मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 18 अगस्त 2014

पाक का कश्मीर राग

                                                                              हमेशा की तरह घरेलू घटनाओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए भारत को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले पाक ने इस बार फिर से भारत की राजग सरकार के सभी शांति स्थापना के प्रयासों पर पानी फेरने का काम शुरू कर दिया है. २५ अगस्त से इस्लामाबाद में भारत-पाक के विदेश सचिवों की वार्ता से पहले जिस तरह से नई दिल्ली स्थित पाक उच्चायुक्त ने कश्मीर के अलगाव वादियों को विचार विमर्श के लिए बुलाया है उससे यही समझा जा सकता है कि पाक के लिए भारत के साथ सम्बन्ध सुधारना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना अलगाववादियों का समर्थन ? आज के परिवेश में पाक भी यह बात अच्छी तरह से समझता है कि छद्म युद्ध या पूर्ण युद्ध के माध्यम से वह कश्मीर को हासिल करने की स्थिति में नहीं है तो वह हर तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों से पहले कश्मीर को सामने लाकर अपनी मंशा को ही ज़ाहिर किया करता है जिससे वह भारतीय प्रतिनिधिमंडल पर कुछ मनोवैज्ञानिक दबाव बना सके.
                                                     भारत में अभी तक मोदी की पूर्ववर्ती सरकारों ने पाक के इस तरह के प्रयासों का केवल बयान देने तक ही विरोध किया और बातचीत को आगे बढ़ाने के साथ तनाव काम करने पर ही ज़ोर दिया है पर इस बार चुनावों में जिस तरह से पाक को सबक सिखाने की बातें करते हुए सरकार बनी है तो जनता की अपेक्षाएं सरकार से बढ़ी हुई हैं. इस परिस्थिति में अब सरकार इसे कैसे ढंग से लेती है यह तो आने वाले समय में ही पता चल पायेगा पर एक बात स्पष्ट हो चुकी है कि भारत सरकार चाहे कुछ भी कहती रहे पर पाक की सेना और सरकार अलगाववादियों का समर्थन नहीं बंद कर सकती है क्योंकि कश्मीर में जिहाद के नाम पर दुनिया भर के इस्लामिक देशों से जो धन इकठ्ठा किया जा रहा है फिर वह कैसे मिल पायेगा और पाक में चल रहे और दुनिया भर के लिए समस्या बन चुके आतंकी अड्डे कैसे चल पायेंगें ?
पाक द्वारा हर बार की जाने वाली इस तरह की हरकत केवल इस बात का ही संकेत दिया करती है.
                                                     पाक का अपना वजूद आज भारत के प्रतिरोध के बिना संभव नहीं है क्योंकि जब भी पाक कश्मीर, भारत और जिहाद से अपना ध्यान हटाता है तो उसके नागरिकों को अपनी दयनीय स्थिति का अंदाज़ा होने लगता है जिससे वे सरकारों और सेना की बढ़ती गतिविधियों का विरोध करने लगते हैं. भारत सरकार को अब इस मुद्दे पर पुराने रवैये को ही बनाये रखना है या फिर कुछ कड़ा सन्देश देते हुए उसकी मंशा पाक को यह समझाने की भी है कि अब भारत के खिलाफ बोलने वालों के साथ बातचीत जारी रखने पर पाक से संबंधों में ठहराव भी आ सकता है ? ऐसा कड़ा कदम उठाने के लिए अभी सरकार संभवतः तैयार नहीं है और पाक ने इस मसले पर पूरी तैयारी से ही इस तरह की हरकत की है यदि आज नवाज़ शरीफ अपने पर आ रहे दबाव को काम करने के लिए भारत को उकसाना चाह रहे हैं तो भारत के किसी भी कठोर कदम से उनकी सरकार की स्थिरता की संभावनाएं भी बढ़ती ही हैं. कश्मीरी अलगाववादी अपने लिए इसे एक अवसर ही मानते हैं और इसी बहाने वे अपने अस्तित्व को भी बचाये रखना चाहते हैं.            
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