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मंगलवार, 10 मार्च 2015

केंद्र सरकार और कश्मीर

                                               मसर्रत आलम की रिहाई का मामला अपने आप में केंद्र सरकार के गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है क्योंकि अब एक नयी बात सामने आ रही है कि मसर्रत को छोड़ने का निर्णय अपरोक्ष रूप से केंद्र सरकार द्वारा मुफ़्ती सरकार के शपथ ग्रहण से एक सप्ताह पहले ही ले लिया था जिससे यह पता चलता है कि इस तरह का महत्वपूर्ण फैसला राज्य में राज्यपाल शासन लगे होने के समय अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार द्वारा ही ले लिया गया था ? आज जिस निर्णय पर भाजपा अपने को घाटी की भावनाओं से अलग करके पूरे देश की भावनाओं के साथ जोड़ने का कठोर परिश्रम करने में लगी हुई है सम्भवतः यह उसकी सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा लिया गया निर्णय या फिर गंभीर चूक ही रही है जिस कारण से आज यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है. अब यह बात सामने आ रही है कि आलम के मसले पर फरवरी में ही गृह राज्य मंत्री सुरेश कुमार ने जम्मू के जिला मजिस्ट्रेट को चिट्ठी में लिखा था कि आलम के विरुद्ध पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत लगे आरोप खारिज हो चुके हैं इसलिए उसे और अधिक समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता है.
                                       इस सबसे एक बात यह ही पता चलती है कि इस मामले में कहीं न कहीं केंद्र सरकार भी पूरी तरह से शामिल या लापरवाह ही रही है और पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत किसी पर लगे आरोपों को गृह मंत्रालय के स्तर से पुष्टि किये जाने के बाद ही उसे जेल में रोका जा सकता है पर इस पूरे मसले को केंद्र ने उस समय जिस हलके तरीके से लिया और उसके बाद मुफ़्ती सरकार ने भी आनन फानन में ही आलम को रिहा कर दिया उससे मामला बिगड़ गया है. यदि कानूनी तौर पर आलम को जेल में नहीं रखा जा सकता था तो उस पर लगे देशद्रोह आदि के जिन मुक़दमों की बात संसद में सरकार द्वारा कही जा रही है वे कहाँ गायब हो गए हैं ? ज़ाहिर है कि केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले में गंभीर स्तर पर लापरवाही की है और अब जब कानूनी दांव पेंच में मामला भाजपा और मोदी सरकार के लिए मुश्किल होता जा रहा है तो भी सरकार संसद को गुमराह करने में ही लगी हुई है. यदि आलम पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत ही मामला था तो अब उसे आसानी से हिरासत में नहीं लिया जा सकता है और आरोपों की नए सिरे से पुष्टि किये जाने की आवश्यकता भी सामने आने वाली है जो कि केंद्र सरकार के एक चुनौती भरा मामला ही साबित होने वाला है.
                                      अब स्थिति यह बन चुकी है कि पूरे देश में कश्मीर को लेकर कभी कांग्रेस पर पाकिस्तान के सामने घुटने टेकने के आरोप लगाने वाली सरकार और उसके जोशीले भाषण देने वाले पीएम पूरी तरह से उलझ चुके हैं और उनके पास इस स्थिति से बाहर निकलने का कोई आसान रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा है. कानून के अनुपालन में जिस स्तर पर सरकार द्वारा कोताही की गयी है उससे देश की छवि को भी बट्टा ही लगा है अब मसर्रत मसला इतना उलझ चुका है कि केंद्र सरकार किसी भी परिस्थिति में आलम को दोबारा हिरासत में नहीं ले सकती है क्योंकि घाटी में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया होने की पूरी सम्भावना है. अच्छा यह ही होगा कि मोदी सरकार इस घटना से सबक सीखे और आने वाले समय में राज्य ही क्या पूरे देश में राजनैतिक कारणों से बंदी बनाये गए लोगों से देश को होने वाले संभावित खतरों पर विचार कर एक नयी नीति को प्राथमिकता के आधार पर बनाने की कोशिश करे. जो भी लोग एक बार जेल से बाहर जाने पर भी अपनी हरकतों से बाज़ न आएं तो उनके लिए भी कानून में संशोधन के बाद कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह की समस्याएं सदैव ही देश के सामने बनी रहने वाली हैं और उनके लिए एक स्थायी नीति और समाधान के प्रावधान की आवश्यकता है.    
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