मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

काले धन पर राजनीति

                                                                     सुप्रीम कोर्ट में संप्रग सरकार की तरह की भाषा बोलने के बाद से राजग सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया से लगाकर टीवी तक हर जगह विरोधियों के निशाने पर हैं और भाजपा के पास बोलने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचा है क्योंकि उन्होंने आम चुनावों में प्रचार के दौरान जिस तरह से तत्कालीन संप्रग सरकार पर गंभीर आरोप लगाये थे उसके बाद उनकी अपनी सरकार के सुर भी उसी तरह के सुनाई दे रहे हैं. यह सही है कि अमीर भारतीयों का बहुत सारा धन विदेशों में जमा है पर इस मामले पर अभी तक कोई ठोस कार्यवाही का ताना बाना इसलिए भी नहीं बुना जा सका है क्योंकि स्विस बैंक के नियमों के तहत वहां की सटीक जानकारी के बिना वह कोई भी जानकरी किसी भी देश की सरकार को उपलब्ध नहीं कराता है. यह बात चुनाव के समय भाजपा और मोदी को भी पता थी पर उन्होंने स्वामी रामदेव के सुरों में सुर मिलाते हुए जिस तरह से जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की आज वह टूटती नज़र आ रही है. देश के अंदर कानून परिवर्तन जितनी आसानी से संभव है देश के बाहर के कानूनों पर वह तेज़ी कभी भी संभव नहीं है.
                                                     सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार पिछली और वर्तमान सरकार स्विस सरकार के संपर्क में है और अपने बैंकों के मामले में जिस तरह से स्विस सरकार उनका समर्थन करती है तो उससे किसी बड़ी सहायता की आशा रखना भी गलत ही है. स्विट्ज़रलैंड की अर्थव्यवस्था ही पर्यटन और इन बैंकों पर बहुत हद तक निर्भर करती है तो वह अपनी आय के इस बड़े स्रोत को किसी भी स्तर पर क्यों कमज़ोर करना चाहेगा ? भारतीय परिप्रेक्ष्य में काला धन चुनावी मुद्दा अधिक है पर उसे लाने के प्रयास तो दोनों देशों के संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय कानून से बंधे हुए हैं. स्विस सरकार इनकी किस हद तक रक्षा करती है यह इसी बात से पता चलता है कि विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका को भी आज तक काले धन के मुद्दे पर वहां से कोई बड़ी सफलता नहीं हासिल हुई है और जो भी प्रयास किये गए हैं वे कभी भी अंतिम परिणीति को नहीं पा सके हैं तो भारत को वहां से कितनी उपलब्धि हासिल होगी यह समय की बात है.
                                                     काले धन पर आज देश में कड़े प्रयत्न करने और भ्रष्टाचार निरोधी तंत्र को मज़बूत करने की भी आवश्यकता है जिससे पिछले भ्रष्टाचार को खोलने के साथ भविष्य में इसे रोकने या न्यूनतम स्तर तक लाने की कोशिश की जा सके. देश केवल बयानबाज़ी से नहीं चला करता है पर उसका भी अपना एक महत्व हुआ करता है अब समय आ गया है कि इस तरह के देश के लिए महत्वपूर्ण मसलों पर राजनैतिक दल संसद में संकल्प पारित करें और उस पर पूरी तरह से टिकने की कोशिशें भी करें. एक दूसरे पर निजी हमलों से देश की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर ही असर पड़ने वाला है और उससे भविष्य में परिस्थितियां और भी बुरी हो सकती हैं. भाजपा और मोदी ने कानूनी और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनावों में जमकर राजनीति कर जनता को नए तरह के सपने दिखाए और अब कांग्रेस भी उस पर उसी तरह से हमले कर रही है ? अच्छा हो कि सभी दल समवेत रूप से कानूनों और समझौतों की समीक्षा करें और यदि कोई कानून या समझौता देश के हित में नहीं है तो उसे हटाने का सर्वसम्मत निर्णय भी करें क्योंकि इस तरह के गंभीर मुद्दों पर अब घटिया दलीय राजनीति तो बंद की ही जानी चाहिए.        
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