मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

आतंक - अमेरिका,पाक और भारत

                                                           भारतीय मीडिया में बेहद सफल बताये जा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के जनवरी दौरे के बाद जिस तरह से ओबामा ने पाकिस्तान को फिर से अपना आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्ध में करीबी सहयोगी बताने की कोशिश की है वह कहीं से भी भारत को रास नहीं आने वाली है. सामान्य बजटीय प्रावधानों को बहुत पीछे छोड़ते हुए जिस तरह से ओबामा ने अपने भारत दौरे के बाद चिढ़े हुए पाक के सामने प्रस्तावित धनराशि से छह गुना धनराशि आवंटित किये जाने के बारे में कहा है उससे भारत की उस चिंता को पूरी तरह अनदेखा किये जाने के सन्देश के रूप में ही देखा जाने वाला है. भारत सदैव ही अमेरिका के इस तरह के आवंटन का यह कहकर विरोध किया करता है कि पाक इसका दुरूपयोग भारत के खिलाफ आतंकी कार्यवाही करने में ही किया करता है और सीमा पार से आतंकियों के लिए हर संभव मदद भी करने में इसी सैन्य और असैन्य धनराशि का जमकर इस्तेमाल किया करता है. ओबामा के इस कदम से जहाँ भारत के लिए एक नयी चिंता सामने आई है वहीं पाक ने भारत पर वरीयता पाते हुए अमेरिका की नज़रों में अपनी महत्ता फिर से साबित कर दी है.
                                                      इस प्रस्ताव के मंज़ूर होने में इसलिए भी कोई संदेह नहीं है क्योंकि ओबामा इस मसले पर आसानी से अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर मंज़ूर कर सकते हैं और भारत इसमें केवल अपने सहयोगी लोगों के माध्यम से विरोध का सन्देश ही पहुंचा सकता है. अच्छा होता कि इस मामले पर भारत सरकार की तरफ से एक अधिकृत प्रतिक्रिया भी सामने आती जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा जाता कि भारत को पाक से उसके विरुद्ध चलाये जा रहे आतंकी अभियानों के चलते इस तरह की किसी भी सहायता से घोर आपत्ति है पर संभवतः भारत सरकार अभी दिल्ली चुनावों में ही उलझी हुई है और उसे दिल्ली में पूरी ही दुनिया दिख रही है जबकि हमारे पीएम खुद को ओबामा का बहुत करीबी बताते हैं तो इस मसले को उन्होंने किस तरह से अमेरिकी प्रशासन के सामने रखा है यह भी जनता को बताया जाना चाहिए. पीएम की भारत के हक़ में बोलने या विदेश मंत्रालय के स्तर पर कुछ भी न कहे जाने से आखिर जनता को क्या सन्देश दिया जा रहा है ? पहले हर मामले में चिल्लाने वाली भाजपा तक ने इस मसले पर सरकार से कोई मांग नहीं की है जो कि चिंताजनक स्थिति है.
                                                इस तरह के मामलों में भारत के आधिकारिक रुख को सरकारी स्तर पर दृढ़ता से दोहराये जाने की भी आवश्यकता है क्योंकि जब तक भारत की तरफ से कुछ विरोध नहीं किया जायेगा तब तक अमेरिका को इसका सही आभास नहीं होने वाला है. आखिर क्या कारण है कि अमेरिका की तरफ से इन मसलों पर कुछ भी कहने से पहले भारत के पक्ष की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है और हमारी सरकार की तरफ से कोई भी बयान तक जारी नहीं किया जा रहा है ? इस मामले पर विपक्षी दलों द्वारा चुप्पी साधे जाने को भी सही नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उनकी तरफ से इस मसले को उठाने से जहाँ सरकार को देश के सामने असहज स्थिति का सामना करना पड़ सकता है वहीं उस पर कोई बयान जारी करने का दबाव भी बन सकता है. पीएम की ओबामा के साथ की निकटता किस तरह से भारत के हितों के खिलाफ जा रही है और वे इन मसलों पर पूरी तरह से चुप्पी लगाये हुए हैं यह भी देश की बदलती विदेश नीति का ही कोई हिस्सा लगती है या फिर ओबामा के साथ किये गए किन्हीं वायदों के तहत पीएम ने इन मसलों को अनदेखा कर चुप्पी ओढ़ रखी है. 
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