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शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

यूपी- छेड़खानी और तनाव

                                                                                         पिछले वर्ष केवाल में हुए सांप्रदायिक संघर्ष और व्यापक पलायन के बाद भी जिस तरह से आज तक यूपी सरकार का प्रशासन और पुलिस काम करने के ढंग में परिवर्तन नहीं ला पाया है उसके कारण ही जगह जगह पर छेड़छाड़ की घटनाएँ बड़े संघर्ष की तरफ बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं. पिछले हफ्ते खुर्जा में भी इसी तरह से एक छेड़खानी के मामले में मामला इतना बढ़ गया कि पूरे इलाके की पुलिस को वहां इकठ्ठा करना पड़ा और वहां के माहौल में भी ज़हर घुलता नज़र आया. कल ही जिस तरह से हापुड़ से घर लौट रही एक इंटर की छात्रा के साथ हुई छेड़खानी ने बहादुरगढ़ समेत कई गांवों में तनाव बढ़ा दिया और आगज़नी की घटनाएँ भी हुई उससे यही लगता है कि पूरे प्रदेश में असहिष्णुता का माहौल अपने चरम पर है तथा जब तक इस मामले में प्रशासनिक सख्ती नहीं की जाएगी समाज विरोधी तत्व पूरे प्रदेश में इसी तरह का माहौल उत्पन्न करते ही रहेंगें. अब जब सरकार के पास ही इस तरह की घटनाओं से निपटने की ताकत है तो उसे कैसे रोका जाये यह बड़ा प्रश्न बनकर सामने आ रहा है.
                                          अधिकांश मामलों में स्थानीय स्तर पर शोहदों पर लगाम कसने में पुलिस पूरी तरह से विफल ही रह रही है और आज जब यह मुद्दा पूरे प्रदेश की शांति पर असर डाल रहा है उसके बाद भी सरकारी स्तर पर कोई ठोस प्रयास दिखाई नहीं देता है जिसके माध्यम से इन्हें रोका जा सके और मामूली घटनाओं को पुलिस के स्तर पर ही रोकने और कार्यवाही करने की तरफ बढ़ा जा सके. आज भी पूरे प्रदेश में इन मनचलों के कारण लड़कियों और महिलाओं का सड़क पर निकलना मुश्किल ही है तो इसके बारे में सरकार कोई कड़ा कदम उठाने के बारे में क्यों नहीं सोचती है ? गृह मंत्रालय यदि केवल विद्यालयों के समय ही मुख्य मार्गों पर पुलिस की नियमित गश्त की व्यवस्था कर दे तो इस तरह के असामाजिक तत्वों का जमावड़ा अपन आप ही ख़त्म हो जायेगा और साथ ही इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सामाजिक समितियां भी बनाने की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे स्थानीय स्तर पर होने वाली घटनाओं में दोषियों को चिन्हित कर दण्डित किया जा सके.
                                          इस मामले में अब प्रदेश सरकार को एक बड़े अभियान की तरह काम करना होगा और यह काम निश्चित समयावधि के स्थान पर औचक निरीक्षण के रूप में किया जाये. कम से कम ज़िले पर काम कर रहे महिला थानों को इतनी सुविधाएँ देने की तरफ सोचा जाना चाहिए जिससे वे लड़कियों के विद्यालयों के समय सामान्य नागरिकों की तरह गश्त कर पाने में सफल हो सकें और उनके साथ कार्यवाही करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भी कम सूचना पर ही घटना स्थल पर पहुँचने में सक्षम हो. जब तक इस समस्या को पुलिस की निष्पक्ष कार्यवाही और समाज की चौकसी से नहीं जोड़ा जायेगा तब तक इनका लाभ समाज विरोधी तत्व अपने हितों को साधने के लिए करते ही रहने वाले हैं. पुलिस को भी स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि लड़कियों और महिलाओं से छेड़खानी से सम्बंधित मामलों पर व त्वरित गति से काम करे और दोषियों को पहले चेतावनी और न सुधरने पर सजा देने की तरफ भी बढ़ने की आज़ादी होनी चाहिए. इस तरह के मामलों में सत्ताधारी दल या अन्य किसी भी दल के स्थानीय नेता को इस तरह के प्रकरण में हाथ डालने पर पुलिस द्वारा उसकी सूचना एसपी को भेजने की आवश्यक व्यवस्था भी होनी चाहिए जिससे मामले को बिगाड़ने के दोषियों का भी पता चल सके.    
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