन बहानों के साथ लागू करने के प्रस्ताव देश के सामने लाने की कोशिशें करते हैं ? जो कुछ भी हो चुका है क्या भाजपा उसे पीछे छोड़कर सार्थक राजनीति के साथ आगे बढ़ने को तैयार है अब यह भी देखना होगा. जो गलती अनावश्यक रूप से अंध विरोध कर भाजपा कर चुकी है अब वह नीतिगत मामलों में उसे हर जगह इसी तरह से परेशान करने वाली है और कांग्रेस को यह कहने का मौका बार बार मिलने वाला है कि भाजपा के पास उसकी आर्थिक नीतियों से बेहतर करने के लिए कुछ भी नहीं है तभी वह आँख बंदकर उन पर चलने को आमादा दिखाई देती है.        
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