मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 22 मार्च 2015

मुसलमान और सवाल ?

                                            देश में मुस्लिम समुदाय को लेकर आज़ादी के बाद से ही बहुत बहस होती रही है जबकि वास्तव में इस तरह के अनावश्यक विमर्श के लिए कौन ज़िम्मेदार है आज तक यह किसी की समझ में नहीं आ पाया है. जमात उलेमा-ए-हिन्द के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी के एक समारोह में दिए गए बयान के बाद फिर से यही लगता है कि मदनी द्वारा जो कुछ कहा जा रहा है वह केवल मुस्लिम समाज ही क्यों हर प्रगतिशील समाज का हिस्सा होना चाहिए पर आज दुर्भाग्य से इस लगभग हर समाज में ऐसी बातें करने और उन पर अमल करने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती ही जा रही है. मौलाना मदनी ने जिस बेबाकी से इस बात को कहा कि आज मुस्लिमों को बदनाम करने में खुद मुस्लिमों का ही हाथ है वैसा आज तक भारत में इस्लामिक मौलानाओं द्वारा कम ही कहा गया है. उन्होंने आगे बोलते हुए यह भी कहा कि मुस्लिमों के एक तबके ने ही खुद इस्लाम की आतंकवादी छवि बनाई है कोई हमें बदनाम नहीं कर रहा बल्कि हमारे बीच के ही लोग हमारी बदनामी कर कारण बन रहे हैं अब हमें इससे बचने की ज़रुरत है जो कि समाज द्वारा खुद ही संभव है.
                                       आज पूरी दुनिया में आतंक और इस्लाम को एक साथ जोड़ा जा रहा है पर इसके लिए विरोध और आत्मनिरीक्षण के स्वर यदि स्वयं इस्लामी मंचों से उठेंगें तो वे सुधारवादी हो सकते हैं और जो भटके हुए लोग ईमान से दूर जा रहे हैं उन्हें भी सुधारा जा सकेगा पर दुर्भाग्य से किसी भी समाज में ऐसा नहीं होता है और कुछ अतिवादियों की हर गलत बात को भी समाज द्वारा या तो सही सही मान लिया जाता है या फिर उसका विरोध नहीं किया जाता है जिससे समाज अपनी मूल भावना से दूर होता चला जाता है. मौलाना मदनी ने एक बात बहुत महत्वपूर्ण भी कही कि यदि हर मुसलमान केवल अगले २० सालों के लिए शिक्षा का एजेंडा ही तय करते हुए यह सोच ले कि उसे भले ही एक समय रोटी खानी पड़े पर वह बच्चों को पढ़ाने पर ध्यान ज़रूर देगा तो इससे उन लोगों की राय इस्लाम के बारे में बदल जाएगी जो उनसे नफरत करते हैं. शिक्षा का किसी भी समाज के विकास में बहुत बड़ा योगदान होता है और मौलाना मदनी ने इसे बहुत ही गंभीरता के साथ सोचकर आगे बढ़ने की बात पर अमल करने को कहकर एक रास्ता तो दिखाया ही है अब यह पूरी तरह से मुसलमानों पर ही है कि वे मौलाना मदनी की बातों पर किस हद तक आगे बढ़ पाते हैं.
                                      किसी भी समाज को सम्पूर्ण नहीं कहा जा सकता है और यदि बात मुस्लिम समाज की हो तो यह बात समझ में आती है कि शिक्षा की तरफ अधिक रुझान न होने के कारण ही आज मुस्लिम समाज को वह स्थान नहीं मिल पाया है जिसको वो आसानी से पा सकता है. इस पूरे मसले में सबसे बड़ी बात यह भी है कि इस तरह की बातें अब मुसलमानों को खुद ही समझनी होंगी तथा समाज की भलाई के लिए अब नए सिरे से सोचने की तरफ भी बढ़ना होगा क्योंकि आज भी मुसलमानों पर वैचारिक हमले करने वालों के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा होता है कि मुस्लिम अशिक्षित होते हैं और वे शिक्षा की तरफ बढ़ना भी नहीं चाहते हैं. इस तरह के आरोपों का सही उत्तर मौलाना मदनी की सलाहों से ही आसानी से खोजा जा सकता है क्योंकि अब पूरी दुनिया में शिक्षा के बिना आगे बढ़ पाने के लिए मार्ग बहुत सीमित ही रह गए हैं. यदि आज भी भारत के मुसलमान अच्छी शिक्षा की तरफ बढ़ना शुरू कर दें तो समाज में वे अपनी क़ाबलियत के बूते पर कुछ भी हासिल कर सकते हैं समय चूकने के बाद उसको वापस नहीं लाया जा सकता है इसलिए शिक्षा के दम पर अब मुस्लिम समाज को सुधारने की ज़िम्मेदारी खुद उन पर ही आ गयी है और मजबूत कोशिशों से वे इसे पूरा करने का माद्दा भी रखते हैं अब यह दिखाने का समय भी आ गया है.             
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