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बुधवार, 20 अगस्त 2014

लड़कियों की ड्रेस और गुजरात पुलिस

                                                             देश के आधुनिक और विकसित राज्य का दम भरने वाले गुजरात में पोरबन्दर पुलिस ने लड़कियों से जींस और टी शर्ट न पहनने की जो अपील की है उसके आने वाले समय में क्या निहितार्थ निकाले जायेंगें यह तो बाद में ही पता चल पायेगा पर क्या देश की खाप पंचायतों और कुछ धार्मिक संगठनों की तर्ज़ पर किसी राज्य की पुलिस को संविधान से यह अधिकार मिला हुआ है कि वह लड़कियों से इस तरह के मध्यकालीन व्यवहारों की अपेक्षा करे ? गुजरात देश के उन प्रदेशों में से है जहाँ आज के महिला सीएम पद पर बैठ हुई हैं और उनके होते हुए इस तरह से किसी की निजता का उल्लंघन कानून या अपील के ज़रिये करने का क्या मतलब बनता है यह समझ से बाहर ही है. इस मसले पर अब गुजरात के गृह मंत्रालय और सीएम कार्यालय को यह स्पष्ट करना ही चाहिए कि क्या इस तरह की किसी भी अपील को सरकारी स्तर पर कोई समर्थन या आदेश के माध्यम से लागू किया जा रहा है या फिर यह किसी व्यक्ति विशेष के दिमाग की उपज ही है ?
                                                            एक तरफ गुजरात की पृष्ठभूमि से आये हुए पीएम लालकिले से यह कहते हैं कि समाज को अपने लड़कों पर भी ध्यान देना चाहिए और लड़कियों और महिलाओं पर बंदिशें लगाने के स्थान पर लड़कों को भी नैतिकता का पाठ पढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए वहीं दूसरी तरफ उनके इस आह्वाहन और सम्बोधन के एक हफ्ते के अंदर ही पोरबन्दर में पुलिस अपनी मानसिक स्थिति का इस तरह से परिचय देने से नहीं चूकती है. इस मसले पर किसी भी तरह की मॉरल पुलिसिंग से पूरी तरह बचने की आवश्यकता है क्योंकि जब लड़कों की गलतियों की सजा लड़कियों पर ड्रेस कोड के माध्यम से लागू की जाने लगेगी तो आने वाले समय में लड़कों के हौसले और भी बढ़ सकते हैं. इससे अच्छा होगा कि पुलिस सामाजिक स्तर पर मोहल्ले स्तर पर बुजुर्गों की समितियां बनाये जो मोहल्ले में अराजकता पैदा कर रहे लड़कों पर नज़र रखने का काम कर सके जिससे बिना किसी बाहरी दबाव के बच्चों पर सही प्रभाव पड़ सकता है और लड़कियों के लिए माहौल भी अच्छा हो सकता है.
                                                        पोरबन्दर पुलिस के इस तरह के अभियान का वैसे तो आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि पुलिस अपने काम को ही ठीक से नहीं कर पाती है और इस तरह के विवादित मसलों में घुसने की कोशिशें करती रहती है. यहाँ पर महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या लड़कियों के ड्रेस पहनने मात्र से ही लड़कों की पुरुष प्रधान मानसिकता में कोई अंतर आ जायेगा जो अभी तक नहीं आ पा रहा है ? शहर हो या देश के दूर दराज़ में बसा हुआ अन्य गाँव का कोई और स्थान वहां पर तो लड़कियां पुलिस के अनुसार शालीन ड्रेस ही पहनती हैं फिर वहां पर पुरुषों की नज़र और नियति क्यों ख़राब होती है ? आज जो कमी हमारे समाज में है उसे दूर करने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि जब तक पुरुषों की सोच और मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा तब तक कोई खाप, धार्मिक समूह या समाज के ठेकेदार इस तरह की बयान बाज़ी से बाज़ नहीं आने वाले हैं और लड़कियों के लिये परिस्थितियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है. शर्म की बात यह भी है कि यह सब पोरबन्दर की पुलिस द्वारा किया जा रहा है जहाँ पैदा होने वाले गांधीजी ने असमानता के खिलाफ लड़ते हुए अपने जीवन को त्याग दिया था.   
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