मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 12 जनवरी 2015

आतंकी घटना - विवेचना का स्वरुप

                                                देश में किसी भी जगह पर होने वाली आतंकी घटना के बाद जिस तरह से पुलिस की विवेचना शुरू होती है और उसके परिणाम स्वरुप कुछ मुस्लिम युवकों को क्षेत्र विशेष से कुछ सुरागों के आधार पर हिरासत में लिया जाता है वह अपने आप में निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है. पहले जिस तरह से यूपी में आजमगढ़ और अब कर्नाटक में भटकल क्षेत्र को लेकर पुलिस द्वारा पहले से ही ऐसा माना जाता है कि इन घटनाओं से जुड़ने वाले सभी युवक कहीं न कहीं इस्लामी चरम पंथियों से जुड़े हुए हैं तो इससे हमारे देश का तंत्र हर स्तर पर उन आतंकियों की उस कोशिश की ही मदद करता दिखता है जिसे वे किसी भी दम पर भारत में सच करना चाहते हैं. आज पूरी दुनिया में यह बहस का बड़ा मुद्दा बन चुका है कि इस्लाम के अनुयायी सबसे अधिक आतंकियों का समर्थन करने में क्यों लगे हुए हैं जबकि इसके पीछे कुछ मसले ऐसे भी है जिनसे इस सब की शुरुवात आधुनिक विश्व में हुई और आज उसका प्रतिरोध या प्रतिक्रिया पूरी दुनिया में दिखाई दे रहा है. धर्म और आतंक के बीच में किसी भी जुड़ाव के मसले को सरकार और पुलिस को सदैव ही गंभीरता से लेना चाहिए जबकि इसमें हर स्तर पर चूक ही होती है.
                         पुलिस का काम ही संदेह करना है पर क्या हम इस बात पर अपने उन मुस्लिम युवकों या लोगों को जवाब दे सकते हैं जो कई वर्षों तक विभिन्न संदिग्ध मामलों में जेल में बंद रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट के द्वारा छोड़ दिए जाते हैं क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं होते हैं ? दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है पर यदि किसी पर संदेह है तो उसके खिलाफ मामले को प्राथमिकता के आधार पर चलाकर किसी निर्णय पर पहुँचने की कोशिश करनी चाहिए यदि उनका किसी भी स्तर पर कोई जुड़ाव देश विरोधी तत्वों से मिलता है तो कानून के अनुसार तय समय सीमा में उन्हें सजा भी दी जानी चाहिए. आज भी देश के विभिन्न राज्यों में बहुत सारे ऐसे मुस्लिम और आदिवासी क्षेत्रों के युवा जेलों में बंद हैं जिन्हें या तो इस्लामिक चरमपंथियों या नक्सलियों के साथ सम्बन्ध होने के चलते केवल संदेह के आधार पर हिरासत में लेकर केस चलाया जा रहा है और उसमें पुलिस की तरफ से विवेचना के स्तर पर कुछ भी ख़ास नहीं किया जा रहा है जो कि भविष्य के लिए बहुत ही चिंताजनक है. इन कुछ मामलों को आधार बनाकर ही आतंकी समूह आज शिक्षित मुस्लिम युवाओं को अपनी सोच में ढालने का काम करने में लगे हुए हैं कि भारत में निर्दोष मुस्लिम युवकों को जेल में डाला जाता है.
                      देखने में तो यह बहुत ही संवेदनशील मसला है पर इस पर भी जिस तरह का राजनीतिक दबाव बनाया जाता रहा है उससे केवल देश का ही नुक्सान हो रहा है इस मुद्दे पर बहुत मुखर रहने वाली भाजपा आज केंद्र और अधिकांश राज्यों में सत्ता में है तो अब यह उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि इन मामलों से निपटने के लिए केंद्रीय स्तर पर कोई विशेष कानून या दिशा निर्देश जारी करने के बारे में सोचे. गैर भाजपाई दलों द्वारा द्वारा संदिग्धों के विरुद्ध मामलों को लंबित किये जाने में आज तक भाजपा की इस तरह की दबाव की राजनीति का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है क्योंकि वह इन्हें मुस्लिम युवकों के खिलाफ पैरवी में कमी के तौर पर प्रस्तुत करने से बाज़ नहीं आती है. दोषियों को सजा मिले पर निर्दोष किसी भी तरह से केवल संदेह के आधार पर जेल में बंद किये जाते रहें और उनके केस की सुनवाई तथा विवेचना के स्तर पर कोई ठोस प्रगति सालों तक न हो पाये इससे किसका भला हो सकता है ? अब देश की सोच को इस तरह के मामलों में पूरी तरह से प्रोफेशनल करने की ज़रुरत है जिसमें समयबद्ध तरीके से जांच और विवेचना हो तथा केवल संदेह के आधार पर किसी को भी जेल में लम्बे समय तक बंदी बनाये रखने की प्रथा को पूरी तरह समाप्त किया जाये. यदि जांच में किसी की भूमिका संदिग्ध पायी जाए तो उसे भी व्यापक ज़मानत आदि पर अपना जीवन सुधारने का अवसर देने के बारे में सोचना आवश्यक हो चुका है.       
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