मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 28 जनवरी 2015

ओबामा का भारत दौरा

                               अपने कार्यकाल में दूसरी बार भारत का दौरा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आज के समय जिस तरह से भारतीय महत्व को समझते हुए पूरी तरह से एक नयी शुरुवात की तरफ बढ़ने की कोशिशें शुरू की हैं वह कितने आगे तक जा पाती हैं यह तो आने वाला ही बताएगा क्योंकि यह ओबामा का दूसरा कार्यकाल है और अमेरिकी कानून के अनुसार वे अब तीसरी बार इस पद पर नहीं चुने जा सकते हैं तो जब २०१७ के चुनाव के बाद अमेरिका में नए राष्ट्रपति सत्ता संभालेंगें तो उनका भारत के प्रति क्या रवैया रहने वाला है यह भी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. देशों के सम्बन्ध नेताओं की सोच और सामरिक नीतियों के साथ कूटनीतिक पहल पर अधिक टिके होते हैं और इनका किसी एक काल और परिस्थिति के साथ बांधकर कभी भी सही तरह से आंकलन नहीं किया जा सकता है. ओबामा ने निश्चित तौर पर भारत के साथ बेहतर संबंधों के लिए लगातार प्रयास करने की अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है साथ ही उन्होंने आज के भारत के साथ अमेरिका के आगे के हितों को भी समझने की चेष्टा भी की है.
                         ओबामा मनमोहन सिंह से बहुत अधिक प्रभावित रहे हैं और आज वे उनके द्वारा शुरू किये गए इस प्रयास को और भी आगे ले जाने के लिए संकल्पित भी दिखाई दे रहे हैं इसलिए उन्होंने भारत को केवल व्यापारिक साझेदार से आगे बढ़कर रणनीतिक साझेदार बनाये जाने की बातें भी शुरू कर दी हैं. भारत ने आज तक पूरी दुनिया पर अमेरिकी प्रभाव को दूर ही रखते हुए अपने स्तर से ही सभी स्वतंत्र नीतियों का निर्धारण किया है और इस यात्रा के बाद किसी भी परिस्थिति में उस नीति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आने वाला है क्योंकि अमेरिका आज विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और राजनैतिक शक्ति भले ही हो पर भारतीय परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के नागरिकों में एक दूसरे को लेकर संदेह बने ही रहते हैं. अमेरिका जिस तरह से केवल अपने लाभ के लिए ही किसी भी देश के साथ अपने संबधों को निर्धारित करने में विश्वास करता है वहीं भारत का इन मामलों में अलग तरह से सोचना ही रहा करता है जैसे अफगानिस्तान में भारत की सैन्य क्षमताओं का उपयोग करने की कोशिशें करने में अमेरिका को कभी भी सफलता नहीं मिली जबकि छद्म रूप से वह पाक को आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्ध में अपने बेहतर साझीदार के रूप में प्रचारित करने से नहीं चूकता है.
                    भारत के लिए रूस, ईरान, ईराक़ और सऊदी अरब लम्बे समय से एक बड़े व्यापारिक और सांस्कृतिक साझेदार रहे हैं यहाँ तक ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों पर भारत ने कभी भी कोई बड़ा उत्साह नहीं दिखाया और सदैव अपनी नीतियों की अपने संबंधों के अनुसार ही समीक्षा की. आज रूस संकट में है तो क्या यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि हम उसके साथ खड़े हों क्योंकि पहले भी अंतर्राष्ट्रीय दबावों के समय हमारी नीति मध्यमार्गी ही अधिक रही है और हम किसी भी एक ध्रुव में खुले तौर पर कभी भी शामिल नहीं रहे हैं. तात्कालिक और दीर्घवधि में ओबामा के इस दौरे का लाभ और हानियां दिखाई देने वाली हैं पर आज भारत की बड़ी जनसँख्या और दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते और सम्पन होते मध्य वर्ग के चलते हम हर व्यापारिक देश के चहेते ही बने रहने वाले हैं. आज हमारी इस शक्ति का हर व्यापारिक देश दोहन करना चाहता है अब यह हमारी नीतियों पर ही निर्भर करने वाला है कि हम इस अवसर का लाभ अपने लोगों को सशक्त करने में करने वाले हैं या फिर दूसरे देशों की नीतियों के अनुसार इसका लाभ दूसरों को उठाने देना चाहते हैं फिलहाल ओबामा का यह दौरा भारत अमेरिका संबधों में पिछले दशक में शुरू हुए नए आयामों को आगे बढ़ाने में बेहतर साबित होता दिखाई दे रहा है.               
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