मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

बजट और सरकार

                                                राजग सरकार के पहले बजट में जिस तरह से आम लोगों को कड़े प्रावधानों की आशंका थी वह काफी हद तक टूटती नज़र आई जब उसमें पहले से कहे जा रहे बहुत कड़े उपायों पर कोई विशेष सख्ती नहीं बरती गयी और सरकार ने एक सामन्य आर्थिक गतिविधियों को बनाये रखने वाले बजट के साथ अपनी वित्तीय पारी की शुरुवात कर दी. इससे उन लोगों को बहुत निराशा हुई होगी जो सरकार के कड़े क़दमों और वित्तीय अनुशासन के बारे में आस लगाये बैठे होंगे क्योंकि अपने पहले बजट में सरकार ने उन उपायों पर कोई बड़ा रणनीतिक बदलाव नहीं किया है. जनता में भी जिस तरह से लोक लुभावन बजट सुनने की आदत बन चुकी है उस पर भी यह बजट काफी हद तक खरा उतर सकता है क्योंकि इसमें लगभग हर क्षेत्र को समेटने का प्रयास किया गया है. केंद्र सरकार की नीतियों का टैक्स ढांचे के रूप में ही नागरिकों पर सबसे बड़ा असर पड़ता है और इस बार यही देखने को मिलने वाला है.
                                              समर्थन और विरोध के अलग अलग पहलू होते हैं यह अच्छा ही है कि सरकार ने पिछली सरकार के अधूरे कामों को उसी तरह से आगे बढ़ाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है और यह पहले से भी स्पष्ट हो चुका था जब चुनाव प्रचार समाप्त होने पर खुद मोदी ने भी मनमोहन सरकार की नीतियों के साथ लगभग अपनी सहमति दिखा दी थी. देश को आगे बढ़ाने में इस बात का कोई महत्व नहीं होना चाहिए कि उसे किसने शुरू किया या किसने ऎसे आगे बढ़ाया क्योंकि देश के आगे बढ़ने से नागरिकों का ही भला होता है और इससे चाहे जो सरकार जो भी उपाय करे उनका समर्थन ही किया जाना चाहिए. देश में वित्तीय अनुशासन की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जिस तरह से बड़ी केंद्रीय परियोजनाओं के लिए धन का आवंटन तो केंद्र किया करता है और उसको लागू राज्य सरकारें किया करती हैं तो दोनों ही इसकी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं जिससे भ्रष्टाचारियों को अपने पाँव ज़माने का अवसर मिल जाता है.
                                           नीतियां चाहे जो भी हों उन्हें देश के नौकरशाह ही बनाया करते हैं और उनका किस स्तर तक अनुपालन हो रहा है यह भी उन्हीं के हाथों में हुआ करता है ऐसी परिस्थिति में अब यह आवश्यक है कि कड़े वित्तीय अनुशासन के साथ आगे बढ़ने वाले राज्यों को विशेष प्रोत्साहन दिए जाने की व्यवस्था की जाये और जो राज्य इस मामले में ध्यान नहीं दे रहे हैं उनकी हर तरह की केंद्रीय सहायता पर रोक और कटौती के प्रस्ताव भी लाएं जाएँ तथा उन पर सख्ती से अमल भी किया जाये. जनता के पैसे का किसी भी परिस्थिति में यदि दुरूपयोग बंद करने में सफलता मिल सके तो आने वाले दिनों में सरकारों के पास प्रचुर मात्रा में धन की उपलब्धता भी बनी रहेगी और विकास की गति को बनाये रखा जा सकेगा. मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार पर जिस तरह से पिछली सरकार ने निगरानी और नियंत्रण के लिए प्रयास शुरू किये थे आज उन पर भी हर योजना में अमल किये जाने की आवश्यकता है. बजटीय प्रस्तावों का असर एक दो दिन नहीं वरन लम्बे समय तक बना रहता है इसलिए इस मसले पर अनावश्यक राजनीति से दूर रहने के बारे में सभी दलों को सोचना ही होगा.     
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