मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 17 अगस्त 2014

यूपी का घमासान

                                                 वैसे तो अभी यूपी की वर्तमान अखिलेश सरकार और विधान सभा ने अपने कार्यकाल का आधा सफर भी तय नहीं किया है पर जिस तरह से भाजपा ने पिछले आम चुनावों में यहाँ अप्रत्याशित जीत हासिल की है उसके बाद से सभी दलों में देश के इस सबसे बड़े और राजनैतिक रूप से अति महत्वपूर्ण राज्य पर अपनी नज़रें गड़ा ही दी हैं. केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने जिस तरह से अपने केंद्रीय संगठन की टीम में यूपी को पर्याप्त स्थान दिया है उसके बाद उसकी प्राथमिकता तो स्पष्ट हो ही जाती है पर सपा के अंदर जिस तरह से आज़म के प्रभाव को कम करने की कोशिशें चल रही हैं वे इस बार पार्टी की चुनावी संभावनाओं लिए बहुत बड़े स्तर पर असर डालने वाली हैं. इस पूरी कवायद के बीच जहाँ बसपा की सार्वजनिक उपस्थिति सबसे कम ही नज़र आती है वहीं उसके चुनावी अभियान की तैयारियों का एक चरण लगभग पूरा ही हो रहा है और इस पूरे परिदृश्य में कांग्रेस के पास संभवतः बचाने के लिए कुछ अधिक है भी नहीं.
                                            पिछले कुछ दशकों में जहाँ यूपी ने जातिगत राजनीति में उलझकर अपने राष्ट्रीय महत्व को पूरी तरह से खो ही दिया था इस बार भाजपा के बढ़ते हुए प्रभुत्व से उसकी प्रतिष्ठा एक बार फिर से बढ़ने की तरफ जाती दिख रही है क्योंकि केंद्र में भाजपा के बड़े नेताओं ने भी यूपी को ही अपने प्रतिनिधित्व के लिए चुना है तो उसके पीछे उनकी भी स्पष्ट रणनीति है जिस पर चलकर वे यूपी में अपनी उपस्थिति को बनाये रखकर राज्य विधान सभा चुनावों में अपने को आगे बढ़ाने की कोशिशें करते हुए दिख रहे हैं. देश के विकास के लिए यूपी का पूरे देश के साथ चलना बहुत आवश्यक है पर आज भी यहाँ पर जिस तरह का विभाजन दिखाई देता है वह आने वाले समय में यूपी के लिए बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है. यह सही है कि क्षेत्रीय दल जनता की आकांक्षाओं को समझने में राष्ट्रीय दलों के मुकाबले अधिक कारगर साबित हो रहे हैं पर ऐसा हर राज्य में तो दिखाई नहीं दे रहा है और जहाँ पर कांग्रेस और भाजपा मुख्य मुकाबले में है वहां उनके लिए संभावनाएं सदैव बनी ही रहती हैं.
                                   आज यूपी में भाजपा की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए सबसे अधिक शक्ति प्रदर्शन उसमें ही चल रहा है और पुराने नेताओं को किनारे किये जाने की मोदी नीति के चलते अब अवसर मिलने पर भाजपा के नए लोगों के हाथ में सत्ता जानी है तो उसके लिए अभी से सोशल मीडिया पर लड़ाई शुरू हो चुकी है. अखिलेश सरकार पर आज आज़म खान कमज़ोर होने का आरोप लगा रहे हैं पर इतने वरिष्ठ और सपा के संस्थापक नेता के इस तरह के बयानों का सरकार और पार्टी पर क्या असर पड़ रहा है यह शायद मुलायम भी जानते हैं फिर भी कानून व्यवस्था को नेताओं के चंगुल से अलग किये बिना स्थिति सुधरने वाली नहीं है. सपा के शासन में जिस तर से उसके स्थानीय नेताओं द्वारा पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाया जाता है आज की ध्वस्त कानून व्यवस्था उसका ही परिणाम है. आने वाले चुनावों में सपा से नाराज़ वोटरों का ध्रुवीकरण बसपा के पक्ष में होने की पूरी सम्भावना है क्योंकि प्रदेश में भाजपा को सबसे कड़ी टक्कर दे पाने में केवल वही सक्षम दिखाई देती है. फिलहाल यूपी के इतिहास में शायद यह पहली बार ही हो रहा है कि सरकार के कार्यकाल का आधा समय होने से पहले ही अगले चुनावों की तैयारियां शुरू हो गयी हैं.   
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