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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

योजना आयोग से नीति आयोग तक

                                                                 संस्थाओं और योजनाओं के नाम बदलने के साथ अपनी पारी की शुरुवात करने वाले पीएम मोदी ने नवगठित नीति आयोग के उपाध्यक्ष समेत अन्य पूर्ण कालिक, पदेन और विशेष आमंत्रित सदस्यों की घोषणा कर दी है जिससे इस बात की आशा की जा सकती है कि पूर्ण रूप से मुक्त अर्थयवस्था के पैरोकारों के साथ चलते हुए पीएम ने देश को आगे ले जाने की कोशिशों को आगे बढ़ाने का काम कर दिया है. इस संस्था के बारे में जिस तरह से शुरू में कहा जा रहा था कि यह निर्णय लेने के मामले में पहले से बहुत अलग संस्था के रूप में काम करने वाली है तो इसके वर्तमान स्वरूप को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यह पहले वाले योजना आयोग से कुछ अलग साबित होने वाली है. यह सही है कि देश में संसाधनों के बंटवारे को लेकर केंद्र सरकार और उसके विरोधियों की राज्य सरकारों में सदैव ही टकराव की स्थिति बनी रहती है पर इस नए तंत्र से उस राजनीति से किस तरह पार पाया जा सकेगा जब इसमें भी विशेषज्ञों के साथ ७ मंत्रियों को पदेन और विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में शामिल कर दिया गया है ?
                                      एक तरफ पीएम की तरफ से अपने मंत्रियों पर कार्यों को तेज़ी से करने का दबाव बनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ उन्हें इस तरह के आयोगों में भी रखा जा रहा है जिससे आयोग के काम करने की दिशा भी प्रभावित हो सकती है. वर्ष भर में वित्त मंत्रालय के साथ नीति आयोग को बहुत बार काम करना पड़ सकता है तो यदि वित्त मंत्री इस आयोग में शामिल हैं तो वह समय की मांग भी है पर गृह मंत्री, रेलमंत्री और कृषि मंत्री को इसके सदस्य बनाये जाने से बेशक मोदी की प्राथमिकताएं सामने दिखाई दे रही हैं पर अपने आप में भारी भरकम मंत्रालयों को संभाले हुए ये मंत्री आने वाले समय में आयोग में केवल शोभा मात्र ही रह जाने वाले हैं. सड़क परिवहन, जहाजरानी मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मंत्रियों को इसमें शामिल किये जाने से क्या आयोग और मंत्रालय के काम पर असर नहीं पड़ने वाला है ? सरकार को इसे विशुद्ध रूप से पीएम के नेतृत्व में विशेषज्ञों के समूह के रूप में गठित करने की दिशा में काम करने की तरफ बढ़ने से यह निवर्तमान योजना आयोग से कई मामलों में वास्तविक रूप से भिन्न भी दिखाई दे सकता था.
                 हो सकता है कि आने वाले समय में इस आयोग के माध्यम से मोदी भी उसी राजनीति को आगे बढ़ाने के बारे में सोच रहे हों जिसका आरोप वे पिछली सरकार पर लगाया करते थे क्योंकि एक विशुद्ध नीति निर्माता आयोग में इतने राजनेताओं को शामिल कर आने वाले समय में इसके काम काज को प्रभावित करने की कोई छिपी हुई रणनीति भी इसमें शामिल हो सकती है. आयोगों के नाम परिवर्तन से क्या अंतर पड़ने वाला है जब काम करने का तरीका बिल्कुल वही रहने वाला है इस आयोग में इतने नेताओं / मंत्रियों को शामिल कर मोदी वह सन्देश देने में पूरी तरह से चूक गए हैं जो इसे विशुद्ध नीतिगत स्तर पर रखकर कर सकते थे. खैर यह पीएम का विशेषाधिकार है कि वे देश में वर्तमान में चल रही संस्थाओं को किन नामों और किस तरह से चलाना चाहते हैं पर उनके नाम बदलकर क्या कार्य संस्कृति को पूरी तरह से बदला जा सकता है यह इस आयोग के गठन से भी स्पष्ट नहीं हो सका है. देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक साथ इसकी पूर्णकालिक बैठक के लिए इकठ्ठा करना भी आयोग के लिए सदैव सरदर्द ही रहने वाला है इसे अच्छा कदम यह भी हो सकता था कि राज्यों से एक पूर्णकालिक सदस्य नीति आयोग के लिए भेजने की बात की जाती जो राज्य से जुड़े सभी मसलों पर सरकार का पक्ष पूरे वर्ष रख पाता. फिलहाल अगले कुछ वर्षों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि नीति आयोग अपने गठन को कितना सार्थक कर पाया या वह केवल नए नाम से काम करने वाला एक नया आयोग भर ही साबित हुआ.            
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