मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

महिला सुरक्षा- मोदी और राहुल के बयान

                                                      एक सप्ताह के अंदर ही जिस तरह से पीएम ने लालकिले से महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार / व्यवभिचार के लिए समाज को यह कहकर ज़िम्मेदार माना कि हम अपनी लड़कियों की फ़िक्र तो रखते हैं कि वे क्या कर रही हैं पर अपने लड़कों के बारे में कभी नहीं सोचते कि वे क्या कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के सम्मलेन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल ने भी इसके लिए समाज को ही ज़िम्मेदार माना और जिस तरह से उन्होंने सच्चाई को खुले तौर पर सबके सामने रखा उससे भी विवाद की शुरुवात हो सकती है क्योंकि भारतीय राजनीति और समाज को इस तरह की बातें सुनने की आदत ही नहीं रही है. देश की दो बड़ी पार्टियों द्वारा इस तरह से सोचने से क्या समाज पर इसका कोई असर भी दिखाई देगा या समाज अपनी पुरुष प्रधान मानसिकता के साथ इसी तरह से जीता रहेगा और लड़कियों महिलाओं के खिलाफ चलने वाले अत्याचार पर इसी तरह से चुपचाप रस्म अदायगी के तौर पर कुछ निरर्थक विरोध ही करता रहेगा ?
                                                     महिलाओं के खिलाफ अत्याचार अपने में एक विशेष तरह की बात है क्योंकि जिस समाज में हर घर में महिलाएं और लड़कियां हैं वहीं पर इस तरह से उनके खिलाफ अत्याचार होते रहते हैं जिससे कभी भी समाज में सुधार की बातें नहीं हो पाती हैं. यदि कानून बनने से ही समाज में सुधार हो जाता तो निर्भया कांड के बाद ही पूरा परिवर्तन हो जाना चाहिए था क्योंकि जिस तरह से कड़े कानून बनने के बाद भी समाज में इस तरह की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई हैं उससे यही लगता है कि आने वाले समय में भी विशेष परिवर्तन की आशा नहीं है. हम अपने घरों में जब तक लड़कियों और लड़कों में अंतर मानते रहेंगे तब तक समाज में यह अंतर बना ही रहेगा अब भी समाज में इस बात को लेकर केवल चिंता ही व्यक्त की जाती है और घरों में इसी तर के भेदभाव को बढ़ावा दिया जाता रहता है. कोई भी सरकार केवल कानूनों को ही कड़ा कर सकती है जबकि समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने का काम खुद समाज को ही करना पड़ेगा.
                                                    राहुल का कहना केवल एक संकेत मात्र ही है और उस पर अनावश्यक विवाद करने से समाज पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि जब उन्होंने पंजाब की एक जनसभा में वहां की सही स्थिति को यह कहकर स्पष्ट किया था कि आम पंजाबी युवक नशे की गिरफ्त में है और नशेड़ी बनता जा रहा है तो उस पर बहुत हाय तौबा मचा था. आज वहां की स्थिति को पंजाब की अकाली सरकार ने स्वीकार किया है और किरण बेदी के सहयोग से युवाओं के सुधार और नशा मुक्ति के बारे में राज्य व्यापी अभियान को चलाने की कोशिश की जा रही है. निर्भया कांड के समय भी इस तरह की ख़बरें आम थीं कि मेट्रो और बसों में प्रदर्शन का वापस आ रही लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था तो क्या वह हमारे समाज की ही सही झलक नहीं थी ? ऐसे में राहुल का यह कहना कि जो लोग महिलाओं को माता-बहन कहते हैं, मंदिरों में माथा टेकते हैं, देवी की पूजा करते हैं वही बसों में महिलाओं को छेड़ते हैं आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि हमारी सामाजिक सोच में ही ऐसी कमी है पर इसको किसी धर्म विशेष के साथ जोड़कर दूसरे स्वरुप में इसका दुष्प्रचार किया जाना संभवतः कुछ लोगों को राजनैतिक लाभ भी दे सकता है.       
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