मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 11 मार्च 2015

राष्ट्रगान और सम्मान

                                               देश में शीर्ष स्तर तक पहुंचे हुए नेता भी किस तरह से अपनी अजीब हरकतों के साथ देश को शर्मसार करते रहते हैं यह कई बार देखे जा चुका है और इसी क्रम में ताज़ा नाम कर्नाटक के राज्यपाल का नाम भी इसमें जुड़ चुका है जिसमें वे उस सामान्य नियम की अवहेलना कर गए जो उनके खिलाफ राष्ट्रगान की अवमानना तक जा सकता है. राजस्थान से कर्नाटक स्थानांतरित होकर आये न्यायाधीश राघवेन्द्र सिंह चौहान को शपथ दिलाने के बाद जब राष्ट्रगान बज रहा था तो राज्यपाल वजुभाई बीच में ही उठकर समारोह से बाहर चल दिये उनकी तरफ से इस तरह की हरकत पर ध्यान जाते ही एक सहयोगी ने भागकर उन्हें राष्ट्रगान के बारे में बताया तवे उलटे पैरों से वापस आये और कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य जज डी.एच वाघले, जस्टिस चौहान और स्टेट चीफ सेक्रेटरी कौशिक मुखर्जी के साथ खड़े हुए. देश में राज्यों में जिस तरह से केवल सीमित संख्या में ही राज्यपाल होते हैं तो उनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा राष्ट्रगान के सम्मान में इस तरह की हरकत किया जाना आखिर क्या कहा जाये ?
                                     वजुभाई ७७ साल के वरिष्ठ व्यक्ति हैं और आखिर किन कारणों से उन्होंने इस सामान्य शिष्टाचार और राष्ट्रभक्ति को प्रदर्शित करने वाले मसले पर इस तरह से हल्कापन दिखाया यह तो बाद में पता चल पायेगा पर एक बात तो स्पष्ट ही हो रही है कि आज की राजनीति में परम्पराओं पर कम ध्यान देने के कारण इस तरह की घटनाएँ बढ़ती ही चली जा रही हैं. संघ शुरू से ही "जन-गण-मन" को औपनिवेशवाद की भक्ति मानता है तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि वजुभाई द्वारा जानबूझकर देखने के लिए ही ऐसा किया गया हो कि इसकी देश में किस तरह की प्रतिक्रिया होती है ? आज जो भी राष्ट्रगान है वह आज़ादी के समय से है पर जिस तरह से आज भारतीय इतिहास को एक नए स्वरुप से ही सामने लेकर उसकी व्याख्या की जा रही है उस परिस्थिति में आखिर सरकार और संघ की मंशा क्या है यह सभी को पता चलने लगा है. एक बात और भी विचारणीय है कि यदि इस तरह की घटना किसी मुस्लिम नेता से जुडी होती तो उसके खिलाफ अब तक सोशल मीडिया पर न जाने क्या क्या कहा जा चुका होता और यह साबित किये जाने के पूरे प्रयास भी किये जाते कि उन्होंने जानबूझकर इस तरह की हरकत की है २६ जनवरी को राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर इस तरह के हमले किये भी जा चुके हैं जबकि कानून और परम्पराओं के निर्वहन में वे पूरी तरह से सही थे.
                               भविष्य में इस तरह की कोई भी घटना न होने पाये इसके लिए सभी चुने हुए जनप्रतिनिधियों के लिए राष्ट्र से जुड़े हुए प्रतीकों और परम्पराओं के बारे में एक सत्र करवाया जाना चाहिए और साथ ही उन्हें यह भी स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में इन नियमों का किसी भी तरह से उल्लंघन होने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र देना होगा वर्ना उन्हें पद से हटा दिया जायेगा. जब तक ऐसे कड़े प्रावधानों की व्यवस्था नहीं की जाएगी तब तक हमारे विभिन्न विचारधाराओं के नेता अपनी सुविधा के अनुसार या कभी कभी लापरवाही के चलते इस तरह की हरकतें करने से बाज़ नहीं आएंगे. जब आम जनता और अधिकारियों के लिए स्पष्ट रूप से कानून है तो उसे इन नेताओं पर क्यों नहीं कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए देश की जनता को इस बात का जवाब कौन देगा ? राजनीति और वैचारिक मतभेद अपनी जगह हैं और जिसे भी देश की राजनीति में सक्रिय रहने का शौक है यदि वह देश के प्रतीकों और संवैधानिक परम्पराओं का सम्मान करना ही नहीं सीख सकता है तो उससे देश के लिए कुछ और ठोस किये जाने की आशा कैसे की जा सकती है ? अब समय है कि इस तरह की घटनाओं पर सख्त कदम उठाने की तरफ देश के नेताओं को बढ़ना चाहिए वर्ना कोई व्यक्ति इन पर कोर्ट में केस कर इनके पदों को छीन भी सकता है.    
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