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मंगलवार, 13 जनवरी 2015

एयर इंडिया मज़बूती की तरफ ?

                                देश की सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कम्पनी एयर इंडिया ने जिस तरह से दिसंबर माह में १४.६ करोड़ रूपये का लाभ कमाया है उससे कहीं यह आशा भी जागने लगी है कि पिछले तीन वर्षों से इस कम्पनी को बचाने के लिए जो भी उपाय किये जा रहे थे अब उनका प्रभाव दिखाई देना शुरू हो रहा है. एक समय देश के आसमान पर एक छत्र राज करने वाली एयर इंडिया के सामने कुछ साल पहले अस्तित्व बचाने का संकट आ गया था जिससे निपटने के लिए सरकार पर दबाव पड़ने के साथ ही इसके परिचालन को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने कुछ उपायों की घोषणा की थी जिसके बाद यदि कम्पनी अपने घाटे को काम करके परिचालन लागत से अधिक आय करने में सफल हुई है तो इसमें सरकार की कोशिशें और कम्पनी के प्रबंधन की सराहना भी बनती है. देश के लिए इसके पास जितने ज़रूरी दायित्व भी हैं उनसे निपटने के लिए आज भी इसे सरकार की तरफ ताकना पड़ता है क्योंकि सामाजिक ज़िम्मेदारी के चलते इसे उन क्षेत्रों में भी परिचालन करना पड़ता है जहाँ इसके लिए लाभ की कोई सम्भावना नहीं होती है.
                              कम्पनी के इस लाभ को वैसे तो महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए क्योंकि यह उसके प्रबंधन के प्रयासों से ही संभव हो पाया है फिर भी पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से स्पाइस जेट में संकट खड़ा हुआ और उसके परिचालन पर बुरा असर पड़ा उसके बाद उन क्षेत्रों में उसका सभी विमानन कम्पनियों को कुछ न कुछ लाभ होना शुरू हो गया जिसे स्थायी नहीं माना जा सकता है क्योंकि दक्षिण भारत के शहरों में जहाँ से बड़े शहरों को जोड़ने वाली उड़ानों की कमी के चलते आज भी लोगों को बेहतर विकल्प उपलब्ध नहीं हैं स्पाइस जेट के चलते विकल्प सीमित हो गए हैं. दूसरे के संकट से लाभ उठाने वाली परिस्थितियां सदैव ही बनी नहीं रह सकती हैं और जो भी इस क्षेत्र में अपने को समय के अनुसार ढालने के लिए तैयार कर लेगा उसे ही इसका पूरा लाभ भी मिल सकता है. अब कम्पनी के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने इस लाभ को बनाये रखते हुए इसे बड़े लाभ में बदलने की दिशा में काम करने के बारे में सोचना शुरू कर दे जिससे अस्थायी परिस्थितियों के चलते जो भी यात्री पहली बार इसकी सेवा का उपयोग करें उन्हें कुछ यादगार यात्रा का अवसर भी मिल सके और वे दोबारा इसकी तरफ लौट भी सकें.
                               आज जिस तरह से देश के छोटे शहरों के लोग भी हवाई यात्रा करने की तरफ बढ़ रहे हैं तो उस परिस्थिति में अब एयर इंडिया को इन शहरों को सीधे या संपर्क उड़ानों के माध्यम से जोड़ने के बारे में भी विचार करना चाहिए. आज भी उत्तर भारत के यूपी, बिहार और बंगाल से उड़ानों की उपलब्धता उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए. आने वाले समय में एयर एशिया और टाटा- सिंगापुर एयरलाइन्स के संयुक्त उपक्रम विस्तार की तरफ से इसे नयी चुनौती मिलने वाली है. कम्पंनी को अब उत्तर भारत के इन अधिक आबादी वाले राज्यों में आक्रमकता के साथ उतरने की ज़रुरत भी है क्योंकि जब तक लखनऊ, पटना आदि शहरों को देश के अन्य छोटे शहरों से सीधे जोड़ने की सही कोशिश नहीं की जाएगी तब तक यात्रियों के साथ कम्पनी को भी बेहतर विकल्प और सुविधा नहीं मिल पायेगी. उदाहरण के लिए आज लखनऊ से देश के अधिकांश हिस्सों के लिए सीधे या संपर्क उड़ानों में कमी के चलते यहाँ से अन्य राज्यों को जाने वाले यात्रियों को दिल्ली या मुंबई का रुख करना पड़ता है तभी वे अपने गंतव्य तक पहुँच पाते हैं. पूर्वोत्तर क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावनाओं के समय रहते दोहन से कम्पनी को समुचित लाभ और यात्रियों को सुविधा भी मिल सकती है.             
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